पटना : Kamasutra: आज अगर आपके जुबान से इस समाज में केवल कामसूत्र का जिक्र हो जाए तो ऐसा तूफान खड़ा हो जाएगा कि आप एकदम से असहज हो जाएंगे. आप एक झटके में इस समाज के सबसे असभ्य लोगों में से गिने जाने लगेंगे. लेकिन आज से लगभग 2 हजार साल पहले के उस समाज के बारे में सोचिए जब बिहार की धरती पर पैदा हुए ऋृषि वात्स्यायन ने संस्कृत भाषा में कामसूत्र की रचना की. इसके सिद्धांतों को जितना तोड़-मरोड़ कर इन दिनों पेश किया गया है. उसकी वजह रही कि इस ग्रंथ को लोगों के बीच हीन भाव से देखा गया.


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1883 में जब इस किताब का संस्कृत से अंग्रेजी में अनुवाद हुआ तो इस किताब ने तहलका मचा दिया. तब कामसूत्र कहें या कामशास्त्र इस किताब को इथनी प्रसिद्धि मिली की दुनिया के हर देश में इस किताब की डिमांड बढ़ गई. भारत से बाहर के देशों के समाज ने खूले मन से इस पुस्तक को स्वीकार किया लेकिन हमारी कुंठित मानसिकता ने इस किताब को तभी भी नहीं स्वीकारा क्योंकि हम पर्दे के भीतर जीने वाले सभ्य समाज के लोग अपने को मानते रहे और इस किताब की सही व्याख्य कबी की ही नहीं गई. किताब के हर पन्ने जीने की कलाओं से प्रकृति के प्रेम से जीवनसाथी की सही पहचान से और आपके आनंद के पलों से भरा था लेकिन आप तो इसमें केवल काम खोज रहे थे आपके लिए इस किताब का मायना ही इतना रह गया था. 


यह किताब किस कालखंड मे लिखी गई उस समय का समाज कैसा था इसका कोई सही विवरण तो नहीं है लेकिन इस साहित्य की रचना ने इतना तो साबित कर दिया कि तब का समाज आज के समाज से जरूर खुला विचार रखता था वह इतना संकुचित नहीं था. सर रिचर्ड एफ बर्टन ने जब इस साहित्य का अंग्रेजी में अनुवाद किया तो यह एक तूफान लेकर आया. उसके बाद तो दुनिया की हर भाषा में इसका अनुवाद हुआ. 
 
वात्स्यायन की यह पुस्तक दरअसल वैसी थी नहीं जैसा हम सोचते रहे और आज भी सोचते हैं. इसमें वह 64 कलाएं थी जो केवल काम या वासना से नहीं बल्कि संगीत, धर्म, ध्वनि, समाज, लोक, संस्कृति, कला के साथ कई और आयामों से जुड़ी हुई थी लेकिन लोगों को इसमें केवल काम वासना दिखी और इसके स्वरूप को विकृत कर समाज के सामने परोसा गया. 


यह इतना विस्तृत ग्रंथ था कि इसके  7 अधिकरण, 36 अद्याय और 64 प्रकरण हैं. ये वही 64 प्रकरण हैं जिसमें सबकुछ समाहित है और हां इसी में काम-वासना भी है इसके इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन वह भी एक योग के रूप में मानव के कल्याण के स्वरूप में. यह विश्व की प्रथम यौन संहिता मानी जाती है. इसमें धर्म, अर्ध काम, मोक्ष के सभी मार्ग दर्शाए गए लेकिन इसे केवल काम से जोड़कर प्रचारित और बदनाम किया गया. जबकि यह अधूरा सच था.   


अब एक बार सोचकर देखिए की जिस देश में इस ग्रंथ की रचना हुई क्या सच में वह देश विश्वगुरु नहीं होगा. जिस रचना को खुले तौर पर दुनिया के कई देशों ने स्वीकार किया उसको लेकर इतनी भ्रांतियां फैलाई गई कि आज भी देशभर में लगो इसे छुप-छुपकर पढ़ते हैं. मनुष्य के अस्तित्व तक रहने वाले इस ग्रंथ की प्रासंगिकता को इस ग्रंथ को रचे जानेवाली धरती के लोगों ने ही स्वीकार नहीं किया यह कितना अफसोस का विषय है. यही वजह है कि पश्चिमी देशों में काम सामान्य विचार और बातचीत का विषय है जबकि इसे हमारे देश में ही इसपर कोई खुलकर बात नहीं करना चाहता. यही वजह है सेक्स के प्रति लोगों के विचारों ने इस देश में लोगों की मानसिकता को एक कुंछा से भर दिया और धीरे-धीरे समाज में यह एक ऐसे अपराध के रूप में परिवर्तित हो गई कि इसका मूल ज्ञान नहीं होने की वजह से इसे जुड़े अपराध बहुतायत में होने लगे. 


आज बंद कमरे के अंदर सेक्स से परहेज नहीं है लेकिन इस पर खुलकर बात नहीं होगा फिर भी छुपकर इसे देखने में हम अव्वल हैं. जबकि पश्चिमी देशों ने इस विचार पर खुले मंच से बातें की और वह इन विचारों को धारण करने में सफल रहे.  


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