Jharkhand Politics: झारखंड के पहले CM के हाथ में है BJP की बागडोर, क्या फिर से सत्ता दिला पाएंगे?
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Jharkhand Politics: झारखंड के पहले CM के हाथ में है BJP की बागडोर, क्या फिर से सत्ता दिला पाएंगे?

Jharkhand Politics: 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से प्रदेश के राजनीतिक समीकरण काफी बदल चुके हैं. बाबूलाल मरांडी अब बीजेपी में वापसी कर चुके हैं और अपनी पार्टी को भी बीजेपी में मर्ज कर दिए हैं. 

बाबूलाल मरांडी

Jharkhand Politics: झारखंड में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. विपक्ष में बैठी बीजेपी की पूरी कोशिश है कि वो सत्ता में वापसी करे. इसके लिए बीजेपी ने सबसे बड़ा दांव चलते हुए प्रदेश अध्यक्ष की कमान पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी को सौंप रखी है. वह आदिवासियों के बड़े हैं और झारखंड के पहले सीएम रह चुके हैं. उन्होंने लगभग 14 साल बाद बीजेपी में वापसी की है. इससे पार्टी को एक प्रमुख आदिवासी चेहरे के साथ-साथ एक अनुभवी आयोजक और रणनीतिकार भी मिला. अब सवाल ये है कि क्या मरांडी एक बार फिर से बीजेपी को सत्ता सुख दिला सकेंगे, क्योंकि पिछले चुनाव में वह बीजेपी को हराने के लिए मैदान में उतरे थे और बीजेपी पर खूब सियासी तीर चलाए थे. 

'घर के भेदी लंका ढाए' पिछले चुनाव में बीजेपी पर यही कहावत चरित्रार्थ हुई थी. दरअसल, उस समय बाबूलाल मरांडी अपनी अलग पार्टी बनाकर मैदान में थे. बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के उम्मीदवारों ने बीजेपी के वोटबैंक में सेंधमारी की थी, जिससे बीजेपी को कई सीटों का नुकसान झेलना पड़ा. जेवीएम को इस चुनाव में 5.45% वोट शेयर मिला था और तीन सीटें मिली थीं. हालांकि, बीते 5 साल में परिस्थिति काफी हद तक बदल गई है. अब बाबूलाल मरांडी बीजेपी में वापसी कर चुके हैं. उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद लोकसभा चुनाव के अलावा में 7 सीटों पर उपचुनाव हो चुके हैं. 

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लोकसभा चुनाव में एनडीए को कुल 14 में से 9 सीटें हासिल हुईं. 2019 की तुलना में इस बार बीजेपी का वोट शेयर भी कम हुआ है. खास बात ये रही है कि प्रदेश की सभी पांचों सुरक्षित सीटों पर एनडीए को हार का सामना करना पड़ा. वहीं 2019 के बाद से सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए हैं, जिनमें से दुमका, मधुपुर, डुमरी और गांडेय पर जेएमएम ने जीत हासिल की है. बेरमो और मांडर सीटें कांग्रेस ने बरकरार रखीं, जबकि भाजपा की सहयोगी आजसू पार्टी ने रामगढ़ सीट कांग्रेस से छीन ली. इस तरह से आदिवासी वोटों पर बाबूलाल मरांडी की पकड़ ढीली पड़ती नजर आ रही है.

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