Poor Man Mahant Mahto Struggle Story: 'अपनी गुर्बत की कहानी हम सुनाएं कैसे, रात फिर बच्चा हमारा रोते रोते सो गया.' इबरत मछलीशहरी का यह शेर पश्चिम चंपारण के योगापट्टी निवासी महंत महतो पर एकदम फिट बैठती है. ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी, अरबों डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार, रोज शिखर छूता शेयर बाजार, ये सब विकास की कहानी कहते हैं लेकिन महंत महतो के लिए ये सब अनजाने शब्द हैं. महंत महतो तो इन सब बातों के मतलब भी नहीं समझ सकते, क्योंकि विकास की रोशनी महंत महतो तक पहुंच नहीं पाई.


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अब महंत महतो के लिए विकास की रोशनी वैसे ही है, जैसे वैक्यूम में प्रकाश की गति. महंत महतो की जिंदगी इस 5जी तकनीक के दौर में भी मध्ययुगीन तरीके से चल रही है. अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने का दावा करने वाले पिछले 75 साल में भी महंत महतो की जिंदगी को रोशन नहीं कर पाए हैं. सरकारें आती हैं, जाती हैं पर महंत महतो जैसे लोगों की जिंदगी में विकास का सूनापन कल भी वैसे ही था और आज भी वैसे ही है. 


पश्चिम चंपारण के योगापट्टी प्रखंड के बगही पुरैना पंचायत के वार्ड नंबर 3 में महंत महतो का परिवार रहता है. परिवार का रहन सहन देख कोई भी सकते में आ सकता है पर हमारे जनप्रतिनिधियों और जिला प्रशासन के पदाधिकारियों को शर्म मगर आती नहीं है. महंत महतो का परिवार 21वीं सदी में भी 14वीं सदी की जिंदगी जी रहा है. परिवार दाने दाने को मोहताज है. परिवार के लोग किसी दिन खाना खाते हैं तो किसी दिन मन को मारकर ऐसे ही निंदिया रानी को बुला लेते हैं. 


महंत महतो और शिवपति देवी के पास ना अपनी जमीन है और ना ही किसी सरकारी योजनाओं का लाभ इन्हें मिलता है. आज तक राशन कार्ड नहीं बन पाया है. भीख मांगकर दोनों बुजुर्ग दो पोता-पोती की परवरिश कर रहे हैं. 10 वर्ष पहले इनकी बहू की मौत हो गई थी. उसके बाद बेटा मंटू महतो कहां चला गया, आज तक पता नहीं चल पाया. दोनों बुजुर्ग दंपति सड़क किनारे एक झोपड़ी बनाकर पोता पोती को पाल रहे हैं.


परिवार पूरी तरह से भूमिहीन है, इन्हें सरकारी योजना के तहत 5 डिसमिल जमीन भी नहीं मिल पा रहा है. महंत महतो का कहना है कि जहां जाते हैं वहां अधिकारी और नेता भगा देते हैं. चार पेट का खाना कहा से जुगाड करें, ये समझ में नहीं आ रहा है. शरीर में अब ताकत भी नहीं है, जिससे मजदूरी कर सके. 


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पहले गांव के लोग बहुत दयालु थे, जो अन्न पानी दे दिया करते थे, लेकिन आज लोग कुछ भी नहीं दे रहे हैं. चार परिवार के इस घर में कभी चूल्हा जलता है, तो कभी नहीं भी जल पाता. महंत महतो कहते हैं, हम तो आत्महत्या भी नहीं कर सकते, क्योंकि दो पोता पोती को पालना जो है. 


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वे कहते हैं, जो भीख में मिलता है, उससे खाना बनता है. नहीं कुछ मिलता तो बच्चों को ऐसे ही सुला देते हैं. उनके मन में एक सवाल भी है, ये कैसी सरकार है कि राशन कार्ड भी नहीं दे पा रही है. कैसे अधिकारी हैं जो आखिरी पायदान पर खड़े गरीब की दशा को देखकर भी नहीं पिघल रहे हैं.


इनपुट - धनंजय द्विवेदी


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