2019 लोकसभा चुनाव को बीजेपी और जेडीयू ने मिलकर लड़ा था और प्रदेश की 40 सीटों में से 39 पर जीत हासिल की थी. हालांकि इस बार समीकरण बिल्कुल उलट चुके हैं. नीतीश कुमार इस बार बीजेपी पर ही तीर चलाते हुए तो तेजस्वी यादव भी उनको लालटेन दिखाते नजर आएंगे.
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Katihar Lok Sabha: देश में लोकसभा चुनाव अगले साल यानी 2024 में होने हैं लेकिन उसकी तैयारियां अभी से शुरू हो चुकी हैं. मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता में हैट्रिक लगाने की कोशिश कर रही है, तो वहीं विपक्ष में अभी रायसुमारी तक नहीं हो पाई है. डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के साथ मिलकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी पीएम पद की रेस में हैं. लिहाजा सभी दलों ने अपनी-अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है.
पिछला लोकसभा चुनाव बीजेपी और जेडीयू ने मिलकर लड़ा था और प्रदेश की 40 सीटों में से 39 पर जीत हासिल की थी. हालांकि इस बार समीकरण बिल्कुल उलट चुके हैं. नीतीश कुमार इस बार बीजेपी पर ही तीर चलाते हुए तो तेजस्वी यादव भी उनको लालटेन दिखाते नजर आएंगे. आज हम बात कर रहे हैं कटिहार सीट की. पूरे प्रदेश के साथ कटिहार के समीकरण भी पूरी तरह से बदले हुए हैं.
2019 लोकसभा चुनाव का रिजल्ट
कटिहार जिला पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित है. 2019 में इस सीट से बीजेपी की मदद से जेडीयू के दुलार चंद गोस्वामी लोकसभा पहुंचे थे. दुलार चंद को 5,59,423 वोट मिले थे तो कांग्रेस के तारिक अनवर को 5,02,220 लोगों ने वोट किया था. उससे पहले यहां लड़ाई बीजेपी के निखिल चौधरी और कांग्रेस के तारिक अनवर के बीच होती थी. तारिक अनवर इस सीट से 4 बार सांसद रह चुके हैं, तो निखिल चौधरी भी लगातार तीन बार कमल खिला चुके हैं.
इस सीट के सामाजिक समीकरण
पहले यह पूर्णिया जिले का हिस्सा था. कटिहार संसदीय सीट में 6 विधानसभा सीट कटिहार, मनिहारी, बलरामपुर, प्राणपुर, कदवा और बरारी सीट आती हैं. इसमें से बीजेपी के पास 2, कांग्रेस के पास 2 जबकि जेडीयू और भाकपा (माले) के पास एक-एक सीट है. 2019 में चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, कटिहार लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं की संख्या 16,45,713 थी, जिसमें 8,71,731 पुरूष और 7 लाख 97 हजार महिलाएं थीं.
कटिहार का राजनीतिक इतिहास
कटिहार लोकसभा सीट पर सबसे पहली बार साल 1957 में चुनाव हुआ था. इसमें कांग्रेस के अवधेश कुमार सिंह चुनाव जीते थे. 1958 में ही इस सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के बी. विश्वास जीते. साल 1962 में यह सीट प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के खाते में गई और प्रिया गुप्ता चुनाव जीतने में कामयाब रही. 1967 में एक बार फिर से यह सीट कांग्रेस के खाते में गई और सीताराम केसरी चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. जबकि 1977 में इस सीट पर जनता पार्टी को जीत मिली.
1980 में पहली बार जीते थे तारिक अनवर
1980 में कांग्रेस की टिकट पर तारिक अनवर जीत दर्ज करके पहली बार लोकसभा पहुंचे थे. 1989 और 1991 में जनता दल के प्रत्याशी ने उनको मात दी. लेकिन 1996 में उन्होंने फिर से कब्जा कर लिया और 1998 में भी वही जीते थे. 25 मई 1999 को उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देकर एनसीपी ज्वाइन कर ली और 1999 में चुनाव हार गए.
1999 में पहली बार खिला कमल
1999 में इस सीट पर पहली बार कमल खिला. बीजेपी के निखिल चौधरी ने लगातार तीन बार तारिक अनवर को मात दी. हालांकि 2014 की मोदी लहर में वह इस सीट को बचा नहीं सके. 2014 में जब पूरे देश में बीजेपी की लहर चली तो इस सीट पर एनसीपी की टिकट पर तारिक अनवर ने जीत हासिल की. 28 सितंबर 2018 को तारिक ने NCP और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और 19 साल बाद कांग्रेस में वापसी कर ली.