चेन्नई: तमिलनाडु के प्रमुख विपक्षी दलों ने कावेरी मुद्दे पर केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार पर राज्य को धोखा देने का आरोप लगाते हुए रविवार को निर्णय लिया कि आगामी गुरुवार (पांच अप्रैल) को वे प्रदेश व्यापी बंद आयोजित करेंगे.  द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) के मुख्यालय पर हुई सभी विपक्षी दलों की बैठक के बाद द्रमुक ने एक बयान जारी कर कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के 16 फरवरी के आदेश के अनुरूप केंद्र सरकार छह सप्ताह में कावेरी प्रबंधन बोर्ड (सीएमबी) का गठन करने में असफल रही. 


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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सीएमबी के गठन के लिए दी गई समयसीमा 29 मार्च को समाप्त हो गई. बैठक में कावेरी डेल्टा क्षेत्र से राजभवन तक 'कावेरी अधिकार संरक्षण जुलूस' निकालने का भी निर्णय लिया गया है.  इस जुलूस में सभी राजनीतिक दलों के नेता तथा विभिन्न क्षेत्रों के लोग शामिल होंगे. वहीं, तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने राजभवन में मुख्य सचिव गिरिजा वैद्यनाथन और कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की. इस बैठक का कोई आधिकारिक कारण तो पता नहीं चला, लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि राज्य में कावेरी मुद्दे और अन्य विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर यह बैठक आयोजित हुई थी.


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बयान के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी राज्य के दौरे पर आएंगे, सीएमबी गठित नहीं करने के लिए उन्हें काले झंडे दिखाए जाएंगे. बैठक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की केंद्र सरकार द्वारा आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनाव में फायदा पाने के लिए तमिलनाडु के अधिकारों का हनन करते हुए अपने पद का दुरुपयोग कर सीएमबी का गठन नहीं करने के फैसले की निंदा की गई. 


कर्नाटक सीएमबी का गठन नहीं चाहता है. बैठक में तमिलनाडु सरकार को राज्य के अधिकारों का हनन करने के लिए केंद्र सरकार का बराबर का हिस्सेदार मानते हुए उसकी भी निंदा की गई. बैठक में राज्य की अन्नाद्रमुक सरकार पर आरोप लगाया गया कि उसने केंद्र सरकार पर दबाव नहीं बनाया. इसके बाद, द्रमुक नेता एम.के. स्टालिन ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने व्यापार संगठनों से उनकी हड़ताल तीन अप्रैल से बढ़ाकर पांच अप्रैल करने का आग्रह किया है.


पुराना है मामला
आपको बता दे कि तीनों राज्यों ने कावेरी जल विवाद अधिकरण (सीडब्ल्यूडीटी) के फैसले के खिलाफ कर्नाटक, तमिलनाडु, और केरल ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. सुप्रीम कोर्ट ने 20 सितंबर 2017 को फैसला सुरक्षित रख लिया था. खंडपीठ ने इस पूरे मामले में टिप्पणी की थी कि पिछले दो दशकों में काफा भम्र की स्थिति रही है.


जल विवाद पर बनेगा कानून
केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों के बीच बढ़ते जल विवादों को देखते हुए अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक को संसद में फिर पेश करेगी. इसमें अधिकरणों के अध्यक्षों, उपअध्यक्षों की आयु और निर्णय देने की समय सीमा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं. विधेयक को जल्द ही कैबिनेट में मंजूरीके लिए पेश किया जाएगा.


इनपुट आईएएनएस से भी