Patna: केंद्र और राज्य सरकार हर वक्त नगर निकायों और पंचायतों को ज्यादा से ज्यादा अधिकार देने की वकालत करती है. लेकिन बिहार नगरपालिका अधिनियम (संशोधन) 2021 के जरिए नगर पालिकाओं के अधिकार में भारी कटौती कर दी गई है. इस अधिनियम के जरिए एक तरीके से मेयर,सशक्त स्थायी समिति के अधिकार को सीमित कर दिया गया है.


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अब इसी संशोधन के खिलाफ राज्य भर के नगर निगम एकजुट होने लगे हैं. इसी को लेकर पटना नगर निगम की मेयर सीता साहू की अध्यक्षता में एक बैठक भी हुई. इसमें राज्यभर के करीब-करीब नगर निगमों के मेयर और डिप्टी मेयर शामिल हुए. इसी बीच बिहार नगरपालिका संशोधन (2021) को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.


पटना नगर निगम के पार्षद और याचिकाकर्ता आशीष कुमार सिन्हा के अनुसार बिहार सरकार पहले भी अलग-अलग नियमों के जरिए नगर निगमों के अधिकार में कटौती करती रही है, लेकिन ताजा संशोधन से नगर निगम के पास केवल कहने को एक नगरनिकाय संस्था रह जाएगी. पहले हमारे पास बहुत तरह के अधिकार थे. हमें ये अधिकार था कि अगर कोई नगर आयुक्त जनता की भावना के अनुरूप नहीं करते हैं तो हम उन्हें दो तिहाई बहुमत से हटा सकते थे, लेकिन अब ये अधिकार छिन लिया गया है.


उन्होंने आगे कहा कि दूसरे अधिकारों में भी कटौती की गई है. बिहार सरकार के इस नियम से राज्यरभर के महापौरों का भड़कना स्वाभाविक था क्योंकि नगर निकाय की अपनी स्वायत्ता होती है, लेकिन नए अधिनियम से नगर निकायों के अधिकारों पर कैंची चलाई गई है.  


क्यों हो रहा है इसका विरोध 


इसी साल मार्च में बिहार नगरपालिका (संशोधन) अधिनियम 2021 विधानमंडल से पास हुआ था और इसके बाद इसे लागू कर दिया गया था. ये बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007 की धाराओं में संशोधन कर लागू किया गया है. इस निया से पहले पहले ग्रेड सी और ग्रेड डी के कर्मचारियों की बहाली या सलाह देने का अधिकार नगर निकायों के पास था, लेकिन अब ये बहाली नगर विकास विभाग के जरिए होगी. 


वहीं, नगर निकायों में ग्रेड सी और ग्रेड डी के कर्मचारियों की बहाली के लिए अब अलग से नगरपालिका प्रशासन निदेशालय बनाया गया है. पहले नगर निकायों के पास ये अधिकार था कि जब भी नगरआय़ुक्त की नियुक्ति होगी, तो इसके लिए सशक्त स्थायी समिति से सलाह और मंजूरी ली जाएगी. इसे भी खत्म कर दिया गया है.


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इसके अलावा नगरनिगमों के पास अधिकार था कि अगर नगर आयुक्त या दूसरे पदाधिकारी ठीक ढंग से काम नहीं करते हैं, तो दो तिहाई बहुमत के जरिए नगरआयुक्त को हटाया जा सकता था. अब इस अधिकार को छीन लिया गया है.