Araria Lok Sabha Seat Profile: देश में लोकसभा चुनाव अगले साल यानी 2024 में होने हैं लेकिन उसकी तैयारियां अभी से शुरू हो चुकी हैं. मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता में हैट्रिक लगाने की कोशिश कर रही है, तो वहीं विपक्ष में अभी रायसुमारी तक नहीं हो पाई है. बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं. इसमें से सीमांचल में कुल 4 सीटें पड़ती हैं. ये सीटें हैं किशनगंज, पूर्णिया,  कटिहार और अररिया.  इन सीटों पर हार जीत का सीधा असर पश्चिम बंगाल की सीटों पर भी देखने को मिलता है. ऐसे में यह चारो सीटें बिहार के लिए बड़ी खास हैं. 


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आज हम बात कर रहे हैं सीमांचल की अररिया सीट की. अररिया लोकसभा क्षेत्र का चुनावी गणित बहुत टेढ़ा है. 1967 में अस्तित्व में आने के बाद से कोई भी दल यह दावे से नहीं कह सकता है कि उसकी जीत पक्की है. 2014 की मोदी लहर में भी यहां राजद ने कब्जा जमाया था तो 2019 में बीजेपी के प्रदीप कुमार सिंह ने कमल खिलाया था. 
हालांकि, बीते 5 साल में गंगा में काफी पानी बह चुका है. 


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पिछले चुनाव के नतीजे


अररिया 1990 में जिला बना लेकिन लोकसभा चुनावों को 1967 से देख रहा है. इस सीट पर कांग्रेस, राजद, जदयू और बीजेपी सभी को राज करने का मौका मिल चुका है. पिछले चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप कुमार सिंह को 6,18,434 वोट मिले थे, जबकि राजद प्रत्याशी सरफराज आलम को 4,81,193 लोगों ने वोट मिले थे. वहीं 2014 के चुनाव में सरफराज के पिता मो. तस्लीमुद्दीन ने प्रदीप कुमार सिंह को मात दी थी. पिता के निधन के बाद सहानुभूति बटोरते 2018 के उपचुनाव में सरफराज भी लोकसभा पहुंचे थे. 


अररिया के सामाजिक समीकरण


'माई' समीकरण की दम पर ही राजद को यहां बढ़त मिलती है, लेकिन इसके बाद भी बीजेपी के प्रदीप सिंह को इस सीट पर तीन बार कामयाबी हासिल हुई है. इसका सबसे बड़ा कारण जातीय समीकरण है. इस सीट पर 44 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं, तो 56 फीसदी हिंदू वोटर हैं. हिंदुओं में 15 फीसदी यादव हैं, तो पिछड़ा, अतिपिछड़ा और महादलित का हिस्सा 28 फीसदी है. वहीं 13 फीसदी सवर्ण वोटर हैं.