Sushil Modi Last Rites: बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी का आज (मंगलवार, 14 मई) को पटना के दीघा घाट में अंतिम संस्कार किया जाएगा. कैंसर से पीड़ित 72 वर्षीय सुशील मोदी ने कल (सोमवार, 13 मई) रात 9.45 बजे दिल्ली एम्स में अंतिम सांस ली थी. उनके पार्थिव शरीर को एक विशेष विमान से दिल्ली से पटना लाया गया. यहां पूरे राजकीय सम्मान से उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. इसी के साथ सुशील मोदी का नाम ना सिर्फ बीजेपी के बल्कि बिहार के कद्दावर नेताओं के स्वर्णिम इतिहास में दर्ज हो जाएगा. बिहार बीजेपी में सुशील मोदी अबतक के सबसे बड़े नेता कहे जा सकते हैं. 


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बिहार में अपनी पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए सुशील मोदी की मेहनत को हमेशा याद किया जाएगा. बिहार के एक वैश्य परिवार में जन्मे सुशील मोदी पटना विश्वविद्यालय में बीएससी की पढ़ाई के दौरान छात्र राजनीति में शामिल हो गए और उन्होंने प्रसिद्ध समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 के बिहार आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस दौरान वह भावी सहयोगी नीतीश कुमार और अपने विरोधी लालू प्रसाद के संपर्क में भी आए. वह बिहार में RSS की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक बन गए और अक्सर राजनीति में अपने प्रवेश का श्रेय दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी को देते थे. 


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सुशील मोदी ने कई बार बताया था कि दिवंगत पूर्व पीएम भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी ने उन्हें बीजेपी ज्वाइन कराई थी. सुशील मोदी के अनुसार, 1986 में उनके विवाह समारोह में भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष वाजपेयी ने उनसे कहा था कि अब छात्र राजनीति छोड़ने और पूर्णकालिक राजनीतिक कार्यकर्ता बनने का समय आ गया है. इसके बाद वह सक्रिय राजनीति में आ गए थे. उन्होंने 1990 में पटना मध्य विधानसभा सीट से अपनी चुनावी यात्रा की शुरुआत की और शहर के पुराने निवासी उन्हें एक विनम्र व्यक्ति के रूप में याद करते हैं जो स्कूटर पर चलते थे. 


सुशील मोदी को उनके दृढ़ संकल्प के लिए भी जाना जाता था, जिसका पता बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की सरकार के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी अथक सक्रियता से पता चलता था. सुशील मोदी उन याचिकाकर्ताओं में से एक होने पर गर्व करते थे जिस पर पटना हाईकोर्ट ने बहुचर्चित चारा घोटाले की जांच CBI द्वारा किए जाने के आदेश दिए थे. जिसके कारण बाद में 1997 में लालू को मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था. 


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उन्होंने बिहार विधानसभा में विपक्ष के एक सशक्त नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई, इस पद पर वे 2004 तक रहे जब तक कि वे भागलपुर से लोकसभा के लिए निर्वाचित नहीं हो गए. हालांकि, एक साल बाद, राज्य विधानसभा चुनाव में राजद-कांग्रेस गठबंधन हार गया और मोदी बिहार में वापस आ गए. सुशील मोदी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का करीबी माना जाता था. उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में लंबे समय तक राज्य के उपमुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का पद भी सौंपा और मोदी ने दोनों जिम्मेदारियों को कुशलता से निभाया जिससे उनके कई प्रशंसक बन गए. वर्ष 2013 में नीतीश कुमार के भाजपा से पहली बार अलग होने तक सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री के पद पर थे, और चार साल बाद जब जेडीयू सुप्रीमो एक बार फिर से एनडीए में शामिल हुए तो वह वापस इस पद आसीन किए गए. 


नीतीश कुमार और सुशील मोदी के बीच तालमेल बिहार की राजनीति में किंवदंतियों का विषय रहा है. नीतीश कुमार ने अक्सर अपने भरोसेमंद पूर्व उपमुख्यमंत्री को बीजेपी में दरकिनार कर दिए जाने पर अफसोस जताया. भाजपा के कुछ नेता 'मुख्यमंत्री की लोकप्रियता घटने के बावजूद' बीजेपी के बढ़त हासिल करने में असमर्थता के लिए नीतीश कुमार के प्रति सुशील मोदी के 'नरम' रुख को जिम्मेदार ठहराया करते थे. सुशील मोदी ने एक दशक से अधिक समय तक महत्वपूर्ण वित्त विभाग संभाला था और राज्य के आर्थिक बदलाव की पटकथा लिखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.


इनपुट- भाषा