बिहार: शहाबुद्दीन की सियासी विरासत संभालना ओसामा के लिए बड़ी चुनौती!
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बिहार: शहाबुद्दीन की सियासी विरासत संभालना ओसामा के लिए बड़ी चुनौती!

ओसामा (Osama) के उदय के बाद जिले की राजनीति करवट ले रही है और सियासत में दिलचस्पी रखने वाले नए समीकरण को भांपने में लगे हैं.

शहाबुद्दीन की सियासी विरासत संभालना ओसामा के लिए बड़ी चुनौती! (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Patna: ओसामा सियासत के लिए इन दिनों हॉट केक बन गया है. सिर से पिता की छांव हटते ही सियासत ने उसे हाथोंहाथ उठा लिया है. अब तो उसे बड़ी पौध बनाने की तैयारी शुरू हो गई है. तिहाड़ जेल (Tihar Jail) में बंद पिता शहाबुद्दीन (Shahabuddin) की कोरोना से मौत के बाद जो नुकसान ओसामा को हुआ उसकी भरपाई नामुमकिन है. लेकिन जो सियासी विरासत उसे हासिल हुई है उसे संभालना बड़ी चुनौती है.

शहाबुद्दीन ओसामा के लिए छोड़ गए सियासत की सिंचित जमीन
दरअसल, ताकत के बूते कद बड़ा करने वाले शहाबुद्दीन बेटे के लिए सियासत की सिंचित जमीन छोड़ गए हैं. उस सियासी जमीन की उर्वरता को ओसामा समझे ना समझे सियासी समझ रखने वाले बाजीगर बखूबी जान रहे हैं. यही वजह है कि ओसामा जिले से लेकर प्रदेश के सियासतदानों के लिए हॉटकेक बना हुआ है. 

मौजूदा वाकया को ही लीजिए, जो टुन्ना पांडे राजनीति में कदम रखने के वास्ते बीजेपी के बड़े नेताओं के दरबार में हाजिरी लगाते नहीं थकते, आज वो एमएलसी बनने के बाद पार्टी लाइन की परवाह किए बगैर सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को भला बुरा कहने में संकोच नहीं करते. ट्विटर पर सीएम को खरी-खोटी सुनाने के बाद वो सीधे ओसामा के पास पहुंचते हैं. आखिर क्यों? 

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ओसामा के उदय के बाद बदली सियासी करवट
दरअसल, ओसामा (Osama) के उदय के बाद जिले की राजनीति करवट ले रही है और सियासत में दिलचस्पी रखने वाले नए समीकरण को भांपने में लगे हैं. टुन्ना पांडे को लग रहा है कि बीजेपी में रहकर वो बड़े नेता नहीं बन सकते और शायद उन्हें पाला बदलने का ये सही मौका लग रहा है. वैसे भी बीजेपी ने उन्हें पार्टी से निलंबित कर उनका रास्ता आसान कर दिया. मुमकिन है टुन्ना पांडे ओसामा की कच्ची समझ का भरपूर फायदा उठाने की कोशिश करें. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि ओसामा के दरबार में बैठने वाले सभी राग दरबारी हैं, जो उसे अपने नफा-नुकसान के मुताबिक सियासी पाठ पढ़ाएंगे. ऐसा कतई नहीं हो कि जो लोग शहाबुद्दीन के लिए वफादर बने फिरते थे वे ओसामा के लिए भी उतनी ही हमदर्दी रखें.

वहीं, शहाबुद्दीन जब कोरोना पीड़ित होकर अस्पताल में दाखिल हुए तो सीवान में सनसनी फैल गई. हालांकि, लॉकडाउन की वजह से लोग सामूहिक चर्चा से दूर रहे है. लेकिन निजी दायरे में उनके चाहने वालों ने उनकी खोज खबर जरूर रखी. दिल्ली के जामिया नगर और शाहीन बाग में रहने वाले पूर्वांचल के लोग उनकी खैरियत जानने के लिए बेचैन हो उठे. उनकी मौत के बाद कोरोना प्रोटोकॉल को दरकिनार कर कुछ लोग अस्पताल के पास भी पहुंचे. उनके जनाजे में परिजनों के अलावा वही लोग शामिल हुए.

RJD की चुप्पी ने बढ़ाई बेचैनी
शहाबुद्दीन की अंतिम यात्रा में शामिल लोगों के दिल में एक टिस रह गई वो ये कि आखिर आरजेडी ने उनकी सुध क्यों नहीं ली? मौत पर तेजस्वी क्यों खामोश रहे? शहाबुद्दीन के परिजन उनके शव को सीवान ले जाना चाहते थे. लेकिन कोरोना प्रोटोकॉल इसकी इजाजत नहीं दे रहा था. परिजनों की कोशिश के साथ पार्टी खड़ी नहीं दिखी. ये दर्द शहाबुद्दीन के चाहने वालों को परेशान कर रही थी.

ओसामा ने दिया मझे हुए राजनेता का परिचय
अंतिम संस्कार के बाद शहाबुद्दीन का परिवार जब सीवान पहुंचा तब राजनीतिक दौरा तेज हो गया. पहले जेडीयू के नेता मातमपूर्सी करने पहुंचे. जेडीयू के नेताओं के प्रतापपुर जाने से की खबर से आरजेडी बेचैन हो उठी. फिर तेजस्वी के बेहद करीबी नेता ओसामा से मिलने प्रतापपुर पहुंचे. नेताओं का आना-जाना लगा रहा. लेकिन ओसामा ने एक मझे हुए राजनेता की तरह किसी तरह की बयानबाजी से खुद को दूर रखा.

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