Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में 'पी' पॉलिटिक्स की काफी चर्चा हो रही है. दरअसल, प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और इस बार के चुनाव में प्रशांत किशोर अपना दमखम आजमाने उतरेंगे. पीके ने 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती के दिन अपनी पार्टी लॉन्च कर दी है. जैसा की उम्मीद थी, उसी अनुसार पीके ने अपने दल का नाम जन सुराज पार्टी रखा है. इसके साथ ही प्रशांत किशोर ने भारतीय विदेश सेवा में अधिकारी रह चुके मनोज भारती को जन सुराज पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है. मधुबनी के रहने वाले मनोज भारती IIT पासआउट हैं. वे कई देशों में भारत के राजदूत रह चुके हैं और कई किताब भी लिख चुके हैं.


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पीके ने अपनी पार्टी को लॉन्च करने से पहले लंबी मेहनत की है. उन्होंने बिहार के गांव-गांव घूम-घूमकर पीके ने प्रदेश के सियासी तबियत और तरबियत दोनों को समझा है. मनोज भारती के सहारे प्रशांत किशोर ने तगड़ा दांव खेलते हुए दलित समाज को एक संदेश देने की कोशिश की है. इससे पहले वह महिलाओं को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे कर चुके हैं. उन्होंने वादा किया है कि अगले साल 2025 विधानसभा चुनाव में 40 महिला उम्मीदवारों को जन सुराज से जिताकर सदन में लाएंगे. इसी तरह का वादा उन्होंने मुसलमानों से भी किया है. पीके ने अपनी पार्टी में मुसलमान समाज को 18 प्रतिशत के हिसाब से नियुक्ति देने का वादा किया है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी में बिहार में मुसलमानों की जनसंख्या के आधार पर ही काम किया जाएगा. उन्हें उसी मुताबिक हिस्सेदारी मिलेगी.


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पीके की तरह 2020 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्लूरल्स पार्टी अस्तित्व में आई थी. इस पार्टी की मुखिया लंदन रिटर्न्स पुष्पम प्रिया चौधरी हैं. चुनाव से ठीक 6 महीने पहले पुष्पम लंदन स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स की डिग्री लेकर लौटीं और आते ही बिहार की हालत बदलने की बात कहने लगीं. उन्होंने अखबारों में विज्ञापन देकर अपनी पार्टी की स्थापना की और काले कपड़े पहनने वाली पुष्पम चुनावी रण में 'पंखों वाला सफेद घोड़ा' निशान लेकर कूदी थीं. उन्होंने दो सीटों से चुनाव लड़ा और दोनों पर हार का सामना करना पड़ा. चुनाव के दौरान खूब लाइमलाइट में रहीं पुष्पम धीरे धीरे सुर्खियों से गायब हो गईं.


'पी' फैक्टर वाले पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव भी 2015 में अपनी जन अधिकार पार्टी बनाकर सियासी संघर्ष करते रहे. हालांकि, उन्हें लोकसभा जाने का मौका निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मिला. दरअसल, 2015 में लालू यादव की पार्टी से बाहर निकाले जाने के बाद सांसद पप्पू यादव ने जन अधिकार पार्टी का गठन किया था. लेकिन जाप को बिहार में सफलता नहीं मिली. 2015, 2019, 2020 के चुनाव में हार का सामना करने के बाद पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर लिया है. हालांकि, इसके बाद भी उन्हें पूर्णिया लोकसभा सीट से टिकट नहीं मिली थी. जिसके कारण उन्होंने निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. वर्तमान समय में वह पूर्णिया से निर्दलीय सांसद हैं.


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बिहार में दलितों की नेता माने जाने वाले राम विलास पासवान के निधन के बाद उनकी पार्टी लोजपा दो हिस्सों में टूट गई. पार्टी के पांच सांसद लेकर पशुपति कुमार पारस ने अपनी अलग पार्टी बनाई और चिराग पासवान ने अलग दल की स्थापना की. पशुपति ने अपने दल का नाम रखा रालोजपा मतलब राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी. वहीं चिराग पासवान ने अपनी पार्टी का नाम लोजपा-रामविलास रखा. लोजपा के दोनों गुट एनडीए का हिस्सा हैं. कभी ताकतवर रहे पशुपति पारस पर अब चिराग पासवान भारी पड़ रहे हैं. एनडीए में पशुपति को कोई खास तवज्जो नहीं मिलती दिख रही है.


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