देश दुनिया मे अपनी अमिट छाप छोड़ चुका भागलपुरी सिल्क अब धीरे धीरे कमजोर होता जा रहा है. सरल शब्दों में कहें तो इसके अस्तित्व पर खतरा है. कोकून की खेती कम होने और धागा तैयार नहीं होने और विदेशी धागों के महंगे होने के कारण व्यापार में गिरावट आई है. भागलपुरी सिल्क की डिमांड भारत के अन्य राज्यों व यूरोपियन देशों में होती है लिहाजा यहां से व्यापारी भारी मात्रा में पार्सल भेजते हैं. इसके दूसरे परिणाम यह भी है कि बाहर इसकी कीमत दोगुनी और तिगुनी करके बेची जाती है. वहीं भागलपुरी सिल्क और चादर के नाम पर भी बाहर में डुप्लिकेट चीजों को बेचा जाता है. भागलपुरी सिल्क के लिए सरकार को नजरें इनायत करने की जरूरत है. सिल्क को लोकल बाजार मिले, टेक्सटाइल पार्क बने, कोकून की खेती को बढ़ावा मिले तो सिल्क की अस्मिता बनी रहेगी, नहीं तो सिल्क के नाम पर सिल्क सिटी भागलपुर ही बचेगा.