10 प्वाइंट में जानिए कर्नाटक में भाजपा को अपनी किन गलतियों की चुकानी पड़ी कीमत
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10 प्वाइंट में जानिए कर्नाटक में भाजपा को अपनी किन गलतियों की चुकानी पड़ी कीमत

कर्नाटक विधान सभा चुनाव के परिणाम को लेकर अब तस्वीर साफ होने लगी है. कांग्रेस यहां बहुमत के आंकड़े को पार करती नजर आ रही है. वहीं 224 विधानसभा सीटों वाले इस प्रदेश में भाजपा को अपनी सरकार गंवानी पड़ रही है.

(फाइल फोटो)

Karnataka Election: कर्नाटक विधान सभा चुनाव के परिणाम को लेकर अब तस्वीर साफ होने लगी है. कांग्रेस यहां बहुमत के आंकड़े को पार करती नजर आ रही है. वहीं 224 विधानसभा सीटों वाले इस प्रदेश में भाजपा को अपनी सरकार गंवानी पड़ रही है. इस चुनाव में भाजपा ने कई गलतियां की जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है.

- कर्नाटक में कांग्रेस के नेताओं सिद्दारमैया और डी के शिवकुमार के साथ भाजपा के कई बड़े नेताओं का साथ हो जाना भी पार्टी के हार की मुख्य वजह बना. भाजपा के नेता ही यहां पार्टी के फैसलों से संतुष्ट नजर नहीं आ रहे थे. 

- कर्नाटक में भाजपा की हालत जेडीएस के जैसी क्षेत्रीय दलों वाली है. यहां भाजपा भी एक खास समदाय के वोट पर फोकस कर चुनाव लड़ती आई है ना कि वह हिंदूत्व के अपने एजेंडे पर पूरी तरह से यहां फोकस करती है ऐसे में यह एक वजह भी भाजपा की हार का कारण बना. 

- कर्नाटक में भाजपा को लेकर वहां के लोगों में नाराजगी भी पार्टी के खिलाफ गया. लोग स्थानीय और महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर सरकार के खिलाफ मतदान करने उतरे. 

- कर्नाटक में भाजपा सत्ता विरोधी लहर का कोई काट नहीं तलाश पाई विपक्ष की तरफ से भाजपा के खिलाफ जितने भी नारे गढ़े गए उसका जवाब पार्टी की तरफ से नहं मिल पाया. 

- कर्नाटक में भाजपा को अपने दिग्गज नेता और वहां के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को साइड लाइन करना भी महंगा पड़ा. वहीं जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी जैसे लिंगायत के दूसरे बड़े नेताओं का कांग्रेस के साथ जाना भी भाजपा के लिए झटका साबित हुआ. 

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- भाजपा को कर्नाटक में लिंगायत को साथ लाने की कोशिश में नाकामयाबी और वोक्कालिगा पर फोकस नहीं कर पाना भी हार की बड़ी वजह बनी रही. पीएम मोदी ने यहां केवल लिंगायत के साथ भाजपा वाली छवि को तोड़ने की कोशिश भी की लेकिन वह सफल नहीं हो पाई. 

- भाजपा यहां हिंदूत्व के एजेंडे पर कभी काम नहीं कर पाती है. वह यहां एक क्षेत्रीय पार्टी की तरह का व्यवहार करती है. भाजपा यहां लिंगायत वोट बैंक के सहारे ही चुनाव लड़ना चाहती है. जो उसके खिलाफ गया. 

- भाजपा का यहां वोटों के ध्रुवीकरण का दांव भी काम नहीं आया. बता दें कि कर्नाटक में भाजपा पिछले एक साल से हिजाब, हलाला और अजान तक के मुद्दे को उठाती रही. भाजपा ने बजरंग दल को बजरंगबली से जोड़ा तो यह फॉर्मूला भी जनता को पसंद नहीं आया. 

- कर्नाटक में भाजपा के खिलाफ कमीशन की सरकार वाला मुद्दा हावी रहा, यहां कांग्रेस भाजपा के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे को भुनाने में कामयाब रही. भाजपा इसका काट नहीं निकाल पाई. 

- कर्नाटक में भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह पार्टी के पास किसी मजबूत चेहरे का नहीं होना है. येदियुरप्पा से अलग बसवराज बोम्मई पर भरोसा दिखाना यहां भाजपा को महंगा पड़ा. 

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