बिहार में भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव से एक साल से ज्यादा समय पहले से ही एक्शन मोड में है. दरअसल भाजपा बिहार में बेहतर प्रदर्शन के जरिए पड़ोसी राज्यों पर भी अपना असर छोड़ना चाहती है.
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पटना: बिहार में भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव से एक साल से ज्यादा समय पहले से ही एक्शन मोड में है. दरअसल भाजपा बिहार में बेहतर प्रदर्शन के जरिए पड़ोसी राज्यों पर भी अपना असर छोड़ना चाहती है. अगर भाजपा बिहार में अपने मिशन में कामयाब हुई तो उसका सीधा असर सीमांचल से सटे पश्चिम बंगाल के हिस्से, यूपी और बिहार के पूर्वांचल वाले हिस्से के साथ झारखंड पर भी सीधे तौर पर पड़ेगा. भाजपा किसी भी कीमत पर इस फायदे को हासिल करने से चुकना नहीं चाहती है.
आपको बता दें कि बिहार में भाजपा इस बार नीतीश के सहारे नहीं बल्कि खुद की रणनीति से यहां 40 में से 39 सीटों पर जीत का लक्ष्य लेकर चल रही है. बता दें कि नीतीश के साथ होने पर भाजपा के लिए यह लक्ष्य थोड़ा आसान था लेकिन नीतीश के साथ नहीं होने की वजह से उसके लिए यह लक्ष्य थोड़ा ज्यादा कठिन है. ऐसे में भाजपा एक खास प्लान के जरिए बिहार की राजनीति को बदलने की तैयारी में लग गई है. दरअसल बिहार की राजनीति में जीत और हार का समीकरण जाति के आधार पर तय होता है. बिहार में मुस्लिम और यादव जो दो ज्यादा आबादी वाली जातियां हैं जिनके पास वोटरों की संख्या ज्यादा है वह अधिकतम राजद के साथ जुड़े हुए हैं तो वहीं इसमें से एक हिस्सा जदयू के भी साथ रहा है.
ऐसे में भाजपा के हिस्से में इन जातियों का वोट ना के बराबर है. ऐसे में भाजपा ने एक एक्शन प्लान तैयार किया है जिसके जरिए वह महागठबंधन को मात देने की कवायद में लगे हुए हैं. दरअसल बिहार में भाजपा का फोकस नीतीश के लव-कुश समीकरण को तोड़ना है. यहां कुशवाहा वोटों की संख्या मुस्लिम, यादव के बाद सबसे ज्यादा है. इसके बाद भूमिहार, राजपूत, कायस्थ और ब्राह्मण आते हैं. ऐसे में बिहार में इस बार भाजपा का सीधा फोकस कुशवाहा वोट के साथ दलित, पिछड़े और अति पिछड़े वोट बैंक पर है. आपको बता दें कि सवर्ण वोट बैंक तो वैसे भी भाजपा का कोर वोट बैंक माना जाता है.
भाजपा को पता है कि राजद के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश नाकामयाब ही होगी ऐसे में नीतीश कुमार के वोट बैंक पर भाजपा की नजर है. जदयू जहां एक तरफ ‘अगड़ी’ जातियों के वोट को अपने पाले में करती रही है वहीं पिछड़ी जाति का वोट भी उसके हिस्से में शामिल है. JDU के साथ गैर-यादव पिछड़ी जातियां और दलित समुदाय के लोग हमेशा से जुड़े रहे हैं. ऐसे में भाजपा अगर इश समीकरण को तोड़ पाने और अपने पाले में कर पाने में कामयाब हुई तो उसे यकीन है कि वह बिहार में अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेगी.
ऐसे में भाजपा का पहला फोकस कुशवाहा (कोइरी) समुदाय को साधना है साथ वह कुर्मी, भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण के साथ पिछड़े, दलित और अति पिछड़ी जातियों पर भी फोकस कर रही है. ऐसे में भाजपा ने जहां प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर कुशवाहा समुदाय के सम्राट चौधरी को कमान सौंप दी है तो वहीं उपेंद्र कुशवाहा के साथ भी भाजपा के नेता लगातार संपर्क में हैं. वहीं चिराग पासवान, मुकेश सहनी जैसे छोटे दलों के नेताओं के साथ भी भाजपा लगातार संपर्क में है.