Khagaria Lok Sabha Seat Profile: देश में लोकसभा का चुनावी रण सजने लगा है. सभी दलों की ओर से अपनी-अपनी रणनीति तैयार की जा रही है. पार्टियां ऐसे महारथियों को तलाश रही हैं, जो अपने विरोधियों को चित्त करने की कला में माहिर हों. लोकसभा चुनाव में दिल्ली पहुंचने के लिए यूपी-बिहार काफी महत्वपूर्ण होते हैं. कहा जाता है कि जिसने यूपी-बिहार जीत लिया, उसने उसे ही दिल्ली के सिंघासन में बैठने का मौका मिलता है. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें आती हैं. आज हम खगड़िया सीट के बारे में बात कर रहे हैं. खगड़िया जिले का इतिहास काफी पुराना है. 


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महाभारत काल में इस क्षेत्र को चम्पा के नाम से जाना जाता था. माना जाता है कि यह क्षेत्र कर्ण की राजधानी हुआ करता था. मुगल इतिहास में भी इस क्षेत्र का काफी वर्णन है. कहा जाता है कि पांच शताब्दी पूर्व मुगल शासक के राजा अकबर ने अपने मंत्री टोडरमल को यह निर्देश दिया कि वह सम्पूर्ण साम्राज्य का एक मानचित्र तैयार करें, लेकिन टोडरमल खगड़िया क्षेत्र का मानचित्र तैयार करने में सफल नहीं हो सके थे, क्योंकि यह जगह कठिन मैदानों, नदियों और सघन जंगलों से घिरी हुई थी. 


खगड़िया लोकसभा सीट का इतिहास


खगड़िया लोकसभा सीट वर्ष 1957 में अस्तित्व में आई थी. इस सीट के पहले सांसद के रूप में कांग्रेस के जिया लाल मंडल का नाम दर्ज है. हालांकि तीसरे ही चुनाव यानी 1967 में जनता ने उनको कुर्सी से उतार दिया और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को जीत हासिल हुई. 1971 में सोशलिस्ट पार्टी का प्रत्याशी जीता. 1977 में यहां पर जनता पार्टी के ज्ञानेश्वर प्रसाद यादव को जीत मिली. 


सिर्फ एक बार जली राजद की लालटेन


1980 और 1984 में कांग्रेस ने फिर से कब्जा जमाया. तो 1989 से 1998 तक जनता दल का झंडा बुलंद रहा. 1998 में समता पार्टी ने कब्जा जमाया. 1999 के उपचुनाव में जदयू का प्रत्याशी जीतकर लोकसभा पहुंचा. 2004 में राजद की लालटेन जली तो 2009 में एक बार फिर से जदयू ने कब्जा कर लिया. NDA गठबंधन में 2014 से यह सीट लोजपा के पास है. इस समय यहां से चौधरी महबूब अली कैसर सांसद हैं.


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कभी कांग्रेसी थे महबूब अली कैसर 


मौजूदा सांसद महबूब अली कैसर कभी कांग्रेसी हुआ करते थे. उनके पिता स्वर्गीय चौधरी सलाहुद्दीन, बिहार के पूर्व कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर कैसर अली ने नाराज होकर लोजपा ज्वाइन कर ली थी. लोजपा ने उन्हें टिकट दिया और उन्होंने धमाकेदार जीत दर्ज की थी. 2019 में लोजपा ने एक बार फिर से उन्हें मैदान में उतारा था और उन्होंने फिर से जीत हासिल की थी. हालांकि अब रामविलास पासवान के निधन से लोजपा भी दो भागों में बंट चुकी है और एनडीए से जदयू भी बाहर हो चुकी है.