Tulsi Mala Jap Niyam: माला जाप में शिवजी की आराधना का मंत्र ओम नम: शिवाय होता है. इसके अलावा विशेष साधना में महा मृत्युंजय मंत्र का जाप भी किया जाता है. भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी माला के जरिए हरिनाम जाप किया जाता है.
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पटनाः Tulsi Mala Jap Niyam: सनातन परंपरा में जप का बहुत महत्व बताया गया है. जप प्रार्थना और आध्यात्म की वह विधा है, जहां आप किसी भी कठिन पूजा पद्धति के बजाय सिर्फ नाम स्मरण को ही पूजा मान लेते हैं और इसके जरिए ही आप परमात्मा के प्रति अपना समर्पण प्रदर्शित करते हैं. नाम स्मरण औऱ जप का यह कार्य माला के जरिए किया जाता है. शैव समुदाय के लोग और इसके साथ ही शिवजी के नाम का स्मरण करने वाले लोग रूद्राक्ष की माला से यह जाप करते हैं, जबकि वैष्णव लोग भगवान विष्णु का नाम स्मरण तुलसी की माला से करते हैं. दोनों ही प्रकार अति उत्तम है.
इस मंत्र का करें जाप
माला जाप में शिवजी की आराधना का मंत्र ओम नम: शिवाय होता है. इसके अलावा विशेष साधना में महा मृत्युंजय मंत्र का जाप भी किया जाता है. भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी माला के जरिए हरिनाम जाप किया जाता है. इसका मंत्र है ओम विष्णवे नम:. गायत्री परिवार से जुड़े लोग, गायत्री मंत्र का जाप भी माला के जरिए करते हैं.
सबसे शुद्ध है तुलसी माला
तुलसी की माला से जप करना तथा तुलसी की माला धारण करना अतिउत्तम माना गया हैं. हिंदू सनातन धर्म में तुलसी की माला सभी माला में सबसे शुद्ध मानी जाती हैं. यह तुलसी माला तुसली माता की पौधों की लकड़ियों से बनती है. इस माला में कम से कम 27 या 108 मनके होने जरूरी हैं. इससे कम या ज्यादा मनके वाली माला नहीं होनी चाहिए. अधिकतर लोग 108 मनके की माला से ही जाप करते हैं. तुलसी की माला में हर एक मनके के बाद गांठ लगी होनी जरूरी हैं. ध्यान रखना चाहिए कि,जिस माला से आप जप करते हैं. उस माला को कभी नहीं पहनना चाहिए.जाप करने के लिए जरूरी है कि हमेशा तुलसी माला को स्वस्छ कपड़े से ढककर मंत्र जाप आदि करे.
नहीं लांघे गुरु पर्वत
जाप करने का सबसे जरूरी नियम है कि जब भी आपको एक से अधिक, जैसे 5, 11, 21 बार (या जितनी भी बार आप चाहें) जाप करना है तो जब आप जाप करते हुए 108वें मनके पर पहुंचे, तो उसे पार नहीं करें, बल्कि उस मनके को मस्तक और हृदय से लगाकर माला को वहीं से पलट लें और फिर से वहीं से जाप करना शुरू करें. असल में 108वां मनका बृहस्पति पर्वत कहलाता है और गुरु का स्वरूप होता है. यही 108वां मनका होता है जिसके स्पर्श से आपको मार्गदर्शन मिलता है कि एक माला यहां पूरी हुई, अब अगले फेर की माला शुरू करें. गुरु को पार नहीं किया जाता है. उन्हें लांघना उनका अपमान होता है और इससे माला का फल नहीं मिलेगा.