पटना: बिहार में लालू प्रसाद यादव एक ऐसे चुनावी महानायक है जिनमें  पटना विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के चुनाव में कदम रखा और पहली बार में चुनाव हार गए थे. लेकिन इसके बाद दूसरी बार उन्हेंने चुनाव लड़ा तो वो जीत गए. इस जीत के बाद लालू प्रसाद यावद की राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई है. इसके बाद उन्होंने कई चुनाव में हिस्सा लिया और आगे चलकर बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में अपना नाम दर्द किया. अपने कार्यकाल में लालू ने बिहार के विकास में कई कार्य किया.


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आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बार में बात करें तो इनकी कई ऐसी कहानियां हैं जो पीयू के इलेक्शन को काफी दिलचस्प बनाने का काम करती है. अगर बात करें लालू के राजनीतिक करियर की तो उन्होंने पहला सुना पढ़ाई के दौरान छात्रसंघ का लड़ा था. इस चुनाव के दौरान ही लालू ने राजनीतिक तर्क सीखें जो आगे चलकर बड़े चुनावों में काम भी आएं.


पटना विश्वविद्यालय में छात्रसंघ की स्थापना साल 1956 में हुई थी.  साल 1969 में लालू प्रसाद यादव, रामजतन सिन्हा और आदित्य पांडेय ने सीधी तरह से यानी कि वोटिंग के जरिए चुनाव कराने की मांग की. साथ ही लालू प्रसाद यादव पहले ही चुनाव में जनरल सेक्रेटरी के रूप में चुने गए. अगर मीडिया रिपोर्ट्स की बात करें तो साल 1971 में पहली बार मतदान के जरिए छात्र संघ का चुनाव हुआ. इस चुनाव में लालू और रामजतन सिन्हा अध्यक्ष पद के लिए थे. इस चुनाव की बात करें तो उसमें रामजतन सिन्हा की जीत हुई और लालू हार गए.


मीडिया रिपोर्ट्स की बात करें तो साल 1973 में फिर जब पटना विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव हुए तो इस चुनाव के अंदर लालू यादव की जीत हुई. इस जीत के बाद लालू प्रसाद यादव अध्यक्ष बने और सुशील मोदी महासचिव बने. राजनीतिक करियर की बात करें तो वो जेपी आंदोलन के दौरान उभरकर सामने आए.  साथ ही लालू ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में भी पिछड़ों और गरीबों का भला किया. इसके अलावा वो उनके मसीहा बन गए.


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