पटना: बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने जो परिवर्तन किया है उसने विपक्षियों की परेशानी बढ़ा दी है. एक तरफ सम्राट चौधरी को बिहार में प्रदेश का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर युवा जोश की ताकत भाजपा दिखा रही है तो वहीं दूसरी तरफ विनोद तावडे को भाजपा का प्रदेश प्रभारी और नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी सुनील ओझा को प्रदेश सह प्रभारी बनाकर उन्हें अनुभव के मैदान में मात देने की कोशिश कर रही है. 


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बिहार में भाजपा की तरफ से 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए जो 'त्रिदेव' की टीम उतारी गई है उसका उद्देश्य भाजपा के मिशन को यहां पूरा करना है. ऐसे में युवा जोश और बेहतरीन अनुभव के दम पर भाजपा विपक्षियों को झटका देने की तैयारी कर चुके हैं. अब यह त्रिदेव भाजपा के लिए कितना फायदेमंद होंगे यह तो समय के साथ ही पता चलेगा लेकिन बिहार में पहले विनोद तावड़े फिर सम्राट चौधरी और अब विनोद ओझा के रूप में भाजपा ने जो मास्टरस्ट्रोक खेला है वह सच में विपक्ष की परेशानी बढ़ाने वाला है ऐसा राजनीतिक जानकार मानते हैं. 


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विनोद तावड़े को जब बिहार का प्रभारी बनाया गया था तो किसी ने सोचा नहीं था कि भाजपा धीरे-धीरे प्रदेश में इतने बड़े फेरबदल कर देगी. भाजपा ने संजय जायसवाल की जगह सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर सबको चौंका दिया. इससे पहले हरीश दुबे बिहार में प्रदेश के सह प्रभारी थे उनकी जगह पर सुनील ओझा को भेजने का फैसला करके तो मानो भाजपा ने नहले-पर-दहला चला है. दरअसल सुनील ओझा पीएम नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी हैं और वाराणसी में पार्टी का काम वही देखते हैं. वह संगठन के महारथी माने जाते हैं उनकी संगठन पर पकड़ मजबूत है. ऐसे में नीतीश से अलग बिहार में भाजपा को कैसे बड़े अंतर से जीत दिलानी है यह जिम्मेदारी युवा जोश के साथ अनुभवी कंधों पर डाली गई है. 


ऐसे में अब सुनील ओझा के बिहार में नियुक्ति के साथ ही विपक्षी दलों के भी बयान आने शुरू हो गए हैं. राजद के प्रवक्ता शक्ति यादव ने तो यहां तक कह दिया कि भाजपा के नेता अपनी पार्टी में ही परेशान हैं. ऐसे में यहां बिहार में ओझा-बोझा के आने से कोई फर्क नहीं पड़नेवाला है. उन्होंने इशारों-इशारों में कटाक्ष करते हुए कह दिया कि मुरेठा बांधन से कोई पहलवान नहीं बन जाता है ना ही शेर की खाल ढक लेने से कोई शेर हो जाता है.