क्या सच में पीके लड़ रहे थे विचारधारा की लड़ाई या कुछ और ही थी पर्दे के पीछे की सच्चाई ?
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क्या सच में पीके लड़ रहे थे विचारधारा की लड़ाई या कुछ और ही थी पर्दे के पीछे की सच्चाई ?

राजनीति में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के तमगे के साथ लॉन्च होने वाले पीके ने जेडीयू की सरकार दोबारा बनाने का वादा किया था. लेकिन अफसोस की बात यह है कि अगर बीजेपी-जेडीयू की सरकार विधानसभा चुनाव के बाद बनती भी है तो उसका श्रेय पीके नहीं ले पाएंगे.

क्या है नीतीश-पीके के बीच दूरी की असली सच्चाई. (फाइल फोटो)

पटना: बिहार के सियासी गलियारे में बुधवार को एक बात की चर्चा जोरों पर हैं कि आखिर प्रशांत किशोर का अगला प्लान क्या होगा? हालांकि यह तो सिर्फ उनको ही पता है. लेकिन पार्टी से निष्कासित किए जाने की असल वजह क्या है, इसके पीछे भी कुछ ठोस तर्क दिए जा रहे हैं.

दरअसल, जेडीयू के महासचिव केसी त्यागी ने तो यहीं कहा कि प्रशांत किशोर ने पार्टी के मुखिया को गिरा हुआ कह कर संबोधित कर दिया था, जिसके बाद उनपर यह एक्शन लिया गया. हालांकि, इस पर आरजेडी नेता मृत्युंजय तिवारी और कांग्रेस के नेता राजेश राठौड़ ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडीयू में अब अमित शाह की चलती चलने लगी है. 

मुख्यमंत्री ने किया खुलासा तो विपक्ष कसने लगा तंज

इस पर आरजेडी कोटे से राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि यह सिर्फ अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के बीच का विवाद नहीं है. अमित शाह के कहने पर पार्टी में रखा जाना बताता है कि जेडीयू का अपना अस्तित्व नहीं बच गया है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने मीडिया से बात करते हुए इसका खुलासा किया था कि अमित शाह के कहने पर उन्होंने पीके को अपनी पार्टी में जगह दी. 

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अब इसको लेकर हर दल यह सवाल उठाने लगे हैं कि क्या जेडीयू में सारे निर्णय अमित शाह से पूछ कर लिए जाते हैं ? इसके बाद आरजेडी ने तो जेडीयू को बीजेपी की बी टीम तक कह दिया है. हालांकि पीके की पार्टी से छुट्टी के पीछे का कारण और इसकी पटकथा कुछ अलग है. पार्टी के नेताओं में इस चीज को लेकर रार था कि बाद में आए पीके पार्टी के अंदर धाक जमाने लगे हैं.

राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर काबू नहीं पा सकते पीके!

जेडीयू नेता अजय आलोक की मानें तो पीके की महत्वाकांक्षा और सबकुछ अपने हिसाब से ढ़ालने की जिद ने ही आज उनको यहां तक पहुंचा दिया है. राजनीति में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के तमगे के साथ लॉन्च होने वाले पीके ने जेडीयू की सरकार दोबारा बनाने का वादा किया था. लेकिन अफसोस की बात यह है कि अगर बीजेपी-जेडीयू की सरकार विधानसभा चुनाव के बाद बनती भी है तो उसका श्रेय पीके नहीं ले पाएंगे.

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के बाद जोरों पर शुरू किया प्रचार-प्रसार का काम

पीके की प्लानिंग कुछ और ही थी. उन्होंने जेडीयू की सदस्यता लेने के बाद पार्टी में बदलाव करने की कवायद शुरू की. सबसे पहले तो पार्टी के लिए सदस्यता अभियान को बड़े जोरों से चलाया. खासकर युवाओं को पार्टी में जोड़ने का काम उन्होंने वृहद पैमाने पर करना शुरू किया. युथ इन पार्लियामेंट नाम से एक कैंपेन चलाया जिसके तहत युवाओं को राजनीति से जोड़ने के लिए उन्होंने कई कार्यक्रम किए. 

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कुछ राजनीतिक पंडितों की मानें तो पीके ने पंचायत स्तर पर सदस्यता अभियान चला कर सूबे के 8000 से भी अधिक पंचायतों में मुखिया और सरपंच तक के लिए जेडीयू समर्थित उम्मीदवारों को खड़ा करने का प्लान बनाया था. अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के मोह में पीके ने बिहार के सबसे चर्चित संस्थान पटना विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव में हस्तक्षेप किया. 

हालांकि इस हस्तक्षेप के बाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में जेडीयू ने पहली बार अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाया. दिलचस्प बात यह है कि पीके खुद को एक राजनीतिक चेहरा खड़ा करने वाले महारथी मानने लगे थे.
मुजफ्फरपुर में एक कार्यक्रम के दौरान प्रशांत किशोर ने तो यहां तक कह दिया कि अगर किसी को प्रधानमंत्री, किसी को मुख्यमंत्री बना सकता हूं तो किसी को पंचायत प्रमुख और मुखिया बनाना कौन सी बड़ी बात है.

जेडीयू में बदलाव से आहत हुए कई नेता

वह यहीं नहीं रूके. उन्होंने जेडीयू के अंदर सोशल मीडिया मार्केटिंग जिसमें उन्हें महारथ हासिल है, उसको जोरों से प्रोमोट करना शुरू कर दिया था. बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर हालांकि पीके के प्लान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू-बीजेपी साथ नहीं बल्कि एक दूसरे के खिलाफ लड़ने वाली थी.

लेकिन जल्द ही उनके प्लान पर पानी फिर गया जब जेडीयू ने बीजेपी से हाथ मिला लिया और आरजेडी-कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़ दिया. पीके ने इसका इजहार भी एक मैगजीन में दिए इंटरव्यू के दौरान किया था. उन्होंने कहा था कि महागठबंधन से नाता तोड़कर जेडीयू ने गलती कर दी है.

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पीके को इस बात से काफी परेशानी हुई. जिस अमित शाह को वह अपना राजनीतिक प्रतिद्वंदी मानने लगे थे, उसी के साथ मिलकर काम करना उनके पूरे प्लान को चौपट करने जैसा लगने लगा था. ये अलग बात है कि प्रशांत किशोर को राजनीति में आए कुछ ही दिन हुए और उन्होंने बिहार की सियासत पर अपनी पकड़ बनाने जैसी महत्वाकांक्षा के तहत काम करना शुरू कर दिया था. 

...जब टूट गया पीके का चुनावी सपना

हाल के दिनों में जब सीएए और एनआरसी पर पूरे देश में विवाद चल रहा था, उस दौरान पीके को जोरदार धक्का लगा. यह धक्का इसलिए लगा क्योंकि शाह ने यह ऐलान कर दिया कि एनडीए बिहार में विधानसभा-2020 नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ेगी.

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अब तक प्रशांत किशोर को यह लगता रहा था कि वह बीजेपी के खिलाफ जा कर जेडीयू किसी और दल के साथ, फिर चाहे वह आरजेडी और कांग्रेस ही क्यों न हो, चुनाव लड़ेगी और तब उनकी भूमिका पार्टी के लिए अहम होगी. हालांकि ऐसा हुआ नहीं.

इसके बाद प्रशांत किशोर लगभग बौखला गए थे. भले इस बात को किसी मंच से मानने से उन्होंने इंकार कर दिया लेकिन राजनीतिक प्लॉट तैयार करने वाले पीके का प्लान फ्लॉप होते ही उनकी बौखलाहट बाहर आने लगी. और अब उसकी वजह से ही पीके बैकफुट पर खड़े नजर आने लगे हैं.