Baba Baidyanath News: तीर्थ नगरी देवधर स्थित द्वादश ज्योर्तिलिंग बाबा बैधनाथ और सुल्तानगंज की उत्तर वाहिनी गंगा तट पर स्थित बाबा अजगैबीनाथ के साथ दुमका जिला में बाबा बासुकीनाथ धाम की गणना बिहार और झारखंड ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय शैव स्थल के रूप में होती है. भगवान शिव के ज्योतिर्लिगों में से एक झारखंड के देवघर स्थित कामना ज्योतिर्लिग (बैद्यनाथ धाम) में जलाभिषेक करने वालों की पूजा बासुकीनाथ (नागेश) की पूजा बिना अधूरी मानी जाती है. यही कारण है कि बैद्यनाथ धाम आने वाले कांवड़िये बासुकीनाथ का जलाभिषेक करना नहीं भूलते. मान्यता है कि बाबा बैद्यनाथ के दरबार में यदि 'दीवानी मुकदमों' की सुनवाई होती है तो बासुकीनाथ में 'फौजदारी मुकदमों' की. शिव भक्तों का विश्वास है कि बाबा बैद्यनाथ के दरबार की अपेक्षा बाबा नागेश के दरबार में सुनवाई जल्द पूरी हो जाती है.


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इस पावन धाम में श्रावणी मेला के दौरान केसरिया वस्त्रधारी कांवड़ियों और तीर्थयात्रियों की खास चहल-पहल रहती है. सावन के महीने में तो लाखों श्रद्धालु सुलतानगंज-अजगैबीनाथ से उत्तरवाहिनी गंगा का पवित्र जल अपने कांवड़ में भरते हैं. फिर 105 किलोमीटर से भी अधिक पहाड़ के जंगली रास्ते पैदल पार कर इसे देवघर में बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाते हैं. इसके बाद वे बासुकीनाथ आकर नागेश ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक करते हैं. लोक आस्था का महाकुंभ श्रावणी मेला पुस्तक के लेखक शिव शंकर सिंह पारिजात बताते हैं कि माना जाता है कि वर्तमान दृश्य मंदिर की स्थापना 16वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में हुई. हिंदुओं के कई ग्रंथों में सागर मंथन का वर्णन किया गया है, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर सागर मंथन किया था. बासुकीनाथ मंदिर का इतिहास भी सागर मंथन से जुड़ा हुआ है.


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मान्यता है कि सागर मंथन के दौरान पर्वत को मथने के लिए वासुकी नाग को माध्यम बनाया गया था. इन्हीं वासुकी नाग ने इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी. यही कारण है कि यहां विराजमान भगवान शिव को बासुकीनाथ कहा जाता है. इसके अलावा मंदिर के विषय में एक स्थानीय मान्यता भी है. कहा जाता है कि कभी यह वन क्षेत्र से आच्छादित था जिसे दारुक वन कहा जाता था. कुछ समय के बाद यहां मनुष्य बस गए जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दारुक वन पर निर्भर थे. ये मनुष्य कंदमूल की तलाश में वन क्षेत्र में आया करते थे.


इसी क्रम में एक बार बासुकी नाम का एक व्यक्ति भी भोजन की तलाश में जंगल आया. उसने कंदमूल प्राप्त करने के लिए जमीन को खोदना शुरू किया. तभी अचानक एक स्थान से खून बहने लगा. बासुकी घबराकर वहां से जाने लगा तब आकाशवाणी हुई और बासुकी को यह आदेशित किया गया कि वह उस स्थान पर भगवान शिव की पूजा अर्चना प्रारंभ करे. बासुकी ने जमीन से प्रकट हुए भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग की पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी, तब से यहां स्थित भगवान शिव बासुकीनाथ कहलाए. बासुकीनाथ मंदिर में बाबा भोले नाथ का दरबार स्थित है. बासुकीनाथ धाम में शिव और पार्वती मंदिर एक दूसरे के आमने-सामने हैं.


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बासुकीनाथ तांत्रिकों की साधना का महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है. स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योग विद्या पत्रिका में यहां तांत्रिकों के साधना की चर्चा की है. पत्रिका के मुताबिक यहां अनेक तांत्रिक सिद्धि हासिल कर चुके हैं. अपनी मन्नत लिए आस्थावान यहां धरना पर बैठते हैं. मान्यता है कि नागेश उनकी मन्नत धरना पर बैठने के बाद अवश्य पूरी करते हैं. भक्त गण शिव के आशीर्वाद मिलने के संकल्प के साथ धरना पर तब डटे रहते हैं जबतक उनकी मनोकामना पूरी नहीं होती. यहां के चमत्कार की गणना कठिन है. यहां भगवान शिव नागनाथ (सर्पों के राजा) के नाम से जाने जाते हैं. यह उनके अति शक्तिशाली पक्ष का साकार रूप है. सर्पों के राजा का रूप ब्रह्मांडीय चेतना को वशीभूत कर लेने का प्रतीक है. दुमका स्थित बासुकीनाथ मंदिर का इलाका पूरे सावन में बोल-बम के नारों से गुंजायमान रहता है.