Lok Sabha Election 2024 Arrah Seat: आरा सीट पर बीजेपी लगा पाएगी जीत की हैट्रिक? जानिए कैसे हैं समीकरण
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Lok Sabha Election 2024 Arrah Seat: आरा सीट पर बीजेपी लगा पाएगी जीत की हैट्रिक? जानिए कैसे हैं समीकरण

आरा का संबंध महाभारत काल से है. कहा जाता है कि पांडवों ने भी अपना गुप्तवास काल यहां पर बिताया था. इसके अलावा यह भूमि 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी बाबू कुंवर सिंह की कार्यस्थली भी है. 

आरा रेलवे स्टेशन (File Photo)

Arrah Lok Sabha Seat Profile: मोदी सरकार अगले साल एक बार पिर से जनता के दरबार में जाने वाली है, यानी अगले साल देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. पिछले चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटों के साथ प्रचंड जीत हासिल की थी. इसमें बिहार की जनता का काफी बड़ा योगदान था, क्योंकि प्रदेश की 40 में से 39 सीटों पर NDA के प्रत्याशियों की जीत हुई थी. मोदी की आंधी में लालू परिवार के लोग भी चुनाव हार गए थे. आज हम आरा लोकसभा सीट की बात कर रहे हैं. 

 

आरा सीट से बीजेपी के आरके सिंह ने पहली बार 2014 में कमल खिलाया था. धमाकेदार जीत के स्वरूप उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में भी जगह मिली. 2019 में भी आरके सिंह ही विजयी हुए थे, उन्होंने सीपीआइ माले के राजू यादव को शिकस्त दी थी. इसी के साथ आरा सीट से तकरीबन 35 साल बाद कोई प्रत्याशी लगातार दूसरी बार लोकसभा पहुंचा था. इससे पहले 1984 के बाद से यहां की जनता हर पांच साल बाद अपना प्रतिनिधि बदल देती थी. 

आरा लोकसभा सीट का इतिहास

आरा का संबंध महाभारत काल से है. कहा जाता है कि पांडवों ने भी अपना गुप्तवास काल यहां पर बिताया था. इसके अलावा यह भूमि 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी बाबू कुंवर सिंह की कार्यस्थली भी है. शुरू में इस सीट पहचान शाहाबाद लोकसभा क्षेत्र के नाम से थी. 1991 से पहले आरा में बक्सर और आरा संसदीय क्षेत्र आते थे. नए परिसीमन में मनेर विधानसभा को आरा से अलग कर पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र में जोड़ दिया गया. आरा का वर्तमान चुनावी क्षेत्र भोजपुर जिले की परिधि में सिमट गया है.

आरा सीट का राजनीतिक इतिहास

1952 से 2019 तक आरा सीट पर 17 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. इस सीट पर राजनीतिक दलों की पहली पसंद बाहरी प्रत्याशी रहे हैं. यही वजह है कि 15 बार यहां की जनता ने बाहरी प्रत्याशियों को जीताकर दिल्ली भेजा है. इस सीट के वर्तमान सांसद केंद्रीय मंत्री आरके सिंह भी सुपौल से हैं. 1952 से 1971 तक कांग्रेस के दिग्गज नेता बलिराम भगत यहां से चुने जाते रहे. वह भी पटना के रहने वाले थे. हरिद्वार प्रसाद सिंह और मीना सिंह ही दो ऐसे स्थानीय नेता हुए जिन्हें इस सीट का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला.

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आरा में बनते बिगड़ते रहे समीकरण

आरके सिंह से पहले ये सीट बीजेपी के लिए अछूत थी. इतना ही नहीं 1984 से 2019 से पहले तक आरा की जनता हर पांच साल बाद नए प्रत्याशी को मौका देती थी. जातीय समीकरणों से इतर देखें तो ये जिला आज भी विकास को तरस रहा है. यहां आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. यहां के सांसद आरके सिंह ने बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से काम तो किया, पर वह काफी नहीं है. 

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