मैं 2000 रुपये का नोट हूं. 8 नवंबर 2016 को जब देश की सरकार के मुखिया पीएम नरेंद्र मोदी ने पुराने नोटों को लीगल टेंडर न होने का ऐलान किया तो उसके बाद मेरी पैदाइश हुई. जब मेरा  प्रादुर्भाव हुआ, जब जानें क्या क्या बातें हुई थीं. मेरे बारे में बढ़-चढ़कर बताया गया था. मेरे अंदर चिप डालने की बात कही गई थी और उस आधार पर यह भी कहा गया था कि उस चिप के जरिए मैं जहां कहीं भी रहूं, मुझे ट्रैक किया जा सकेगा. यह अपने आप में ऐतिहासिक बकैती थी और समय बीतने के साथ ही वो सब बातें टीवी चैनलों के शो तक ही सिमट कर रह गए. न मेरे अंदर कोई चिप डाला गया और न ही मुझे ट्रैक करने का कोई जुगाड़ किया गया. एक तरह से यह मेरे साथ नाइंसाफी हुई न. इतनी बड़ी-बड़ी बातें करने के बावजूद मुझे भी अन्य नोटों की तरह सामान्य बना दिया गया. कहां तो मैं चिप की बातें सुनकर खुद को प्रीमियम महसूस कर रहा था और कहां मुझे अदना सा नोट ही बनकर रहना पड़ा. 


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जब से मेरा प्रादुर्भाव हुआ, तब से मेरे बारे में तरह-तरह की बातें की जानें लगीं. कई विशिष्ट लोगों ने मेरे प्रादुर्भाव के साथ ही मेरे साथ ब्लैक मनी के तोहमत जड़ दिए. यह कहा जाने लगा कि काला धन रोकने के लिए 500 और 1000 रुपये के नोट बंद कर दिए गए लेकिन 2000 रुपये के नोटों से काला धन और बढ़ सकता है. मतलब मेरी पैदाइश के साथ ही अपशकुन का टीका लगा दिया गया. समय-समय पर मुझे बैन करने की भी बातें मार्केट में उठती रहीं. जब एटीएम से मैं कम निकलने लगा, तब भी यह अंदेशा जताया गया कि कभी न कभी यह नोट बंद हो सकता है. 


संसद में सरकार से सवाल किए गए कि क्या 2000 रुपये के नोट बंद होने वाले हैं, तब तो सरकार ने उत्तर दिया कि ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है. सरकार इस बात से इनकार करती रही कि 2000 रुपये के नोट बंद किए जाने वाले हैं. यहां तक कि समाज के विभिन्न तबकों से उठने वाले सवालों का भी सरकार ने यह कहकर उत्तर दे दिया कि 2000 रुपये के नोट मार्केट में बदस्तूर चल रहे हैं और आगे भी चलते रहेंगे. 


अब मैं पूछना चाहता हूं कि आखिर मेरी ऐसी क्या गलती रही कि मेरी पैदाइश के समय से ही मुझे शक की निगाह से देखा जाता रहा. मैं आज उस अभागे बेटे की तरह महसूस कर रहा हूं, जिसके जन्म के समय से ही पिता मुंह फेरता रहता है. आज जब रिजर्व बैंक ने मुझे अभागे को मार्केट से वापस लेने का ऐलान किया तो मेरा तो कलेजा मुंह को आ गया. अब किसी ने मेरा बंडल बनाकर कालाधन जमा कर लिया है तो इसमें भला मेरी क्या गलती हो सकती है. 


यह तो अच्छा हुआ कि रिजर्व बैंक ने वैसा नहीं किया, जैसा पीएम मोदी ने 500 और 1000 रुपये के नोटों के साथ किया. पीएम मोदी ने तो तत्काल प्रभाव से इन नोटों को लीगल टेंडर न होने का ऐलान कर दिया था और ये नोट उसी दिन से रद्दी बन गए थे. कम से कम मैं इस मामले में भाग्यशाली हूं कि मैं आज से और अभी से रद्दी नहीं बना. मुझे मार्केट से आउट करने के लिए 30 सितंबर तक का समय दिया गया है. हां, इस मामले में मैं खुद को प्रीमियम नोट महसूस कर सकता हूं. कम से कम प्रीमियम होने के नाते रिजर्व बैंक ने कुछ तो समय दिया. इससे एक आस बंधती है कि मैं अभी मार्केट में 4 महीनों के लिए जिंदा रहूंगा. 30 तारीख को मेरा फातिहा पढ़ा जाएगा और मैं हमेशा के लिए इतिहास बन जाउंगा. उम्मीद है आप मुझे याद करते रहोगे. आमीन!