आदिम जनजाति के पारा शिक्षक व साथी की संदेहास्पद मौत, किसी को नहीं मिल रहे सुराग
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आदिम जनजाति के पारा शिक्षक व साथी की संदेहास्पद मौत, किसी को नहीं मिल रहे सुराग

तेनदार मेला में दोनों लोग को अंतिम बार देखा गया था. वहां से घर वापस दोनों ही लोग नहीं पहुंचे. इसके बाद से लगातार दोनों लोगों की खोज में पूरे गांव के लोग इधर-उधर भटकते रहे लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. 

आदिम जनजाति के पारा शिक्षक व साथी की संदेहास्पद मौत, किसी को नहीं मिल रहे सुराग.

गुमला: झारखंड के घाघरा थाना क्षेत्र के तेंदार पाकर कोना रोड निवासी शिक्षक 55 वर्षीय लालदेव आसुर व बाकी टोला दिरगांव निवासी 28 वर्षीय रामसूरज खड़िया की लाठी-डंडे से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. घटना के संबंध में मृतक पारा शिक्षक की पत्नी राज मनियराइल ने बताया कि शुक्रवार को दसई कर्म मनाने के लिए घर से मांदर लेकर निकला था, जिसके बाद उसके साथ में रामसूरज खड़िया भी निकला था. 

तेनदार मेला में दोनों लोग को अंतिम बार देखा गया था. वहां से घर वापस दोनों ही लोग नहीं पहुंचे. इसके बाद से लगातार दोनों लोगों की खोज में पूरे गांव के लोग इधर-उधर भटकते रहे लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. 

रविवार को अचानक दिन के 1:00 बजे बैल चराने वाले लोगों ने सूचना दी कि 2 लोगों का शव तेनदार मेला के नीचे झाड़ी में पड़ा हुआ है. जब जाकर हम लोगों ने देखा तो दोनों वही लोग थे, जिसकी लाठी डंडे से मार-मार कर हत्या कर दी गई थी. वही, घटना के बाद से दोनों परिवार का रो-रो कर बुरा हाल है. इधर, घटना की सूचना पाकर पुलिस भी घटनास्थल के लिए निकल चली है.

घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में है घटनास्थल
जिस जगह पर घटना को अंजाम अपराधियों ने दिया है, वह घोर नक्सल प्रभावित इलाका माना जाता है. घाघरा मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर तेन्दर गांव है, जहां पर जाने के लिए ना तो सड़क है ना ही पुलिया. ऐसी स्थिति में नक्सली गतिविधि इस इलाके में लगातार चलती रहती है. घटना के बाद से इलाके के लोग काफी भयभीत हो गए हैं.

लंबे अरसे से नहीं जाती है इस इलाके में पुलिस
नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण इस इलाके में पुलिस की गतिविधि बिल्कुल भी नहीं रहती है. किसी भी तरह का हत्या लूट मार की शिकायत आने पर चौकीदार भेजकर शव को मंगाया जाता है और पोस्टमार्टम कराकर परिवारवालों को दे दिया जाता है. इधर, नक्सली इलाका होने के कारण गांव के लोग भी अब पुलिस से पूरी तरह से कट गए हैं. 

ग्रामीणों ने बताया कि लगभग 5 वर्षों में आज तक किसी भी घटना का जांच को लेकर पुलिस इस इलाके में नहीं आई है.

इलाके में चलता है नक्सलियों का राज
दिरगांव, तेंदार, तूसगांव, बाकीताला, हेदमी, सलामी, नवाटोली, हुसीर बीमारला इलाके में है. माओवादियों के लिए यह इलाका सेफ जोन माना जाता है. लगातार पुलिस के द्वारा अभियान चला कर नक्सलियों को खदेड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन आज भी इलाके में नक्सली माओवादी संगठन का दबदबा है. 

पूर्व में सिल्वेस्टर प्रसाद लकड़ा के बाद बुद्धेश्वर व लजिम का दस्ता सक्रिय है. इसी कारण से आसानी से पुलिस का गतिविधि इस इलाके में नहीं हो पाती है. इस इलाके में शाम ढ़लते ही माओवादी हथियार लेकर दिनदहाड़े गांव के आसपास घूमते नजर आते हैं. 

पुलिस की गतिविधि बिल्कुल भी नहीं होने के कारण इस इलाके में होने वाले अधिकतर समस्याओं को नक्सलियों के द्वारा ही जन अदालत लगाकर समाधान किया जाता है. अब गांव के लोग चाहते हैं कि इलाके का विकास हो और इलाके में कानून व्यवस्था लागू हो.

मूलभूत सुविधाओं से वंचित है यह इलाका
इलाके में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है ना तो इलाके में सड़क है और ना ही पुल पुलिया, बिजली भी कई गांव में नहीं पहुंची तो पीने का पानी का भी सुविधा गांव वालों को नहीं मिलता है. अस्पताल का भवन बनाया गया है, लेकिन आज तक डॉक्टर नहीं आते हैं.

इस इलाके के लोग पूरी तरह से प्राकृतिक के हिसाब से अपने आप को ढाल कर जीवन यापन करते हैं. बीमार पड़ने पर जड़ी बूटी व ओझा गुनी का सहारा लेते हैं. प्रसव के लिए पारंपरिक तरीके से गांव में ही दाई के माध्यम से किया जाता है. 

यहां के बच्चे पढ़ाई के लिए बाहर नहीं जाते बल्कि जितने तक सरकारी स्कूल में पढ़ाई होती है 6 से 7 क्लास तक पढ़ाई करके छोड़ देते हैं. यातायात के साधन भी यहां मौजूद नहीं है जिससे इलाका काफी पिछड़ा हुआ है.