2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकता एक बार फिर से जोर पकड़ने लगी है. हालांकि, मौजूदा हालातों को देखते हुए लग रहा है कि नीतीश का ये प्रयास सिर्फ फोटोसेशन बनकर रह जाएगा.
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Lok Sabha Election 2024: 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की बात कर रहे विपक्षी दलों को एक ही मंच पर कोलकाता में सबने देखा था. तब सभी दल बीजेपी के खिलाफ इकट्ठा होने के लिए हाथ मिलाए खड़े थे लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव तक आते-आते सबकी राहें जुदा हो गईं. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकता एक बार फिर से जोर पकड़ने लगी है. कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने के बाद से इस मुहिम को और ताकत मिली है.
आगामी 12 जून को पटना में मोदी विरोधी नेताओं का जमावड़ा लगने वाला है. विपक्षी दलों की ये बैठक आरजेडी के प्रदेश कार्यालय में होगी. इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करीब एक साल से भागदौड़ कर रहे थे. कहा जा रहा है कि इस बैठक में 18 पार्टियों के नेता शामिल होंगे. इस बैठक में विपक्षी दल अपनी ताकत दिखाएंगे. इसके अलावा मीटिंग में बीजेपी के खिलाफ रणनीति तैयार करेंगे. हालांकि, मौजूदा हालातों को देखते हुए लग रहा है कि नीतीश का ये प्रयास सिर्फ फोटोसेशन बनकर रह जाएगा.
इस मीटिंग में शामिल होने वाली पार्टियों में तनातनी बढ़ गई है. बंगाल से लेकर महाराष्ट्र तक विपक्ष में भिड़ंत देखने को मिल रही है. हालात ऐसे हो गए हैं कि जो लोग विपक्ष को जोड़ने की बात कह रहे थे, वही अब उसे तोड़ने की कोशिश करने में लगे हैं. बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस के इकलौते विधायक बेरोन विश्वास को TMC में शामिल कर लिया गया है. ममता के एक दांव से ही कांग्रेस फिर से जीरो पहुंच गई है. अब टीएमसी और कांग्रेस में सुलह होती नजर नहीं आ रही है. इसी तरह से महाराष्ट्र में भी घमासान देखने को मिल रहा है.
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यहां महाविकास अघाड़ी गठबंधन के बावजूद पुणे सीट को लेकर कांग्रेस और एनसीपी में ठन गई है. दरअसल, बीजेपी सासंद गिरीश बापट के निधन के बाद यहां उपचुनाव होना है. गठबंधन में शामिल दोनों दल इस पर बार इस सीट से दावेदारी ठोंक रहे हैं. उधर यूपी में कांग्रेस से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी नाराज हो गए हैं. हाल ही में यूपी विधान परिषद के चुनाव में कांग्रेस ने हिस्सा नहीं लिया, जिससे सपा प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा. वहीं अखिलेश भी रायबरेली और अमेठी से अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है. इससे पहले तक वो इन सीटों पर कांग्रेस का समर्थन करते थे.
बता दें कि विपक्ष के इतनी खलबली कर्नाटक चुनाव परिणाम से मची है. विपक्ष में शामिल क्षेत्रीय दलों को कर्नाटक में बीजेपी की हार से जितनी खुशी नहीं मिली, उतनी कांग्रेस की जीत से दर्द हुआ. कांग्रेस की जीत से क्षेत्रीय दलों को अपना वोटबैंक खिसकने का डर सताने लगा है. दरअसल, क्षेत्रीय दल कांग्रेस के वोट बैंक पर ही कुंडली मारकर बैठे हैं और अपने प्रदेश में अपनी ताकत बढ़ा चुके हैं. ऐसे में उनको डर है कि अगर कांग्रेस की स्थिति में थोड़ा भी सुधार हुआ तो इसका उनकी राजनीतिक सेहत पर ज्यादा नुकसान होगा.