पटनाः सीबीएसई,आईसीएसई बोर्ड ने 10वीं और 12वीं के नतीजों का ऐलान कर दिया है. इसके साथ ही इंटर और स्नातक में दाखिले के लिए दौड़ शुरू हो गई है, लेकिन क्या सीबीएसई या आईसीएसई बोर्ड के टॉपर्स की पसंद हैं बिहार के यूनिवर्सिटी और कॉलेज. आखिर दोनों बोर्ड के टॉपर्स जेएनयू, डीयू या फिर जामिला मिलिया इस्लामिया जैसी यूनिवर्सिटी में दाखिले को पहली प्राथमिकता क्यों दे रहे हैं. सवाल ये है कि, 40 हजार करोड़ खर्च होने के बावजूद बिहार के कॉलेजों में टॉपर्स दाखिला लेने से हिचकते हैं. सवाल ये भी है कि आखिर कब तक बिहार से प्रतिभा का पलायन होता रहेगा.


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बिहार के टॉपर, पढ़ेंगे बाहर
इस बार बिहार में तमन्ना, संस्कृति और नेहा सीबीएसई और आईसीएसई में टॉपर बनी हैं. तीनों में एक और समानता है. समानता ये है कि इनका संबंध भले ही बिहार से हों लेकिन ये छात्राएं अपनी पढ़ाई बिहार के बाहर के विश्वविद्यालयों में करना चाहती हैं. अब तक ये निजी कॉलेजों और स्कूली की छात्राएं थी लेकिन अब इन्हें पढ़ाई के लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय या फिर जामिया मिलिया इस्लामिया जैसी यूनिवर्सिटी में दाखिला लेना है. 


आखिर क्यों बाहर निकल रहे छात्र?
अब सवाल ये होता है आखिर सीबीएसई या आईसीएसई बोर्ड की ये टॉपर छात्राएं बिहार के सरकारी कॉलेजों या विश्वविद्यालय में दाखिला क्यों नहीं लेना चाहती हैं. क्यों ये बिहार से बाहर अपनी आगे की पढ़ाई के लिए जाना चाहती हैं. इसके जवाब में टॉपर्स ने कहा कि बिहार में पढ़ाई के लिए बेहतर माहौल नहीं है. तमाम सरकारी विश्वविद्यालयों के सेशन देरी से चल रहे हैं, लिहाजा सूबे में पढ़ाई कर उन्हें अपना कीमती साल बर्बाद नहीं करना है. ये स्थिति तब है जब बिहार में शिक्षा का बजट 40 हजार करोड़ रुपये है. यानि सूबे के बजट का 20 फीसदी. 


डीयू-जेएनयू ही पहली प्राथमिकता
लेकिन यहां के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की शैक्षणिक स्थिति इतनी बुरी है कि यहां वैसे ही छात्र दाखिला लेना चाहते हैं जिनके पास बिहार छोड़ने का विकल्प नहीं है. क्योंकि साधन संपन्न तबका हो या होशिय़ार छात्र वो 10वीं और 12वीं के बाद बिहार छोड़ने में ही भलाई समझते हैं. उनकी प्राथमिकता में जेएनयू, डीयू , कोलकाता के विश्वविद्यालय होते हैं.लेकिन इसका असर सिर्फ शिक्षा जगत पर ही नहीं बल्कि बिहार के विकास पर भी पड़ता है.क्योंकि अगर सर्वश्रेष्ठ छात्र बिहार से पलायन कर जाते हैं तो फिर सूबे के हिस्से में क्या रह जाता है.


सिर्फ डिग्री देने वाले रह गए हैं बिहार के कॉलेज
क्या मान लिया जाए कि बिहार के शैक्षणिक संस्थानों में औसत दर्जे के ही छात्र पढ़ाई कर रहे हैं. हजारों की संख्या में छात्रों के पलायन से सिर्फ शिक्षा पर ही नहीं बल्कि आर्थिक तंत्र पर भी इसका असर होता है. क्योंकि आखिर जो कुशाग्र छात्र देश के दूसरे हिस्सों में गए उनके लिए पैसे तो बिहार से ही जा रहे हैं. शिक्षाविद नवल किशोर चौधरी बताते हैं कि बिहार के विश्वविद्यालय और कॉलेज सिर्फ डिग्री देने वाले संस्थान रह गए हैं. जब तक सरकार की मानसिकता नहीं बदलेगी कुछ नहीं बदलने वाला. पटना कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर अशोक कुमार के मुताबिक, कॉलेजों की स्थिति पहले से बेहतर नहीं है. पटना कॉलेज की गिनती देशभर के ऐसे कॉलेजों में होती है जहां आर्ट्स की बेहतर पढ़ाई होती रही है.


बिहार से जिस तरह से प्रतिभा पलायन हो रहा है उसे बोलचाल की भाषा में ब्रेन ड्रेन कहते हैं. बिहार सरकार इसे अब खारिज नहीं कर सकती है. क्योंकि अगर बिहार के सर्वश्रेष्ठ बुद्धि वाले छात्र सूबे से बाहर चले जाते हैं तो फिर हमारे हिस्सा में क्या रह जाएगा. क्या इस तरह के माहौल नहीं बनाए जा सकते हैं कि यहां औसत से सर्वश्रेष्ठ छात्र सूबे में रहकर पढ़ाई करें ताकि उनकी प्रतिभा का इस्तेमाल बिहार की बेहतरी के लिए हो सके.


रिपोर्टः प्रीतम कुमार


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