नई दिल्ली: देश को किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार ने इस साल 5 जून को 3 अध्यादेश जारी किए. इन तीनों अध्यादेशों को खेती और किसानों की तकदीर बदलने वाला एक बड़ा बदलाव माना गया. अब जब मोदी सरकार इन अध्यादेशों का कानून का जामा पहनाने जा रही है तो कांग्रेस इसके विरोध में उतर आई है. जबकि अपने सत्ताकाल में कांग्रेस खुद इसी तरह के कृषि सुधार करने की कोशिश कर रही थी.  


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बता दें कि सरकार ने किसानों की भलाई के लिए किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल-2020 (The Farmers' Produce Trade and Commerce Promotion and Facilitation  Bill, 2020), मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता बिल -2020 (The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement of Price Assurance and Farm Services Bill, 2020 और  आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल -2020 (The Essential Commodities (Amendment) Bill 2020) संसद में पेश किए हैं. इन तीनों बिलों का कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल सरकार का विरोध कर रहे हैं. साथ ही पंजाब समेत देश के कई हिस्सों में किसान भी सड़कों पर उतरे हुए हैं. 
 
किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल-2020 
इस बिल में प्रावधान है कि किसान अपनी उपज को जहां चाहे और जिस चाहे दाम पर बेच सकते हैं. उनके लिए सरकारी मंडियों में ही अपनी उपज बेचने की शर्त हटा दी गई है. इसी प्रकार व्यापारी भी किसी भी किसान और किसी भी राज्य से उपज खरीदकर बेच सकेंगे. ये बिल राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर कोई कर लगाने से रोक लगाता है और किसानों को इस बात की आजादी देता है कि वो अपनी उपज लाभकारी मूल्य पर बेचे. सरकार का तर्क है कि इस बिल से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी.


मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता बिल -2020 
इस बिल में प्रावधान किया गया है कि किसान पहले से तय मूल्य पर कृषि उपज की सप्लाई के लिए लिखित समझौता कर सकते हैं. केंद्र सरकार इसके लिए एक आदर्श कृषि समझौते का दिशा-निर्देश भी जारी करेगी, ताकि किसानों को मदद मिल सके और आर्थिक लाभ कमाने में बिचौलिए की भूमिका खत्म हो सके.


आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल -2020 
करीब 65 साल पुराने वस्तु अधिनियम कानून में संशोधन के लिए यह बिल लाया गया है. इस बिल में अनाज, दलहन, आलू, प्याज समेत कुछ खाद्य वस्तुओं (तेल) आदि कोआवश्यक वस्तु की लिस्ट से बाहर करने का प्रावधान है. सरकार का तर्क है कि इससे प्राइवेट इन्वेस्टर्स को व्यापार करने में आसानी होगी और सरकारी हस्तक्षेप से मुक्ति मिलेगी. सरकार का ये भी दावा है कि इससे कृषि क्षेत्र में विदेशी निवेश को बढ़ावा मिल सकेगा.


बिल पर कांग्रेस कैसे कर रही है पाखंड? 
कांग्रेस ने 2019 के अपने घोषणापत्र में कहा था कि सत्ता में आने पर किसानों को अपनी उपज सरकारी मंडियों में ही बेचने की अनिवार्यता को खत्म करेगी और किसान कहीं भी अपनी उपज बेच पाएंगे. इससे पहले 2014 लोक सभा चुनाव में भी कांग्रेस ने यही घोषणा की थी. जिसके बाद कांग्रेस ने कर्नाटक, असम, हिमाचल प्रदेश, मेघालय और हरियाणा की कांग्रेस सरकारों ने किसानों को APMC Act से अलग करके कहीं भी उपज बेचने का अधिकार दे दिया था. यूपीए सरकार के दौरान योजना आयोग ने भी 2011 में अपनी एक रिपोर्ट में “Inter-State Agriculture Produce Trade and Commerce Regulation Act को निष्क्रिय कर केंद्र की लिस्ट से हटाने के लिए कहा था. 


9 साल पहले कांग्रेस खुद इन्हीं बिलों को किसान हितैषी बता रही थी
इसके बाद उसी साल कैबिनेट सेक्रेट्री ने सिफारिश की कि देश में अंतर-राज्यीय कृषि व्यापार को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इसके अगले साल यूपीए सरकार ने “Agricultural Produce Inter State Trade and Commerce (Development and Regulation) Bill 2012” तैयार किया. लेकिन सरकार इस बिल पर आगे नहीं बढ़ पाई. इससे स्पष्ट होता है कि कांग्रेस खुद आज से 9 साल पहले किसानों के लिए यही बिल लेकर आ रही थी. जिस पर बाद में उसकी कई प्रदेश कांग्रेस सरकारों ने भी काम किया. लेकिन अब जब मोदी सरकार किसानों के लिए उन्हीं किसान हितैषी बिलों को कानून का अमलीजामा पहनाने की कोशिश कर रही है तो कांग्रेस ने एकदम से रूख बदलकर इसे किसान विरोधी ठहराना शुरू कर दिया है. इससे उसके रूख पर कृषि विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं. वे कह रहे हैं कि जब तक कांग्रेस खुद इन बिलों पर काम कर रही थी, तब तक उसके लिए ये किसान हितैषी थे. वहीं अब जब मोदी सरकार उन बिलों पर कदम आगे बढ़ा रही है तो ये बिल किसान विरोधी हो गए हैं. 


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