Nitish Vs Upendra Kushwaha: उपेंद्र कुशवाहा पर कार्रवाई हुई तो इन दोनों में से किसी एक में डाल सकते हैं जान
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Nitish Vs Upendra Kushwaha: उपेंद्र कुशवाहा पर कार्रवाई हुई तो इन दोनों में से किसी एक में डाल सकते हैं जान

 जनता दल यूनाइटेड (Janta Dal United) के बागी नेता उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने पटना की सिन्हा लाइब्रेरी में रविवार को 'असली कार्यकर्ताओं' की दो दिवसीय बुलाई. रविवार दोपहर शुरू हुई बैठक की तस्वीरें जब बाहर आईं तो सभी को हैरानी हुई.

उपेंद्र कुशवाहा, जेडीयू के बागी नेता

Nitish Vs Upendra Kushwaha: जनता दल यूनाइटेड (Janta Dal United) के बागी नेता उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने पटना की सिन्हा लाइब्रेरी में रविवार को 'असली कार्यकर्ताओं' की दो दिवसीय बुलाई. रविवार दोपहर शुरू हुई बैठक की तस्वीरें जब बाहर आईं तो सभी को हैरानी हुई. तस्वीर में उपेंद्र कुशवाहा बैठक को संबोधित करते नजर आ रहे हैं तो बैकग्राउंड में एक बैनर लगा हुआ है. बैनर में एक तरफ नीतीश कुमार (Nitish Kumar) तो दूसरी तरफ उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) की तस्वीर लगी हुई है. अब सवाल उठ रहा है कि एक तरह उपेंद्र कुशवाहा पार्टी के नेता नीतीश कुमार की खुलकर मुखालफत कर रहे हैं तो दूसरी ओर बागी नेताओं की बुलाई बैठक के बैनर में नीतीश कुमार की तस्वीर लगी हुई है. खैर, नीतीश कुमार के अलावा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह (Lallan Singh) और प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा (Umesh Kushwaha) ने उपेंद्र कुशवाहा के इस कदम को पार्टी की अवमानना करार दिया है. माना जा रहा है कि बागी बनकर बैठक बुलाने को लेकर उपेंद्र कुशवाहा पर पार्टी कार्रवाई कर सकती है और उन्हें पार्टी से निष्कासित या निलंबित किया जा सकता है.

  1. लालू प्रसाद यादव के खिलाफ बनाई गई थी समता पार्टी 
  2. समता पार्टी को चुनाव चिन्ह के रूप में मिली थी 'मशाल'

आरएलएसपी को जिंदा करेंगे या समता पार्टी को 

अगर उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ कोई भी कार्रवाई होती है तो जाहिर सी बात है कि वे नया दल बनाएंगे या फिर अपनी पुरानी पार्टी को जिंदा करेंगे. इसमें भी देखने वाली बात यह होगी कि वे अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को जिंदा करते हैं या फिर नीतीश कुमार के साथ जिस पार्टी के वो संस्थापक सदस्य रहे हैं, उसमें जान डालेंगे. उस पार्टी का नाम समता पार्टी है. जॉर्ज फर्नांडीज, नीतीश कुमार, शकुनी चौधरी, उपेंद्र कुशवाहा आदि नेताओं ने मिलकर 1995 लालू प्रसाद यादव के खिलाफ बगावत की थी और समता पार्टी का गठन किया था. समता पार्टी का चुनाव चिन्ह मशाल है और सिंबल के रूप में अब भी मशाल चुनाव आयोग की लिस्ट में शामिल है. माना जा रहा है कि समता पार्टी बनाकर उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार की जड़ पर हमला कर सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो समता पार्टी फिर से जिंदा हो जाएगी.

चुनाव में शिकस्त के बाद एक हुए थे नीतीश-कुशवाहा 

दूसरा विकल्प यह है कि उपेंद्र कुशवाहा अपनी पुरानी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को जिंदा कर दें. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू में तब विलय कर दिया था, जब उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार दोनों को विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. नीतीश कुमार की जेडीयू 2020 के विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर खिसक गई थी और उसके विधायकों की संख्या 40 तक पहुंच गई थी. उपेंद्र कुशवाहा को राज्य में एक भी सीट हासिल नहीं हुई. उसके बाद नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा दोनों की ओर से पहल हुई और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जनता दल यूनाइटेड में विलय हो गया था. यहां तक कि उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया, जिसे अब वे लॉलीपॉप करार दे रहे हैं. उनका कहना है कि संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष तो बना दिया गया लेकिन कोई पावर नहीं दी गई. अब माना जा रहा है कि वे राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को फिर से जिंदा कर सकते हैं.

कार्रवाई हुई तो कोइरी वोट से हाथ धो बैठेंगे नीतीश 

दोनों में से किसी को भी जिंदा करने के बाद उपेंद्र कुशवाहा कुर्मी कोइरी जिसे बिहार में लवकुश समीकरण कहा जाता है, उसमें से कोइरी वोटर को खिसका ले जाएंगे. ऐसा होने पर नीतीश कुमार की ताकत और भी कम होती चली जाएगी और इसी के साथ ही उनका राजनीतिक रसूख भी. हालांकि इसका अंदेशा नीतीश कुमार को रहा होगा, शायद इसलिए उन्होंने अभी से गुलाम रसूल बलियावी को आगे कर दिया है और वे इस समय जबर्दस्त तरीके से तकरीरें दे रहे हैं. ऐसा कर नीतीश कुमार शायद राजद के बेस वोट बैंक में सेंध लगाना चाहते हैं. नीतीश कुमार की एक और दिक्कत यह है कि उनके स्वजातीय और पुराने खास नेता आरसीपी सिंह ने भी मोर्चा खोल दिया है. आरसीपी सिंह की मंशा नीतीश कुमार के कुर्मी वोटरों का एक हिस्सा अपने पक्ष में करने की है, ताकि वे लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी से मोलभाव कर सकें. इस तरह नीतीश कुमार के कई पुराने सहयोगी उनके साथ नहीं होंगे और इस कारण उन नेताओं के चलते जो वोट मिलते हैं वो भी उन्हें नहीं मिलेंगे. हालांकि नीतीश कुमार बिहार की सियासत के जादूगर हैं तो देखना होगा कि कैसे वे इन मुश्किलों से बाहर निकलते हैं.

 

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