मुजफ्फरपुर बिहार के सबसे पुराने शहरों में शुमार है. लेकिन जैसे-जैसे अन्य शहर आधुनिक सुविधाओं से लैश होते जा रहे हैं, वैसे ही मुजफ्फरपुर के हाल दिन-ब-दिन सार्वजनिक सुविधाओं के बदतर होते जा रहे हैं.
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पटना: सूबे के जिन शहरों को स्मार्ट सिटी (Smartcity) का दर्जा मिला है, उनमें दो महीने में 70 फीसदी काम पूरा होने का लक्ष्य रखा गया है. उत्तर बिहार का प्रमुख शहर मुजफ्फरपुर भी स्मार्ट सिटी में शामिल है, लेकिन अभी तक शहर में स्मार्ट सिटी की योजनाओं पर काम शुरू नहीं हो सका है. दरअसल, तिरहुत के मुख्यालय मुजफ्फरपुर को 2017 में स्मार्ट सिटी का दर्जा मिला था, जिसके बाद से शहर के तेजी से विकास की उम्मीद जगी थी. स्मार्ट सिटी के मद में 1680 करोड़ रुपये से काम होना है, लेकिन अभी तक शहर में एक भी काम सरजमीं पर नहीं उतर पाया है. जल जमाव, गंदगी, अतिक्रमण और जाम की चपेट में अब भी पूरा शहर है.
मुजफ्फरपुर, बिहार के सबसे पुराने शहरों में शुमार है. लेकिन जैसे-जैसे अन्य शहर आधुनिक सुविधाओं से लैश होते जा रहे हैं, वैसे ही मुजफ्फरपुर के हाल दिन-ब-दिन सार्वजनिक सुविधाओं के बदतर होते जा रहे हैं. ऐसे में स्थानीय लोग अब उम्मीद छोड़ने लगे हैं. स्थानीय लोगों के साथ अब जन प्रतिनिधियों को भी शहर के स्मार्ट सिटी बनने पर प्रश्नचिह्न लगता दिखायी दे रहा है, ये लोग भी उम्मीद छोड़ रहे हैं.
स्मार्ट सिटी के नाम पर दुर्दशा झेल रहे मुजफ्फरपुर को लेकर नगर विकास विभाग की बैठक में फिर से कुछ फैसले लिये गए हैं, जिससे उम्मीद जगी है. जो फैसले लिये गये हैं, उनमें मुजफ्फरपुर के छह में टॉप 50 शहरों में शामिल करने का लक्ष्य रखा गया है. इसमें कई महत्वपूर्ण फैसले लिये गये हैं, जिनमें-
पिछले विधानसभा चुनाव में हार का सामना करनेवाले पूर्व नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा शहर के विकास को लेकर उम्मीद लगाये हैं. हालांकि, वो भी ये मानते हैं कि शहर का विकास अधिकारियों की कार्यशैली की वजह से नहीं हो पाया. बता दें कि स्मार्ट सिटी में शामिल बिहार के अन्य शहर जहां विकास के मामले में आगे निकल गये हैं. वहीं, मुजफ्फरपुर फिसड्डी साबित हो रहा है. देश की सौ स्मार्ट सिटी में शहर का स्थानीय 94वां हैं, जिससे यहां किस तरह का काम हुआ है, इसका अंदाजा लगता है.