दशकों से `दो वक्त की रोटी और मान-सम्मान` की जंग लड़ता रहा बिहार का प्रवासी मजदूर
Bihar Labour Fighters: बिहार में रोजगार की कमी के चलते बिहार के लोग अक्सर दिल्ली, हरियाणा और पंजाब की तरफ ही रोजगार के लिए पहुंचते हैं. पलायन के मुख्य कारणों पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार का कभी ध्यान नहीं गया.
पटना: Bihar Labour Fighters: बिहार का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्रवासी के तौर पर अपनी आजीविका कमाने के लिए दूसरे राज्यों में रहता है. साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार साल 2001 से 2011 के बीच 93 लाख लोगों ने बिहार छोड़ा और दूसरे राज्यों में चले गए. इस पलायन का सबसे बड़ा कारण बिहार में रोजगार का न होना बना. एक जिले की सीमाएं ही बहुत बड़ी हो जाती हैं, तो लाजमी है कि दूसरे राज्यों में माहौल बिल्कुल अलग ही होता है. जिसमें रहना हर किसी के बस की बात नहीं होती है. आंकड़ों के अनुसार बिहार की आबादी के करीब नौ फीसदी लोगों ने 2011 तक रोजगार के लिए दूसरे राज्यों की ओर रुख किया . बिहार से पलायन करने वाले 55 फीसदी लोग रोजी-रोटी के लिए पलायन करते हैं.
सरकार ने नहीं की पलायन की परवाह
बिहार में रोजगार की कमी के चलते बिहार के लोग अक्सर दिल्ली, हरियाणा और पंजाब की तरफ ही रोजगार के लिए पहुंचते हैं. पलायन के मुख्य कारणों पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार का कभी ध्यान नहीं गया. भारत की राजधानी जितनी एक अमीर की आंखों से सुंदर दिखती है, उतनी ही बिहार से आए मजदूर के लिए कठिनाइयों से भरी डगर है. बिहार के लोगों को अक्सर पूरी दिल्ली में छोटे मोटे रोजगार करते हुए सभी लोगों ने देखा होगा. कैसा भी काम हो, कितना ही कठिन काम क्यों न हो पर एक बिहारी उसको बखूबी करने का हुनर रखता है. रिक्शा चलाने से लेकर रेहड़ी पर वजनदार भार ढोने के साथ-साथ ठेला लगाकर सामान की बिक्री करने तक सभी कामों में बिहारी शामिल हैं.
शिक्षित वर्ग ने कभी नहीं समझी पीड़ा
बिहार का एक तबका काफी खुशहाल और मजेदार जिंदगी जीता है, इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है उनका शिक्षित होना और समय पर रोजगार मिल जाना. लेकिन किसी का ध्यान अनपढ़ और बेरोजगार बिहारी की तरफ कभी नहीं जाता कि वह किस हाल में अपना पेट पाल रहा है. बिहार और यूपी से देश की प्रशासनिक सेवा में अव्वल अधिकारी मिलते हैं, लेकिन उन सभी को कभी इस पलायन की समस्या को कम करने और खत्म करने की दिशा में कोई महत्वपूर्ण कदम उठाते नहीं देखा गया है. एक छोटे से कमरे में 4-5 लोगों के साथ जीवन जीना सच में इस मजदूर की हालात को बयां करता है. हर त्यौहार पर मजदूर अपने प्रदेश जाने के लिए एक खुशी के साथ बिहार की तरफ मुड़ता है, लेकिन संसाधनों की और पैसे की कमी के चलते उनका ये सपना बहुत बार अधूरा रहा जाता है.
मान-सम्मान की लड़ाई लड़ रहा प्रवासी मजदूर
देश के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे बिहारियों को समय-समय पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है. बेशक वह महाराष्ट्र की बात हो या मध्यप्रदेश ही क्यों न हो. बीते दो साल पहले कोरोना ने मजदूर वर्ग की पूरी जीवन शैली को बर्बाद कर दिया था. मानसिक से लेकर आर्थिक तौर पर प्रवासी मजदूर की जिंदगी बुरी तरह लड़खड़ा गई थी, लेकिन मजदूर ने अपना भरोसा नहीं हारा और हालात सामान्य होते ही अपने प्रदेश को अलविदा कह कर अपने काम पर वापस लौट आए. यकीनन आज दिल्ली जितनी रफ्तार से दौड़ रही है. उसमें बिहार के बड़े मजदूर वर्ग का योगदान है, लेकिन फिर भी उनको लोगों द्वारा असभ्य और असामाजिक तत्व के तौर पर देखा जाता है. जिसके चलते बिहारी मजदूरों के मान सम्मान को भी ठेस पहुंचती है. मान सम्मान के साथ-साथ खुद के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी प्रवासी मजदूरों के लिए कठिनाइयों से भरा रहता है.
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