सुपौल: नेपाल के प्रसिद्ध बराह क्षेत्र में कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर लाखों श्रद्धालुओं ने कोसी नदी में आस्था की डुबकी लगाई. यह क्षेत्र बिहार औऱ नेपाल सीमा के पास सुनसरी जिले में हिमालय की तराई में स्थित है और इसकी पौराणिक महत्ता बेहद खास मानी जाती है. कार्तिक पूर्णिमा पर यहां नेपाल और भारत के विभिन्न राज्यों से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. दो दिन पहले से ही लोग यहां आना शुरू कर देते हैं, जहां वे कोसी नदी में स्नान कर पूजा-अर्चना करते हैं.


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आचार्य मदन मोहन के अनुसार मान्यता है कि बराह क्षेत्र में कोसी नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और बराहा बाबा को जल अर्पित करने से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस स्थान पर सप्तकोशी नदी का मिलन होता है, जिसे सात नदियों के संगम के रूप में जाना जाता है. यह पवित्र स्थान कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाता है. बराह क्षेत्र का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व विष्णु पुराण और गरुड़ पुराण में वर्णित है. कहा जाता है कि सतयुग में हिरणाक्ष नामक राक्षस ने पृथ्वी को पाताल लोक में छिपा दिया था. तब भगवान विष्णु ने सूअर (वराह) का अवतार लेकर राक्षस का वध किया और पृथ्वी को ब्रह्मांड में पुनः स्थापित किया. इसी पौराणिक घटना के कारण इस स्थान को बराह क्षेत्र के नाम से जाना जाता है.


कार्तिक पूर्णिमा पर यहां दो दिवसीय भव्य मेले का आयोजन होता है, जहां श्रद्धालु स्नान और पूजा के साथ-साथ मेले का आनंद भी लेते हैं. बराह क्षेत्र का बराहा बाबा मंदिर भी इस अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना का केंद्र बनता है. मंदिर के पुजारी के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर यहां स्नान और पूजा का महत्व बहुत बड़ा है, जिससे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुलता है. साथ ही  इस पावन अवसर पर भारत के विभिन्न राज्यों से आए श्रद्धालुओं ने बताया कि कोसी स्नान और बराहा भगवान की पूजा से उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. हर साल यहां कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं, जिससे यह स्थान आस्था और विश्वास का प्रतीक बन गया है.


इनपुट- सुभाष चंद्रा


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