एक गाना इसको चरितार्थ करता है कि "हम हैं राही प्यार के, हमसे कुछ न बोलिए, जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए"... पीके के अब तक के राजनीतिक और स्ट्रैटजिस्ट करियर को देख कर यह बात स्पष्ट रूप से सबके सामने है कि पीके महत्वाकांक्षी हैं. उन्हें किंगमेकर कहलाना बहुत पसंद है.
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पटना: बिहार के सियासी गलियारे में मंगलवार को पूरे दिन प्रशांत किशोर सुर्खियों में रहे. जेडीयू से बागी रवैया अपनाने के बाद पार्टी से निकाले गए पीके पहली बार बिहार आए. इस दौरान उन्होंने जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार के साथ मतभेद को लेकर खुलासा किया. लेकिन लोगों को तो कुछ और ही इंतजार था. सियासी हलकों में यह चर्चा थी कि पीके यहां आने के बाद अपनी आगे की रणनीति का खुलासा करेंगे.
जो लोग पीके का इतिहास भूगोल और मनोविज्ञान समझते हैं, उन्हें इस मीडिया संबोधन में पीके की रणनीति का अंदाजा हो गया होगा. वह भी बिना उनके स्पष्ट बोले.
पीके अब तक नहीं निकले हैं अपने बिजनेस माइंडेड एप्रोच से
प्रशांत किशोर का राजनीतिक कैरियर जेडीयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहने के बाद भी नहीं चमका, उसके पीछे का एक कारण यह भी है कि वह कभी प्रोफेशनल और बिजनेस माइंडेड एप्रोच से बाहर नहीं निकल सके. दरअसल, जिन्हें भी पीके के आगे की रणनीति का इंतजार था और वह मीडिया संबोधन के बाद भी यह समझ रहे हैं कि उन्होंने अपनी रणनीति का खुलासा नहीं किया तो उन्हें बता दें कि पीके ने इशारों-इशारों में ही संकेत दे दिए हैं.
एक गाना इसको चरितार्थ करता है कि "हम हैं राही प्यार के, हमसे कुछ न बोलिए, जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए"... पीके के अब तक के राजनीतिक और स्ट्रैटजिस्ट करियर को देख कर यह बात स्पष्ट रूप से सबके सामने है कि पीके महत्वाकांक्षी हैं. उन्हें किंगमेकर कहलाना बहुत पसंद है. राजनीति में रहने के बाद भी पीके कभी भी एक राजनेता कम लेकिन एक प्रचार-प्रसार करने वाले व्यवसायी के तौर पर ज्यादा दिखे.
शुरू करेंगे 'बात बिहार की' अभियान
बिहार आए पीके ने अपने आगे की रणनीति पर बात करते हुए सिर्फ इतना कहा- 20 फरवरी से मैं एक नया कार्यक्रम 'बात बिहार की' शुरू करने जा रहा हूं. मैं किसी गठबंधन या किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़ने जा रहा. मैं ऐसे लोगों को जोड़ना चाहता हूं, जो बिहार को अग्रणी राज्यों की दौड़ में शामिल करना चाहते हैं. जब तक जीवित हूं बिहार के लिए पूरी तरह समर्पित हूं, मैं कहीं नहीं जाने वाला हूं. मैं आखिरी सांस तक बिहार के लिए लड़ूंगा."
मतलब साफ है कि पीके बिहार छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाले. उन्होंने अपनी दुकान लगा कर राजनीतिक पार्टियों को यह न्यौता दे दिया है कि दाम लगाएं और शर्त बताएं, मैं बिहार चुनाव की तैयारियों में जुटा हूं. उस दौरान लगने वाले औजारों की पॉलिशिंग करता रहूंगा, जिसे भी चमक पानी हो, वह आए मुझसे हाथ मिला ले.
पीके का डेटा जुटाने का नया प्लान
पीके ने यह भी कहा कि "मुझे किसी गठबंधन या राजनीतिक दल के कार्यक्रम में कोई दिलचस्पी नहीं है. मैं यहां किसी की पार्टी को बिगाड़ने या बनाने नहीं आया हूं." दिलचस्प बात यह है कि पीके ने अपना डेटाबेस बढ़ाने के लिए एक और अभियान 'बात बिहार की' शुरू करने का राग छेड़ दिया. पीके ने कहा कि वे इसके जरिए पंचायत स्तर की राजनीति में हजारों लोगों और युवाओं को जोड़ेंगे. उन्हें सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनाएंगे.
इस दौरान पीके से किसी ने यह नहीं पूछा कि आखिर आपके 'यूथ इन पॉलिटिक्स' प्रोग्राम का क्या हुआ जिसके तहत लाखों की तादाद में युवाओं को इस शर्त पर जोड़ा गया है कि उन्हें सक्रिय राजनीति में उतारा जाएगा. यूथ इन पॉलिटिक्स पेज पर कम से कम दो लाख से भी अधिक बिहार के युवाओं ने रजिस्ट्रीकरण कर अपने प्राइवेट डाटा को उसमें साझा किया है.
पीके ने नहीं बताया क्या होगा यूथ इन पॉलिटिक्स का ?
अब सवाल यह उठता है कि पीके ने यूथ इन पॉलिटिक्स से जुड़े युवाओं को भी यह वादा किया कि उन्हें सक्रिय राजनीति में उतारेंगे और अब अलग से एक अभियान चलाने की तैयारी में हैं. तो ऐसे में सक्रिय राजनीति में आने के लिए उत्सुक हुए वैसे युवा जो इन अभियानों से जुड़ते हैं, क्या सब को चुनाव में उतारा जाएगा. और अगर सबको नहीं उतारेंगे तो क्या उसके लिए कोई लॉट्री सिस्टम होगा ?
पीके के बयानों के बाद सियासी गलियारों में कई प्रतिक्रियाएं आईं. कांग्रेस और आरजेडी ने पीके के संबोधन पर जिस तरह से खूब पीठ थपथपाई है, उससे यह संभव लगता है कि पीके को अपने अगले क्लाइंट के लिए ज्यादा इंतजार न करना पड़े.