कॉलेज में क्लर्क की नौकरी करते थे लालू यादव, BJP की मदद से इस तरह CM की कुर्सी तक पहुंचे
एक सामान्य परिवार में पैदा हुए लालू यादव जब पढ़ने के लिए कॉलेज पहुंचे तो यहां यूनिवर्सिटी लेवल पर होने वाले चुनाव ने उनको काफी प्रभावित किया. इसके बाद लालू यादव राजनीति में एंट्री करने के बारे में सोचने लगे. फिर क्या था 1971 में उन्होंने पटना छात्र संघ चुनाव में पर्चा भर दिया, लेकिन इस चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली और वह बुरी तरह हार गए
Patna: बिहार ही नहीं बल्कि देश की सियासत में लालू यादव (Lalu Yadav) का एक अहम स्थान है. बिहार से अपनी राजनीति शुरू करने वाले लालू यादव देखते ही देखते देश के बड़े नेताओं की लिस्ट में शामिल हो गए.
लालू यादव अपने चुटीली बातों व मजाकिया लहजे के लिए जितना बिहार में लोकप्रिय हैं, उतना ही विदेशों में भी लोकप्रिय हैं. हाल में चारा घोटाला मामले में जेल से बाहर आने वाले राजद सुप्रीमो को आज के समय में भले ही भाजपा का धुर विरोधी माना जाता हो, लेकिन यह भी सच्चाई ही है कि कॉलेज के क्लर्क से लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक लालू यादव बीजेपी के ही बदौलत पहुंचे हैं.
यह बात 1971 की है. एक सामान्य परिवार में पैदा हुए लालू यादव जब पढ़ने के लिए कॉलेज पहुंचे तो यहां यूनिवर्सिटी लेवल पर होने वाले चुनाव ने उनको काफी प्रभावित किया. इसके बाद लालू यादव राजनीति में एंट्री करने के बारे में सोचने लगे. फिर क्या था 1971 में उन्होंने पटना छात्र संघ चुनाव में पर्चा भर दिया, लेकिन इस चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली और वह बुरी तरह हार गए.
इस चुनाव हार के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए लालू यादव कॉलेज में क्लर्क की नौकरी करने लगे. नौकरी करने के दौरान भी लालू यादव के मन में छात्र संघ चुनाव में हार की जो टीस थी, वह खत्म नहीं हुई.
यही वजह था कि नौकरी करते हुए एक बार फिर से 1973 में लालू यादव ने एक बार फिर से अध्यक्ष पद के लिए पर्चा भर दिया. इस बार लालू यादव ने समाजवादी युवजन सभा के बैनर तले पर्चा भरा था.
यह वह समय था जब देश में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद अपने संगठन का विस्तार कर रहा था. पटना यूनिवर्सिटी में एबीवीपी संगठन ने लालू यादव की पार्टी का समर्थन किया. परिणाम यह हुआ कि इस चुनाव में लालू यादव भारी मतों से अध्यक्ष पद पर चुनाव जीत गए. इस चुनाव में सुशील कुमार मोदी महासचिव बने थे. यहां से लालू यादव का राजनीतिक करियर शुरू हो गया था.
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बाद में लालू यादव जनता दल पार्टी के सदस्य बन गए. राजनीति में अपनी दिलचस्पी की वजह से लालू यादव जल्द ही इस पार्टी के बड़े नेता बन गए थे. इसके बाद 1990 में वह समय भी आया जब चुनाव के बाद लालू यादव की पार्टी जनता दल को 324 में से 122 सीटें मिली लेकिन बहुमत के लिए 163 चाहिए था.
ऐसे समय में भाजपा ने अपने 39 विधायकों के साथ जनता दल का समर्थन किया और प्रदेश में जनता दल की सरकार बन गई. जनता दल की सरकार में लालू यादव मुख्यमंत्री चुन लिए गए. इस तरह लालू यादव ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत एबीवीपी (ABVP) की मदद से की थी और फिर बाद में प्रदेश के मुख्यमंत्री भाजपा (BJP) की मदद से बने थे.
हालांकि, बाद में लालकृष्ण आडवाणी (L.K. Advani) को गिरफ्तार करने के बाद भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया था, लेकिन अब तक लालू राजनीति के मैदान के उस्ताद खिलाड़ी हो गए थे. उन्होंने भाजपा के विधायकों को तोड़कर अपनी सरकार बचा ली थी.