Astrology & Vastu: ज्योतिष शास्त्र, वास्तु शास्त्र, अंक ज्योतिष, हस्त रेखा विज्ञान, सामुद्रिक शास्त्र ये सभी सनातन धर्म के ऐसे हिस्से हैं जो एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और आपके जीवन और भविष्य पर इनका प्रभाव बहुत होता है. ऐसे में आपको आज हम बताएंगे कि ज्योतिष शास्त्र और वास्तु शास्त्र में क्या अंतर है और ये कैसे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. इसको जानने से पहले इन सभी शाखाओं के बारे में जान लेना जरूरी है. 


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पहले आपको बताते हैं कि ज्योतिष शास्त्र किसी भी जातक की कुंडली में ग्रहों की स्थिति उसकी दशाओं और ग्रहों का एक दूसरे ग्रह के साथ संबंध की गणना कर आपके भूत, भविष्य और वर्तमान के बारे में आपको जानकारी प्रदान करता है. जबकि अंक शास्त्र या न्यूमेरोलॉजी में अंकों की मदद से व्यक्ति के भविष्य के बारे में जानकारी प्रदान की जाती है. इसमें भी नौ ग्रहों सूर्य, चन्द्र, गुरू, यूरेनस, बुध, शुक्र, वरूण, शनि और मंगल की विशेषताओं के आधार पर गणना की जाती है. हस्तरेखा शास्त्र या पॉमिस्ट्री में हाथ की रेखाओं को पढ़कर जहां इन सभी चीजों की जानकारी दी जाती है, वहीं वास्तु शास्त्र और सामुद्रिक शास्त्र इनसे थोड़ा अलग है. सामुद्रिक शास्त्र में जहां व्यक्ति के चेहरे को पढ़ने के साथ ही पूरे शरीर के विश्लेषण करने के बारे में बताया गया है. वहीं यह भी बताया गया है कि व्यक्ति के किस अंग के फड़कने पर शुभ या अशुभ कैसे संकेत मिलते हैं. जबकि वास्तु शास्त्र के अनुसार कहीं किसी चीज की प्लेसमेंट किस तरह शुभ या अशुभ असर जीवन पर डालती है इसके बारे में बताती है. 


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वैसे आपको बता दें कि वास्तु शास्त्र में दिशाओं को खूब महत्व दिया गया है. मतलब इसमें साफ बताया गया है कि घर, मकान, भवन, मंदिर आदि के निर्माण के समय दिशाओं का कैसे ध्यान रखना है. किस दिशा में बेडरूम, पूजा घर, रसोई, शौचालय आदि होना चाहिए और किस दिशा में नहीं होना चाहिए. घर का मुख्य द्वार कैसा होना चाहिए, कहां घर, मंदिर में किस जगह कौन सी चीज रखी होनी चाहिए. घर में कहां कौन सा पौधा लगाना चाहिए कौन सा पौधा नहीं लगाना चाहिए. 


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दैनिक जीवन में उपयोग में आनेवाली वसतुओं को कैसे रखें यह भी वास्तु शास्त्र बताता है, ऐसे में इसका सीधा संबंध आप जहां रह रहे हैं वहां के डिजाइन से है. इसके जरिए आप जीवन में सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं. 


सूर्य, चंद्र के अलावा अन्य ग्रहों की जन्म कुंडली में गणना के साथ ही सामान्य गणना को ज्योतिष शास्त्र कहा गया है. इसके अंतर्गत मूल रूप से ग्रह, नक्षत्रों की चाल, दूरी, उनकी दशा, स्थिति की गणना कर शुभ अशुभ दोनों तरह के प्रभावों को बताया जाता है. ऐसे में गणना कर यह बताया जाता है किसी भी व्यक्ति के जीवन में ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति और चाल की वजह से किस तरह के अवरोध आ सकते हैं और इसको ठीक कैसे किया जा सकता है. 


आपको बता दें कि ज्योतिष शास्त्र जहां वेदांग है. वहीं वास्तु शास्त्र अथर्ववेद का एक हिस्सा है. दोनों के जरिए ही मानव जीवन पर प्रभावों की व्याख्या की जाती है बस एक में कुंडली का विश्लेषण किया जाता है और दूसरे में किसी संरचना या ढांचे को आधार बनाया जाता है. वास्तु शास्त्र को आप ज्योतिष शास्त्र का ही विकसित हिस्सा मान सकते हैं.