बिहार-झारखंड के पुराने झगड़े पर मोदी सरकार करा सकती है द्विपक्षीय वार्ता, जानें पूरा मामला
बिहार की सरकार पेंशन मद में झारखंड को चार हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्जदार बता रही है, जबकि झारखंड का कहना है कि बिहार उसपर अनुचित और अतार्किक तरीके से बोझ लाद रहा है.
रांची: बिहार और झारखंड के बीच सरकारी कर्मियों की पेंशन की देनदारी का झगड़ा 23 साल बाद भी नहीं सुलझ पा रहा. बिहार की सरकार पेंशन मद में झारखंड को चार हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्जदार बता रही है, जबकि झारखंड का कहना है कि बिहार उसपर अनुचित और अतार्किक तरीके से बोझ लाद रहा है. इसे लेकर झारखंड की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर कर रखा है.
आधिकारिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, अब झारखंड की मांग पर केंद्र सरकार इस मसले पर एक बार फिर दोनों पक्षों को वार्ता की मेज पर बुला सकता है. 15 नवंबर 2000 को बिहार के बंटवारे के बाद जब झारखंड अलग राज्य के तौर पर अस्तित्व में आया था, उस वक्त दोनों राज्यों के बीच दायित्वों-देनदारियों के बंटवारे का भी फार्मूला तय हुआ था.
संसद से पारित राज्य पुनर्गठन अधिनियम में जो फामूर्ला तय हुआ था, उसके अनुसार जो कर्मचारी जहां से रिटायर करेगा वहां की सरकार पेंशन में अपनी हिस्सेदारी देगी. जो पहले सेवानिवृत्त हो चुके थे, उनके लिए यह तय किया गया कि दोनों राज्य कर्मियों की संख्या के हिसाब से अपनी-अपनी हिस्सेदारी देंगे. झारखंड के साथ ही वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से कटकर उत्तराखंड एवं मध्य प्रदेश से कटकर छत्तीसगढ़ का निर्माण हुआ था.
इन राज्यों के बीच पेंशन की देनदारियों का बंटवारा उनकी आबादी के अनुपात में किया गया था, जबकि झारखंड-बिहार के बीच इस बंटवारे के लिए कर्मचारियों की संख्या को पैमाना बनाया गया. झारखंड सरकार की मांग है कि उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ की तरह झारखंड के लिए भी पेंशन देनदारी का निर्धारण जनसंख्या के हिसाब से हो. कर्मचारियों की संख्या के हिसाब से पेंशन की देनदारी तय कर दिए जाने की वजह से झारखंड पर भारी वित्तीय बोझ पड़ रहा है.
झारखंड का यह भी कहना है कि उसे पेंशन की देनदारी का भुगतान वर्ष 2020 तक के लिए करना था. इसके आगे भी उसपर देनदारी का बोझ डालना अनुचित है. झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में भी इन तर्कों को आधार बनाया है. चूंकि सुप्रीम कोर्ट में इसपर फैसले में वक्त लग सकता है, इसलिए झारखंड सरकार ने इस मसले को सुलझाने के लिए केंद्रीय मंत्रालय से भी आग्रह किया है.
गौरतलब है कि यह विवाद पूर्वी क्षेत्रीय अंतरराज्यीय परिषद की बैठकों में भी दो बार उठाया जा चुका है, लेकिन इसका समाधान अब तक नहीं हो पाया है. बिहार सरकार का दावा है कि झारखंड सरकार को पेंशन देनदारी के मद में 4000 करोड़ से अधिक की राशि का भुगतान करना पड़ेगा, दूसरी तरफ झारखंड सरकार अपनी देनदारी लगभग 100 करोड़ रुपये ही मानती है. पिछले कुछ अरसे से झारखंड सरकार ने बिहार को पेंशन देनदारी के मद में भुगतान बंद कर रखा है.
झारखंड के महालेखाकार की रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2016-17 में झारखंड से दी जाने वाली पेंशन राशि 15 नवंबर 2000 से पहले सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों से अधिक थी. यानी झारखंड सरकार ने पेंशन देनदारी के मद में अतिरिक्त भुगतान किया. झारखंड का दावा है कि बिहार को किया गया अतिरिक्त भुगतान वापस करना चाहिए.
(आईएएनएस)