Holi 2023: फाल्गुन माह जो सभी में उमंग भर देता है इसका यहीं से श्रीगणेश भी होता है. एक से एक लोग फाग गीतों की रचना करते थे जिसे वे ढोलक की थाप व मंजीरे पर लोगों को सुनाकर उमंगों से सराबोर कर देते थे.
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Patna: Holi 2023: बिहार में चहुंओर होली की तैयारी अंतिम चरण में है. भारतीय संस्कृति को अपने में समेटे इस पर्व में इसके गीत का अपना महत्व है. आज आधुनिकता के दौड़ में समाज इन गीतों को भले भूलता जा रहा है, लेकिन आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बसंत पंचमी के बाद फाग की धुन मंजीरे तथा ढोलक की थाप पर होली के पारम्परिक गीतों के साथ देर रात तक चहुंओर सुनाई पड़ती थी, जो फाल्गुन महीना होने आभास कराता था. आज आधुनिकता के दौर में इन फाग गीतों का स्थान दो अर्थी फूहड़ गीतों ने ले लिया है. गौर से देखे तो ऋतुओं के मुताबिक भारतीय संस्कृति में पर्वों का अपना स्थान है.
फगुआ के उमंगों से सराबोर होता है माहौल
फाल्गुन माह जो सभी में उमंग भर देता है इसका यहीं से श्रीगणेश भी होता है. एक से एक लोग फाग गीतों की रचना करते थे जिसे वे ढोलक की थाप व मंजीरे पर लोगों को सुनाकर उमंगों से सराबोर कर देते थे. फगुआ गायक शिशिर शुक्ला बताते हैं कि होली गीतों में भक्ति रस है तो वियोग और मिलन से भी सराबोर होता है. वे भी मानते हैं कि आज पारंपरिक गीतों का ह्रास हुआ है, लेकिन आज भी कई इलाकों में इसका अपना महत्व है. वे कहते है कि गांवों में जो फाल्गुन मास में जोगीरा व फगुआ गीत ढोलक की थाप व मंजीरे के साथ सुनाई पड़ते थे वह अब कहीं सुनने को नहीं मिल रहे हैं.
गायक धर्मेंद्र छबीला ने कही ये बात
इधर, गायक धर्मेंद्र छबीला मानते हैं कि आधुनिकता का चाहे जितना भी रंग चढ़ा हो, पर होली की प्राचीन परंपरा और गीत अभी भी गांव कस्बों में जीवित हैं. यह अपनी सभ्यता, संस्कृति व लोक परंपरा का द्योतक है.
होली के गीतों में मिठास होने के साथ हमें अपनी परंपराओं से जुड़े रहने के संदेश देने के साथ समाज को भी सुंदर बनाता है. इन गीतों में सीता राम के प्रेम, राधा कृष्ण के प्रेम के साथ प्रकृति की सुंदरता का वर्णन है. प्रदेश के अलग अलग जगहों पर गीत के बोल में थोड़ा बहुत अंतर होता है, लेकिन अर्थ एक होते हैं.
इन गीतों में विरह और वेदना भी सुनने को मिलता है. बहरहाल, फगुआ गीतों के गायकों का मानना है कि आज जरूरत है कि होली पर्व के मौके पर समाज होली की संस्कृति को बचाने के लिए आगे आए. अगर समय से इसके लिए पहल नहीं की गई तो डर है कि आने वाले समय में ग्रामीण क्षेत्रों से भी ये पारंपरिक गीत कहीं विलुप्त न हो जाए.
(इनपुट: भाषा के साथ)