Prashant Kishor Jan Suraj: बिहार... चाणक्य और चंद्रगुप्त की धरती, भगवान बुद्ध और भगवान महावीर की कर्मभूमि, सम्राट अशोक जहां महान शासन हुए, आज के समय में वहां लोग नहीं, जातियां पॉलिटिक्स करती हैं. बिहार का पूरा समाज जातियों में बंटा हुआ है. हर जाति के अपने अपने नेता हैं और उनके पास अपनी ​जाति के वोटों की ठेकेदारी भी. नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा जहां कुर्मी और कोइरी के नेता हैं तो चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस दलितों के झंडाबरदार हैं. जीतनराम मांझी महादलितों में अपनी पैठ रखते हैं तो मुकेश सहनी निषाद समाज के सबसे बड़े नेता हैं. मुसलमान और यादव एकमुश्त राजद के साथ हैं. इन सबके बीच राष्ट्रीय स्तर की 2 पार्टियां भाजपा और कांग्रेस भी मौजूद हैं, जो दशकों से बिहार की राजनी​ति की अग्रिम पंक्ति से दूर हैं. पूरी पॉलिटिक्स राजद और भाजपा के इर्द गिर्द घूमती है और नीतीश कुमार इसका फायदा उठा ले जाते हैं. भाजपा के विरोध में जो दल हैं, वो राजद के साथ हैं तो राजद के विरोध वाले दल भाजपा के साथ. ऐसे में प्रशांत किशोर के लिए बिहार की राजनीति में पैठ बनाना उतना आसान नहीं होगा. फिर भी यह प्रशांत किशोर आत्मविश्वास से लवरेज हैं और अपनी पार्टी की सफलता को लेकर आश्वस्त भी.


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प्रशांत किशोर की सफलता इस बात से तय होगी कि वे जातियों के कुछ समूहों को अपनी ओर खींच पाते हैं या नहीं. फिलहाल यह आसान नहीं लगता. अब आप ही बताइए, कोई यादव राजद को छोड़ जनसुराज को वोट देगा? कोई कुर्मी नीतीश कुमार को छोड़ जनसुराज के साथ जाएगा. कोई दलित चिराग पासवान को छोड़ पीके का झंडा पकड़ेगा या फिर कोई निषाद समाज का व्यक्ति मुकेश सहनी को छोड़ प्रशांत किशोर का अनुयायी बनेगा. बोलने के लिए यह आसान लगता है. हो सकता है कि कुछ प्रगतिवादी जिसमें हर जातियों के लोग शामिल हैं, वे प्रशांत किशोर की बड़ी बातों के प्रभाव में आ जाएं, पर मास लेवल पर ऐसा हो पाना मुश्किल लगता है.


हालांकि प्रशांत किशोर की पिछले 2 साल की मेहनत को यूं ही इग्नोर नहीं करना चाहिए. पिछले 2 साल में प्रशांत किशोर 17 जिले नाप चुके हैं और 5000 किलोमीटर की पदयात्रा की है. 5500 से अधिक गांवों में वे पैदल जाकर लोगों से बातचीत कर चुके हैं. उनका दावा है कि बिहार के 1 करोड़ लोगों के साथ मिलकर वे नई पार्टी बनाने जा रहे हैं. इनमें से करीब डेढ़ लाख लोग 2 अक्टूबर को पटना के वेटरनरी कॉलेज ग्राउंड पर मौजूद रहेंगे, जिनके सामने नई पार्टी का ऐलान किया जाएगा.


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खुद को सरस्वती पुत्र कहने वाले प्रशांत किशोर ने अपनी पदयात्रा के दौरान न केवल नीतीश कुमार बल्कि लालू प्रसाद और उनके बेटे तेजस्वी यादव को भी निशाने पर रखते आए हैं. यहां तक कि पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा को भी वे आड़े हाथ लेते रहे हैं. एक तरफ बिहार से पलायन के लिए वे नीतीश कुमार के पिछले 19 साल के शासन को जिम्मेदार ठहराते हैं तो दूसरी तरफ बिहार की बर्बादी के लिए लालू प्रसाद यादव के शासनकाल पर भी ठीकरा फोड़ते नजर आते हैं. यहां तक कि वे तेजस्वी यादव को खुलकर नौंवी फेल बताते हैं. 


पीएम मोदी को लेकर प्रशांत किशोर कहते हैं कि पिछले 10 साल के शासनकाल में बिहार के विकास को लेकर उन्होंने एक भी बैठकें नहीं की हैं. प्रशांत किशोर चुनौती देते हुए पूछते हैं कि बिहार के विकास को लेकर पिछले 10 साल में एक भी उल्लेखनीय काम नहीं हुआ है. आरोप लगाने के बीच वे बिहार के विकास को लेकर अपनी सोच को भी आगे रखते हैं. प्रशांत किशोर शराबबंदी को बिहार के विकास की सबसे बड़ी बाधा बताते हैं और सत्ता में आने पर 15 मिनट में शराबबंदी खत्म करने की बात करते हैं. प्रशांत किशोर कहते हैं कि 10 अर्थशास्त्रियों की टीम बिहार के विकास को लेकर एक ब्लूप्रिंट तैयार कर रही है, जिसे वे फरवरी में जारी करेंगे. 


प्रशांत किशोर अपने वादों और दावों को लेकर अरविंद केजरीवाल के समकक्ष नजर आते हैं और राजनीतिक पंडित भी उनकी तुलना दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री से करते हैं. प्रशांत किशोर की तुलना अरविंद केजरीवाल से करने से जनसुराज नुकसान में नजर आता है, क्योंकि बिहार और यूपी की जनता में अरविंद केजरीवाल की छवि केवल बिजली और पानी सस्ता कर चुनाव जीतने की रही है. दिल्ली में रह रहे बिहारी यह नहीं भूल पाते हैं कि कैसे कोरोना काल में उनको उकसाकर सड़कों पर छोड़ दिया गया था. इसके अलावा आम आदमी पार्टी के कुछ नेता यदा कदा दिल्ली की दुर्गति के लिए बिहारी और यूपी के लोगों पर ठीकरा फोड़ देते हैं.


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फिलहाल, प्रशांत किशोर ने नई राजनीतिक पार्टी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया है. कल तक वे राजनीतिक दलों को जिताने का ठेका लेते थे, अब उन्हें खुद को जिताने के लिए अपना पूरा हुनर दिखाना होगा. कल तक दूसरे दल प्रशांत किशोर से चुनावी टिप्स लेते थे, अब वो टिप्स प्रशांत किशोर खुद के लिए यूज करेंगे. बिहार में एक कहावत बहुत प्रचलित है- दूसरों को ज्ञान देना बहुत आसान है. देखना यह है कि प्रशांत किशोर वो सारा ज्ञान खुद पर लागू करते हुए सफलता की बुलंदियों पर पहुंचते हैं या नहीं.  


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