JDU Meeting: दो तस्वीर... दो मौके और तस्वीर के पीछे की तस्वीर एक. एक तस्वीर साल 2017 की है तो दूसरी 2023 की. 2015 में बिहार में राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन में नीतीश कुमार बिहार की सत्ता पर आसीन हुए थे. बस मामला इतना था कि पूरा कैबिनेट बदला हुआ था और सिर्फ सीएम के पद पर वही नीतीश कुमार बैठे थे जो बिहार की सत्ता को भाजपा के सहारे पहले से चला रहे थे. फिर साल 2017 आया, जब बिहारी मूल के मॉरीशस के राष्ट्रपति का सम्मान समारोह हो रहा था. इसमें पीएम मोदी के साथ नीतीश कुमार मंच पर नजर आए और अगले कुछ ही महीनों में बिहार का सियासी समीकरण बदल गया. नीतीश कुमार बने रहे पर पूरा मंत्रिमंडल दिल गया था.राजद और कांग्रेस के मंत्रियों की जगह भाजपा के विधायकों ने ले ली थी. यह सब हुआ था पीएम मोदी से मुलाकात के केवल 2 महीने के भीतर ही और बिहार में इतना बड़ा सियासी भूचाल आ गया था. हालांकि नीतीश कुमार अपने 10 साल के सियासी कार्यकाल में 4 बार पलटी मार चुके हैं.


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अब नीतीश कुमार के 2017 में मॉरीशस के राष्ट्रपति के सम्मान समारोह वाली फोटो जिसमें पीएम मोदी भी साथ थे, के साथ ही 2023 में जी-20 की बैठक में जहां नीतीश कुमार और पीएम मोदी एक साथ थे, वायरल हो रही है. G-20 की बैठक में नीतीश कुमार सहित सभी राज्यों के सीएम को बुलाया गया था. नीतीश कुमार जब भी NDA से अलग हुए, वह कम ही मंचों पर पीएम या अन्य किसी NDA के नेता के साथ नजर आते रहे. वह हमेशा इससे बचने की कोशिश करते रहे. G-20 की बैठक से ठीक पहले नए संसद भवन के उद्धाटन के मौके पर भी उनकी पार्टी शामिल नहीं हुई थी. लेकिन, इस सबके बीच जी-20 की बैठक में नीतीश कुमार शामिल हुए और पीएम मोदी और नीतीश कुमार के बीच जिस तरह की तल्खी थी वह देखने को नहीं मिली. दोनों के हावभाव को देखकर कोई भी नहीं कह सकता था कि दोनों एक दूसरे के साथ खड़े होने से बचते रहे होंगे.


हालांकि नीतीश कुमार ने साल 2022 में तेजस्वी यादव से मुलाकात के 2 महीने बाद ही NDA से अलग होने का फैसला कर लिया था. मई का महीना था और नीतीश तेजस्वी की एक घंटे तक चली मुलाकात ने प्रदेश का सियासी पारा और बढ़ा दिया था. वहीं अब जब नीतीश कुमार महागठबंधन का हिस्सा हैं और वहीं विपक्ष के INDI अलायंस का हिस्सा उनकी पार्टी भी है. इस सब के बीच नीतीश कुमार को गठबंधन का संयोजक नहीं बनाया जाना, उनकी नाराजगी की खबरों को हवा दे रहा है. ऐसे में जी20 में नीतीश और पीएम मोदी की मुलाकात और दोनों के हावभाव ने कई सियासी सवालों को जन्म दे दिया है. 


2013 में जब नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार NDA की तरफ से घोषित किया गया तो नीतीश नाराज हुए और भाजपा के साथ बिहार में गठबंधन तोड़ लिया. 2015 में उनकी पार्टी ने आरजेडी-कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया चुनाव में जीत हासिल की और सरकार चलाने लगे. 2017 में उन्होंने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया और एनडीए में शामिल हो गए और साल 2022 में वह एक बार फिर एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन में आ गए. 


ऐसे में अब जब INDI गठबंधन को बन जाने के बाद भी नीतीश कुमार की तमाम-कोशिशों को नजरअंदाज किया जा रहा है. INDIA (इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलांयस) की चार बैठकों के बाद भी जब सीटों के बंटवारे को लेकर कोई फॉर्मूला तय नहीं हो पाया तो अब नीतीश के हाथ खाली नजर आ रहे हैं. जहां जेडीयू के नेता देश के पीएम उम्मीदवार के तौर पर INDI गठबंधन के सबसे प्रबल दावेदार के तौर पर मानते रहे हैं. ऐसे में इतनी बैठकों के बाद भी नीतीश के हाथ कुछ नहीं लगा है. लालू यादव भी नीतीश की इस मामले में गठबंधन दलों की बैठक में पैरवी करते नहीं दिख रहे हैं.  


वहीं राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश पर नीतीश की चुप्पी भी कई सवाल खड़े कर रही है. नीतीश की आलोचना हुई तो पार्टी ने हरिवंश को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर कर दिया, लेकिन वह अभी भी पार्टी के सदस्य हैं. वह जुलाई में नीतीश कुमार से मिल भी चुके हैं. ऐसे में जहां राजद के साथ नीतीश का सियासी पकवान और बिरयानी इफ्तार पर पकी थी वहीं अब भाजपा को खिचड़ी का इंतजार है क्योंकि इस खिचड़ी के पकने की गंध भी अगर बाहर आई तो INDI गठबंधन के खंभे सिरे से धाराशायी हो जाएंगे.