Liquor Ban in Bihar : प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में शराब की दुकानें तो बंद कर दी गई हैं, लेकिन शराब की होम डिलीवरी अब भी चल रही है. शराबबंदी का बिहार की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है. इस वजह से हर साल बिहार को 20 से 25 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है.
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पटना: बिहार में शराबबंदी को लेकर कई नेताओं के बयान समय-समय पर आते रहते हैं. हाल ही में चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने बड़ा दावा किया है कि अगर उनकी सरकार बनी तो बिहार में शराबबंदी एक घंटे में समाप्त हो जाएगी. इस बयान ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है. दरअसल, विपक्ष अक्सर कहता है कि बिहार में शराबबंदी सफल नहीं रही है और कुछ राजनीतिक पार्टियां इसे खत्म करने की मांग कर रही हैं. यहां तक कि जीतनराम मांझी ने भी शराबबंदी पर सवाल उठाए थे. हालांकि, नीतीश कुमार शराबबंदी के पक्ष में पूरी मजबूती से खड़े हैं. इस बीच, प्रशांत किशोर का शराबबंदी खत्म करने का दावा बिहार की राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है.
प्रशांत किशोर ने शराबबंदी के खिलाफ तर्क देते हुए कहा कि शराबबंदी से किसी राज्य या देश का विकास नहीं हुआ है. उनका कहना है कि मानव सभ्यता के इतिहास में कहीं भी ऐसा उदाहरण नहीं मिलता, जहां शराबबंदी ने विकास किया हो. उन्होंने यह भी कहा कि अलग-अलग समय पर लोग और सरकारें शराबबंदी के प्रयास करती रही हैं, लेकिन इसका कोई ठोस उदाहरण नहीं है. प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के गांधीवादी विचारों पर भी सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार और उनके समर्थक बताते हैं कि गांधीजी ने शराबबंदी की बात की थी, लेकिन गांधीजी ने कभी नहीं कहा कि कानून बनाकर शराबबंदी लागू की जानी चाहिए. अगर ऐसा कोई लिखित प्रमाण है, तो वे दिखाएं, और प्रशांत किशोर नीतीश कुमार से माफी मांगने को तैयार हैं.
प्रशांत किशोर का कहना है कि बिहार में सिर्फ शराब की दुकानें बंद हुई हैं, लेकिन शराब की होम डिलीवरी जारी है. इससे बिहार की अर्थव्यवस्था को हर साल 20 से 25 हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि यह पैसा अवैध तरीके से बिहार के भ्रष्ट पुलिसवालों और माफिया के हाथ में जा रहा है. वे यह भी कहते हैं कि शराबबंदी के दौरान पकड़े गए ज्यादातर लोग गरीब और दलित समाज से हैं. शराबबंदी की वजह से महिलाएं भी प्रताड़ित हो रही हैं, क्योंकि उनके परिवार वालों को पकड़ने पर वे वकीलों और थाने का चक्कर लगाती रहती हैं, जहां कोई सुनवाई नहीं होती. प्रशांत किशोर का कहना है कि यह व्यवस्था खत्म होनी चाहिए.
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