High Court : बंबई हाई कोर्ट ने शहीद मेजर की पत्नी को राहत देने के फैसले में देरी को लेकर नाराजगी जताई है. कोर्ट ने कहा कि सरकार कुछ मुद्दों पर बिजली की स्पीड की तरह फैसले लेती है, लेकिन शहीद की पत्नी को राहत देने में अपने कदम पीछे क्यों खींच रहे हैं. इतने जरुरी मुद्दे में देरी बर्दाश नहीं है. फैसले में देरी से सरकार की बदनामी होगी. कोर्ट में 30 वर्षीय शहीद मेजर अनुज सूद की पत्नी आकृति की याचिका पर सुनवाई चल रही है. सूद की पत्नी ने याचिका में सरकार के 2000 और 2019 के जीआर के तहत आर्थिक राहत देने का निर्देश देने की मांग की है.


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10 अप्रैल तक का दिया समय


जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और जस्टिस फिरदोश पुनिवाला की बेंच ने कहा कि राज्य सरकार के पास तेजी से फैसला लेने के साधन हैं. बेंच ने फिलहाल सरकार को इस मामले में फैसला लेने के लिए 10 अप्रैल तक का समय दिया है. बेंच ने कहा कि सरकार की ओर से इस मामले में बड़े दिल से फैसला लिया जाए. 


 



मेजर सूद 2 मई, 2020 को शहीद


मेजर सूद 2 मई, 2020 को जम्मू कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों से नागरिक बंधकों को बचाते समय शहीद हो गए थे और उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था. शुक्रवार ( 12 अप्रैल ) को सरकारी वकील पी पी काकड़े ने पीठ को बताया कि सूद को लाभ नहीं दिया जा सकता क्योंकि वह राज्य के "अधिवासी" नहीं थे. काकडे ने कहा, हमें एक उचित नीतिगत फैसला लेने की जरूरत है जिसके लिए हमें मंत्रिमंडल से संपर्क करने की जरूरत है. 


 



हालांकि, पीठ ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि हर बार फैसला न लेने के लिए कोई न कोई कारण दिया जाता है.अदालत ने कहा, आप (सरकार) ऐसे मामले से निपट रहे हैं, किसी ने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया है और आप ऐसा कर रहे हैं. हम खुश नहीं हैं.


 



जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते : कोर्ट


पीठ ने कहा कि उसने राज्य के मुख्यमंत्री को मामले में एक उचित फैसला लेने का निर्देश दिया था. जस्टिस कुलकर्णी ने कहा, हमने मुख्यमंत्री से फैसला लेने का अनुरोध किया था, उन्हें फैसला लेना चाहिए था. अगर वह फैसला नहीं ले सकते या फैसला लेना उनके लिए बहुत मुश्किल था, तो हमें बताएं, हम इससे निपटेंगे. साथ ही उन्होंने कहा, अब आप जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते.


 



15 सालों से महाराष्ट्र में रह परिवार


पीठ ने कहा, हम इस रुख से काफी हैरान हैं. हमने राज्य के सर्वोच्च प्राधिकारी से निर्णय लेने के लिए कहा था. अगर मुख्यमंत्री फैसला लेने में असमर्थ हैं तो राज्य सरकार एक हलफनामा दाखिल करें. इसने सरकार को 17 अप्रैल तक एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और कहा कि वह उसके अनुसार मुद्दे से निपटेगी. याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि परिवार पिछले 15 सालों से महाराष्ट्र में रह रहा है, जैसा कि उसके दिवंगत पति की इच्छा थी, जो हमेशा पुणे में रहना चाहते थे.