Bihar Politics: बिहार के रास्ते केंद्र की सत्ता पर काबिज होने की मुहिम लेकर नीतीश कुमार प्रदेश से निकले तो उनका निकलना रंग लाया. विपक्षी गठबंधन में कई ऐसे दल साथ जुड़े जो एक दूसरे के खिलाफ अपने प्रदेश में खड़े हैं. इस सब के बीच इस INDI Alliance की 3 बैठकें हुईं और अभी तक इन दलों के बीच लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर बात नहीं हो पाई है. वैसे आपको बता दें कि इस सब को लेकर बिहार का सियासी पारा जरूर चढ़ा हुआ है. नीतीश कुमार कई बार लालू यादव से मिल चुके हैं तो वहीं लालू भी नीतीश से मिलने में लालू भी संकोच नहीं कर रहे हैं. ऐसे में सियासी जानकार मानते हैं कि यह मुलाकात केवल हाल-चाल तक तो सीमित नहीं ही रहता होगा. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


सियासत के जानकार तो मानते हैं कि विपक्षी गठबंधन में सीट शेयरिंग के फॉर्मूले से ज्यादा बिहार में कैसे लोकसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग हो यह इसकी प्राथमिकता हो सकती है. ऐसे में सियासी जानकार मान रहे हैं कि यहां जाकर पेंच फंस गया है. 


ये भी पढ़ें- लालू और नीतीश के इशारे पर कई जातियों को अतिपिछड़ा सूची से बाहर करने की साजिश- मोदी


बिहार में जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी होने के बाद से ही इसको लेकर नीतीश सरकार की खूब वाहवाही हो रही है. वहीं बता दें कि दूसरे राज्यों से भी अब जातीय जनगणना कराए जाने की घोषणा होने लगी है. राजस्थान और ओडिशा इसमें आगे निकलकर आए हैं. बिहार में कई बाधाओं के बाद भी जातीय जनगणना को अंतिम रूप दिया गया. नीतीश इस जनगणना से पहले कह चुके थे कि जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी ऐसे में अब नौकरियों और राजनीतिक क्षेत्र दोनों में आबादी के हिसाब से जातियों को तरजीह देने की बात सामने आने लगी है. ऐसे में राजनीतिक दल अगर इसी आंकड़े के आधार पर चुनाव में सीटों का बंटवारा जातियों की संख्या के आधार पर करें तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा. 


वहीं बिहार में महागठबंधन के सभी दलों को अपने मन मुताबिक लोकसभा सीटों में हिस्सेदारी चाहिए. कांग्रेस तो पिछले बार के मुकाबले 2-3 ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह चुकी है. वहीं बिहार में महागठबंधन के भीतर सबसे बड़े दल राजद को उसके विधायकों की संख्या के आधार पर सीटें चाहिए. जबकि 40 लोकसभा सीट वाले प्रदेश में महागठबंधन के सभी सहयोगी दलों को उनके मन माफिक सीटें देना तो असंभव ही है. माले और कांग्रेस 5 और 10 सीटों की मांग कर चुके हैं. बाकि बची 25 सीटों में जदयू और राजद मान जाए ऐसा तो नहीं लगता है. 


जेडीयू के पास अभी लोकसभा की 16 सीटें हैं. ऐसे में पिछले बार जेडीयू के पास जो 17 सीटें थी वह उसे बरकरार रखना चाहेगा. फिर गठबंधन का मान रखकर 17 नहीं तो अपनी 16 सीटों से कम पर तो वह तैयार भी नहीं होगी. वहीं राजद महागठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी है ऐसे में वह जदयू से कम सीटों पर चुनाव लड़ने को तो तैयार भी नहीं होगी. ऐसे में मामला तको यहीं फंसा पड़ा है ऐसे में राजनीति के जानकार बता रहे हैं कि इसे ही हल करने के लिए लालू-नीतीश लगातार बैठकें कर रहे हैं. भाकपा(माले) ने तो बिहार में ज्यादा ही बड़ी परेशानी महागठबंधन के लिए खड़ी कर दी है. वह जदयू की तीन सिटिंग सीटों पर अपना दावा कर चुकी है. पार्टी जिन पांच सीटों की मांग कर रही है उसमें से तीन सीटें अभी जदयू के पास है. इसमें सीवान, काराकाट और जहानाबाद की सीटें शामिल हैं.