आखिर किसने बिहार के इस शिक्षा के मंदिर को मिटाकर उसके ऊपर भर दी थी मिट्टी
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आखिर किसने बिहार के इस शिक्षा के मंदिर को मिटाकर उसके ऊपर भर दी थी मिट्टी

Vikramshila University Bhagalpur: बिहार के भागलपुर शहर से करीब 38 किलोमीटर पूर्व गंगा के किनारे एक छोटा सा शहर है कहलगांव. जहां से थोड़ी दूरी पर एक गांव है अंतीचक. यहां आप विक्रमशिला विश्वविद्यालय के खंडहर देख सकते हैं. 

 (फाइल फोटो)

भागलपुरः Vikramshila University Bhagalpur: बिहार में प्राचीन काल में शिक्षा के दो बड़े मंदिर हुआ करते थे. एक नालंदा विश्वविद्यालय और दूसरा विक्रमशिला विश्वविद्यालय. दोनों ही आवासीय विश्वविद्यालय एक समय दुनिया के सबसे बड़े शिक्षण संस्थानों में से एक थे. नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में तो लगभग सभी जानते हैं कि आतातायी बख्तियार खिलजी ने इस शिक्षा के मंदिर को अपनी क्रुरता के दंश का शिकार बनाया लेकिन क्या आपको पता है कि विक्रमशिला विश्वविद्यालय को बर्बाद किसने किया. अगर नहीं तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे. 

कहां है विक्रमशिला विश्वविद्यालय का खंडहर 
बिहार के भागलपुर शहर से करीब 38 किलोमीटर पूर्व गंगा के किनारे एक छोटा सा शहर है कहलगांव. जहां से थोड़ी दूरी पर एक गांव है अंतीचक. यहां आप विक्रमशिला विश्वविद्यालय के खंडहर देख सकते हैं. गंगा के किनारे के यह क्षेत्र एक तरफ डॉल्फिन अभयारण्य के नाम से मशहूर है तो वहीं दूसरी तरफ यहां पास में स्थित बटेश्वर धाम का क्षेत्र बिहार के काशी के नाम से जाना जाता है. ऐसे में दुनिया के 5 सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक विक्रमशिला विश्वविद्यालय के खंडहरों को देखने पर्यटक आज भी बड़ी संख्या में यहां आते हैं. 

किसने करायी थी विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना
विक्रमशिला विश्वविद्यालय के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने 8वीं सदी के अंतिम वर्षों या 9वीं सदी के शुरुआत में की थी. इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि लगभग 400 साल तक यह शिक्षा का केंद्र शिक्षा की अलख जगाता रहा और 13वीं सदी की शुरुआत में इसे भी नष्ट कर दिया गया. कहते हैं कि राजा धर्मपाल को 'विक्रमशील' की उपाधि मिली थी जिसके चलते इस विश्वविद्यालय का नाम 'विक्रमशिला' पड़ा. 

नालंदा भी जाते थे यहां के शिक्षक 
इस विश्वविद्यालय के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहां के शिक्षक नालंदा और नालंदा के शिक्षक विक्रमशिला विश्वविद्यालय में छात्रों को शिक्षा देने के लिए आते जाते रहते थे. यह एक आवासीय विद्यालय था. विक्रमशिला विश्वविद्यालय के बारे में कहा जाता है कि यहां हजारों की संख्या में शिक्षक और अनुमानतः 10 हजार से ज्यादा छात्र रहकर पठन-पाठन का काम करते थे. नालंदा और विक्रमशिला दोनों विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के शासन काल में हुई थी और ये दोनों शिक्षा के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध थे. 

100 एकड़ से ज्यादा में फैला था यह शिक्षा का मंदिर 
विक्रमशिला विश्वविद्यालय के बारे में कहा जाता है कि इसका क्षेत्र 100 एकड़ से भी ज्यादा जमीन में फैला हुआ था. यहां छात्रों, शिक्षकों के रहने के लिए आवास, स्नानागार, खाने-पीने के लिए रसोई, पढ़ाई के लिए कक्षाएं, लाइब्रेरी के साथ ही ध्यान साधना के लिए भी कई केंद्र थे. 1960 में इस जगह की खुदाई के बाद इस विश्वविद्यालय के अवशेष मिले और आज भी इसका बड़ा हिस्सा मिट्टी में दफन है.   

संस्कृत में दी जाती थी शिक्षा
कहते हैं यहां शिक्षा का माध्यम संस्कृत था, मतलब यहां संस्कृत भाषा में अध्ययन-अध्यापन होती थी. इस विश्वविद्यालय में छात्र तंत्र विद्या, व्याकरण, न्याय, सृष्टि विज्ञान, शब्द विज्ञान, शिल्प विद्या, विज्ञान, चिकित्सा विद्या, सांख्य, वैशेषिक, अध्यात्म विद्या, जादू एवं चमत्कार विद्या का ज्ञान प्राप्त करते थे. 

किला समझकर मिटा दिया गया यह विश्वविद्यालय
बख्तियार खिलजी ने जब नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया तो वह आगे बढ़ा और यहां पहुंचा. उसने इस विश्विद्यालय को दुर्ग समझकर इसे नष्ट कर दिया और कहा जाता है कि इसके ऊपर मिट्टी का ढेर खड़ा कर दिया. इतिहास की मानें तो खिलजी ने 1202-1203 ई. में इस विक्रमशिला महाविहार जिसे विक्रमशिला विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्धि मिली है को नष्ट कर दिया था.

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