Paryushan Parv 2024: 1 सितंबर दिन रविवार से जैन लोगों का उनका महापर्व पर्युषण का आरंभ हो रहा है. ये पर्व आठ दिनों तक चलता है. वैसे तो इसका आरंभ कल ही हो गया, लेकिन आज से ये पर्व शुरू हो रहा है. इस साल इसे 31 अगस्त से 8 सितंबर तक मनाया जाएगा. पर्व के आखिरी दिन संवत्सरी महापर्व मनाया जाता है, जिसे क्षमापर्व के नाम से भी जाना जाता है. वहीं, दिगंबर समाज 8 सितंबर दिन रविवार से लेकर 17 सितंबर दिन मंगलवार तक दस लक्षण पर्व मनाएंगे.
जैन लोग पर्युषण पर्व को भगवान महावीर के सिद्धांतों को मानते हुए, अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जिने दो की संदेश को अपनाते हुए रखते हैं. मान्यता है कि इस पर्व को मनाने से व्यक्ति के मरनो उपरांत मोक्ष का द्वार खुलता है.
श्वेतांबर और दिगंबर जैन समाज के लोग पर्वों का राजा और महापर्व पर्युषण को दशलक्षण पर्व भी कहते हैं. इस पर्व में जैन लोग पूरे 10 दिन का उपवास रखते है. जो कि 8 सितंबर से 17 सितंबर तक रखा जाएगा. 17 सितंबर, अनंत चतुर्दशी के दिन इस व्रत का समापन होगा.
जैन धर्म के लोग बहुत ही नियम अनुसार पर्यूषण पर्व के व्रत को दस दिनों तक रखते हैं. जिसमें वो उपवास के अलग-अलग दिन अपने व्यवहार, कर्म और सोच को ध्यान में रखकर कोई भी कृत करते हैं.
पर्युषण पर्व में रखे जाने वाले 10 दिनों के व्रत के लिए अलग-अलग दिन अलग नियम और कर्म को निर्धारित किया गया है. जैसे पहले दिन के व्रत में ये नियम है कि मनुष्य अपने क्रोध पर संयम रखें और शांत मन से अपने कर्मों का निर्वहन करें. व्यक्ति को अगर कभी किसी बात पर क्रोध आए भी तो उसे उस पर काबू बनाएं रखना है.
पर्युषण पर्व व्रत के दूसरे दिन उपासक ये कोशिश करता है कि वो अपने मन को शुद्ध और निश्छल बनाएं रखें. अपने स्वभाव में विनम्रता और मिठास की भावना को लाएं. साथ ही किसी भी व्यक्ति के लिए अपने मन में द्वेष और घृणा की भावना को न आने दें.
उपासक तीसरे दिन के व्रत में अपने मन की निष्ठा और संकल्प पर काम करता है. व्यक्ति कोशिश करता है कि उसने जो मन में सोचा, ठाना है उसे सफलतापूर्वक पूरा करें.
चौथे दिन के व्रत में उपासक ये कोशिश करता है कि वो कम से कम बोलने का प्रयास करें, जहां जरूरत हो वहीं बोले, लेकिन जो भी बोले अच्छा, मंगलकारी, तथ्यों से पूर्ण और सच बोले.
पांचवें दिन के व्रत को रखने वाला व्यक्ति ये कोशिश करता है कि उसके मन में किसी तरह का लालच और स्वार्थ पैदा न हो. वो अपने मन में स्वार्थ, लालच जैसे भावनाओं पर काबू पाने की कोशिश करता है.
व्रत के छठे दिन उपासक ये कोशिश करता है कि वो खुद पर काबू रखते हुए, संयम से अपने कामों को करें. अपने मन से अहंकार की भावना को दूर रखें. वहीं, सातवें दिन उपासक ये कोशिश करता है कि मन में आने वाले दुर्भावना, अस्वच्छ विचार को दूर रखें.
इसी तरह आठवें, नौवें और दसवें दिन उपासक अपने अंदर अच्छे विचार, अच्छे व्यवहार, शुद्ध मन, सकारात्मक सोच, ज्ञान की वृद्धि जैसे गुणों को अपनाने के लिए तपस्या करते हैं. उससे जुड़े कार्यों को करते हैं.
पर्युषण पर्व के दस दिनों के कठिन व्रत को रखना काफी मुश्किल होता है. इसे रखने से आत्मशुद्धि होती है. इस व्रत को रखने के दौरान उपासक दान-पुण्य, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन, क्षमायाचना समेत कई कार्यों को करते हैं.