रांची: हजारीबाग के चुरचू निवासी बैंक मैनेजर विनोद कुमार और मल्टीनेशनल कॉरपोरेट कंपनी में काम करने वाली उनकी पत्नी राधिका कुमारी ने नौकरियां छोड़कर खेती-किसानी में सफलता की शानदार कहानी लिख दी है. नाबार्ड और इफको किसान जैसी संस्थाएं उनकी कामयाबी से प्रभावित हैं.


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इन संस्थाओं ने उन्हें झारखंड में ऑटोमेटेड इरिगेशन सिस्टम के पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना है. ये राज्य के इकलौते किसान बन गए हैं, जो मोबाइल ऐप के जरिए कहीं दूर बैठकर भी अपने खेतों में लगी फसलों की सिंचाई कर लेते हैं. इनके खेतों में तरबूज, खीरा, करेला से लेकर नेनुआ तक की बंपर फसल हो रही है. इनकी उगाई सैकड़ों टन सब्जियां देश के दूसरे राज्यों से लेकर देश की सरहद के बाहर बांग्लादेश तक पहुंच रही हैं.


वर्ष 2020 में कोविड काल में जब चारों तरफ मायूसियां पसरी हुई थीं और जिंदगी से लेकर करियर तक को लेकर हर किसी के दिलो-दिमाग पर आशंकाएं-अनिश्चितताएं हावी थीं, तब अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के पुणे में मल्टीनेशनल्स की नौकरियों में मशरूफ इस दंपति के लिए सब कुछ एक झटके में छोड़कर गांव लौटने का फैसला कतई आसान नहीं था.


घर लौटते हुए इनके जेहन में सिर्फ एक बात थी कि एक जिंदगी गांव में भी है. यहां कुछ कर लिया तो पैसा भले कम-ज्यादा आए, लेकिन उसकी तुलना में जो सुख और सुकून मिलेगा वह सबसे बेशकीमती होगा. कहने की जरूरत नहीं कि सिर्फ दो-ढाई साल में इस दंपति के दिल की वो आवाज आज गांव की सरजमीं पर सफलता का सरगम बनकर गूंज रही है.


विनोद का गांव हजारीबाग जिले के चुरचू प्रखंड अंतर्गत हरहद में है. उन्होंने तय किया कि नई तकनीकों के साथ खेती में हाथ आजमाया जाए. गांव में अपनी जमीन कुछ खास नहीं थी. उन्होंने रबोध गांव के दरहवा और कुसुमडीह में 18 एकड़ ऐसी जमीन दस साल के लिए लीज पर ली, जिसे आम तौर पर बंजर माना जाता था. इस जमीन साल में सात-आठ महीने परती रहती थी.


थोड़े रिसर्च और कृषि वैज्ञानिकों से चर्चा के बाद उन्होंने यहां तरबूज की खेती शुरू की. सिंचाई के लिए टपक विधि अपनाई और वर्ष 2021 में पहले ही साल उन्होंने 150 टन तरबूज उगाया. दूसरे साल 2022 में यह उत्पादन 210 टन जा पहुंचा और कुल कारोबार लगभग दस लाख रुपए तक जा पहुंचा.


विनोद बताते हैं कि इसके साथ ही सीजन के अनुसार खीरा, करेला, नेनुआ, मिर्च और टमाटर की खेती भी शुरू की गई. पिछले साल तकरीबन 150 क्विंटल खीरा, 100 क्विंटल करेला और 100 क्विंटल नेनुआ का भी उत्पादन हुआ. फसलों को बाजार से जोड़ने के लिए उन्होंने स्थानीय किसानों के साथ मिलकर फार्मर्स प्रोड्यूसर्स ऑर्गनाइजेशन (एफपीओ) बनाया.


वे डाड़ी संयुक्त ग्रामीण प्रोड्यूसर कंपनी लि. नामक एफपीओ के सीईओ हैं. इसके जरिए डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फसलें आसानी से उचित कीमत पर बेची जा रही हैं. बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के दूसरे जिलों और बांग्लादेश तक के बाजारों से खरीदार खुद यहां पहुंचकर खेतों से फसलें उठा रहे हैं.


इस दंपति की सफलता से प्रभावित होकर नाबार्ड और इफको किसान ने इन्हें जिस ऑटोमेटेड इरिगेशन सिस्टम के पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना है, उसे लेकर वे काफी उत्साहित हैं. दरअसल यह सेंसर और डिजिटल तकनीक पर आधारित एक ऐसा मोबाइल ऐप है, जिसके जरिए दूर बैठकर भी फसलों की सिंचाई करना संभव हो रहा है.


इस सिस्टम में खेत पर एक टावर लगा होता है, जो वहां फार्म में मौजूद सिंचाई मशीनों को मोबाइल कमांड का सिग्नल देता है. खेत में लगे संयंत्र से इस बात की जानकारी हासिल हो जाती है कि मिट्टी में फिलहाल नमी कितनी है. फिर इसके अनुरूप वह कहीं से अपने मोबाइल ऑपरेटेड ऐप के जरिए सिंचाई कर सकते हैं. फसल की पत्तियों में नमी, जमीन के तापमान, हवा की गति और मौसम समेत तमाम पैरामीटर्स की जानकारी इस ऐप पर मिल जाती है.


विनोद फिलहाल पांच एकड़ जमीन पर इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने अपनी पांच एकड़ की जमीन को चार हिस्सों में बांट दिया है और एक बार में सवा एकड़ की यह सिंचाई ऐप के माध्यम से करते हैं. राज्य में अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है. इसकी सफलता के बाद राज्य के अन्य किसान भी इस तकनीक का इस्तेमाल कर पाएंगे.


(आईएएनएस)