India of 1948: वक्त कभी थमता नहीं है, जो बीत गया सो बीत गया, लेकिन गुजरे समय से आप सबक जरूर ले सकते हैं.  ZEE NEWS स्पेशल TIME MACHINE में आपको उस वक्त में ले जा रहे है जो आपके सामने नहीं घटा और जिसके बारे में आपने शायद इतिहास की किताबों में भी नहीं पढ़ा. जैसे पहली बार भारत की अपनी एयरलाइन ने कब सात समंदर पार किया? उस फ्लाइट में कौन अमीर हिंदुस्तानी था, या राम मंदिर पर सबसे पहले चुनाव में वोट किस पार्टी ने मांगे, जी नहीं आप गलत समझ रहे हैं बीजेपी ने नहीं. क्या आपको ये पता है कि मोहम्मत अली जिन्ना की जूनागढ़ में किससे दोस्ती थी, जिससे वहां के हिंदू नाराज हुए या आजादी के बाद भी पाकिस्तान में भारतीय रुपया कैसे चल रहा था? या 17 साल के लायन ऑफ लद्दाख से कैसे पाकिस्तान कांपा था? इन सारे सवालों के जवाब TIME MACHINE में मिलेंगे, तो चलते हैं 74 साल पहले.. साल 1948 में.


आजाद भारत की पहली 'अंतरराष्ट्रीय उड़ान'


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लंबी गुलामी से आजादी मिलने के बाद हिन्दुस्तान सुनहरे भविष्य के सपने संजो रहा था. इन्हीं सपनों में एक था इंटनेशनल एयरलाइंस का सपना. भारत की अपनी इंटरनेशनल एयरलाइंस का सपना. ये सपना पूरा हुआ 8 जून 1948 को. इंटरनेशनल एयरलाइंस के सपने को साकार किया टाटा ग्रुप के मुखिया JRD टाटा ने. टाटा की एयर इंडिया ने अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान 8 जून 1948 को मुंबई से लंदन के बीच भरी थी. जो काहिरा और जेनेवा होते हुए लंदन पहुंची थी. आजाद हिन्दुस्तान की पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान को नाम दिया गया था मालाबार प्रिंसेज. इस उड़ान में JRD टाटा और जामनगर के नवाब अमीर अली खान समेत कुल 35 लोग सवार थे. उस वक्त मुम्बई से लंदन की सात हजार किलोमीटर की दूरी तय करने में दो दिन लग गए थे. जबकि आज ये दूरी 8 से 11 घंटे में तय हो जाती है.


कांग्रेस ने शुरू किया था राम मंदिर आंदोलन


आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का पूरा क्रेडिट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और BJP के नेताओं को दिया जा रहा है. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि राम मंदिर आंदोलन की बुनियाद BJP या RSS ने नहीं बल्कि कांग्रेस ने रखी थी. आजादी के एक साल बाद यानी 1948 में पहली बार राम मंदिर का इस्तेमाल चुनावी फायदे के लिए हुआ था. BJP ने भले ही 1989 में राम मंदिर को अपने चुनावी एजेंडे में शामिल किया हो, लेकिन आजादी के एक साल बाद 1948 में राम मंदिर कांग्रेस के सियासी एजेंडे का हिस्सा बन गया था. तब अयोध्या के उपचुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार ने ना सिर्फ राम के नाम पर वोट मांगे थे. बल्कि हार्डकोर हिंदुत्व कार्ड भी खेला था. तब कांग्रेस ने पार्टी से बगावत कर चुके आचार्य नरेंद्र देव के खिलाफ हिंदू संत बाबा राघव दास को मैदान में उतारा था. उस वक्त प्रचार करने पहुंचे कांग्रेस के बड़े नेता गोविंद वल्लभ पंत ने राम के नाम पर बाबा राघव दास के लिए वोट मांगे थे.


ओलंपिक में भारतीय हॉकी ने रचा इतिहास


लंडन ओलंपिक्स से पहले भी भारत तीन बार गोल्ड मेडल जीत चुका था. लेकिन आजाद मुल्क के तौर भारतीय हॉकी टीम का ये पहला गोल्ड मेडल था और सोने पर सुहागा ये कि ये गोल्ड मेडल उन अंग्रेजों को हराकर जीता, जिन्होंने हिंदुस्तान पर करीब 200 साल राज किया था. 1948 के लंडन ओलंपिक्स में हॉकी के फाइनल मुकाबले में भारत ने ब्रिटेन को 4-0 से हराया था.


बंटवारे के बाद भी पाकिस्तान में चलता था भारतीय रुपया


15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान दो अलग देश बन गए थे. लेकिन आजादी के 8 महीने बाद मार्च 1948 तक पाकिस्तान में भारतीय नोट का ही इस्तेमाल होता रहा. आजादी के 8 महीने बाद पाकिस्तान ने अपनी करेंसी बनाई और वहां की तत्कालीन सरकार ने 1 अप्रैल 1948 से भारतीय करेंसी का इस्तेमाल बंद कर दिया. हालांकि तब भी पाकिस्तानी नोट भारत में ही छपते थे. पाकिस्तान के नोट रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नासिक के प्रेस में छापे जाते थे और उन पर उर्दू और अंग्रेजी भाषा में हुक़ूमत-ए-पाकिस्तान और गवर्नमेंट ऑफ पाकिस्तान लिखा होता था.


पाकिस्तान को धूल चटाने वाले ​​​​'द लायन ऑफ़ लद्दाख'!


बंटवारे के बाद पाकिस्तान कश्मीर पर कब्ज़े के लिए अड़ा हुआ था. अपने नापाक मंसूबों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए पाकिस्तान ने कबायली लुटेरों की मदद ली और उनके जरिए कश्मीर के कई इलाकों में कत्लेआम करवाया. 13 मई 1948 को, भारत ने जब पाकिस्तान समर्थित कबायली लुटेरों को कश्मीर से हटाने के लिए अभियान की शुरुआत की तब 17 साल का स्कूली छात्र चेवांग रिनचेन इस अभियान से जुड़ने वाला पहला व्यक्ति था. युद्ध की बुनियादी ट्रेनिंग लेने के बाद रिनचेन ने 28 स्वयंसेवकों के एक टीम का नेतृत्व किया, जिसे नुब्रा गार्ड्स कहा जाता है. चेवांग रिनचेन और उनके साथियों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए कबायली लुटेरों के इरादों को मिट्टी में मिला दिया. शानदार नेतृत्व और वीरता के लिए रिनचेन को भारतीय सेना में पहला कमीशन अधिकारी बनाया गया. साथ ही उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. रिनचेन को 'द लायन ऑफ लद्दाख'  की उपाधि भी दी गई.


जिन्ना का दोस्त जूनागढ़ का दीवान


बंटवारे के बाद जूनागढ़ रियासत के नवाब महाबत खान ने अपने दीवान शाहनवाज भुट्टो के बहकावे में आकर पाकिस्तान के साथ विलय का ऐलान कर दिया. शाहनवाज भुट्टो पाकिस्तान के जनक माने जाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना के रिश्तेदार थे. जूनागढ़ की बहुसंख्यक हिंदुओं ने पाकिस्तान के साथ विलय के फैसले को मानने से इनकार कर दिया और प्रधानमंत्री नेहरू को चिट्ठी लिखकर भारत में विलय की गुहार लगाई. दबाव बढ़ा तो दीवान शाहनवाज भुट्टो ने भी प्रधानमंत्री नेहरू को चिट्ठी लिखकर भारत में विलय की मांग की, जिसके बाद 9 नवंबर 1947 में जूनागढ़ को भारत में मिला लिया गया. लेकिन पाकिस्तान के ऐतराज जताने के बाद ब्रिटेन की दखल पर 20 फरवरी 1948 को जूनागढ़ में लोकमत करवाया गया. इस लोकमत में जूनागढ़ के 2 लाख 1 हजार 457 रजिस्टर्ड मतदाताओं में से 1,90,870 लोगों ने वोट डाले और पाकिस्तान को सिर्फ 91 वोट ही मिले. इसके बाद 25 फरवरी 1948 को भारत सरकार ने जूनागढ़ के भारत में विलय पर मुहर लगा दी.


5 बार की गई गांधी की हत्या की कोशिश


30 जनवरी 1948 का दिन कहने को तो साल के बाकी दिनों जैसा ही था, लेकिन शाम होते-होते ये इतिहास में सबसे दुखद दिनों में शुमार हो गया. 30 जनवरी 1948 की शाम नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी. विंडबना देखिए कि अहिंसा को सबसे बड़ा हथियार बनाकर अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने वाले महात्मा गांधी खुद हिंसा का शिकार हो गए. आपको जानकर हैरानी होगी कि गांधी जी को मारने की कोशिश सिर्फ एक बार नहीं बल्कि पांच बार की गई और इन पांच प्रयासों में से तीन में गोडसे शामिल था.


-25 जून, 1934 के दिन गांधी की कार में धमाका हुआ
-जुलाई, 1944 में महाराष्ट्र के पंचगनी में गोडसे ने गांधी जी पर खंजर से वार की कोशिश की
-सितंबर, 1944 में फिर से गोडसे ने एक रैली के दौरान बापू पर हमला किया
-जून, 1946 को ट्रेन से पुणे की यात्रा कर रहे महात्मा गांधी की ट्रेन को क्षति पहुंचाने की कोशिश की गई
-फिर वो दिन आया जो पूरे देश को शोक में डूबा गया 30 जनवरी 1948 की शाम महात्मा गांधी प्रार्थना के लिए बिरला मंदिर पहुंचे, तभी नाथूराम गोडसे ने उन्हें बेहद करीब से गोली मार दी. गोली लगते ही महात्मा गांधी जमीन पर गिर पड़े और हे राम कहते हुए अंतिम सांस ली.


आजाद भारत का 'जलियांवाला बाग हत्याकांड'


नए साल की पहली तारीख को जब लोग खुशियां मनाते हैं, तब ओडिशा का खरसावां अपनों की कुर्बानी के लिए आंसू बहाता है. आजादी के करीब पांच महीने बाद 1 जनवरी 1948 को पूरा देश जब नव वर्ष का जश्न मना रहा था तब खरसावां 'आजाद भारत के जलियांवाला बाग हत्याकांड' का गवाह बन रहा था. खरसावां एक छोटी सी रियासत थी जो उड़ीसा में अपने विलय का विरोध कर रही थी. वहां के आदिवासी अपने लिए अलग राज्य की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे. 1 जनवरी 1948 के दिन प्रशासन ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दीं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उस फायरिंग में सिर्फ 17 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन स्थानीय लोगों का दावा था कि उस घटना में सैकड़ों लोग मारे गए थे, कहा जाता है कि मौत का आंकड़ा छिपाने के लिए लोगों के शवों को कुएं में फेंक दिया गया था. उस वक्त देश के गृह मंत्री रहे सरदार बल्लभ भाई पटेल ने भी खरसावां की घटना की तुलना जालियांवाला बाग हत्याकांड से की थी.


1948 में मदर टेरेसा ने पहनी वो साड़ी!


नीली धारी वाली सफेद साड़ी, चेहरे पर तेज और मुस्कुराहट के साथ लोगों की मदद करने वाली मदर टेरेसा वो मां, जिसने दूसरे की सेवा में अपना पूरा जीवन बिता दिया. लोगों की मदद और सामाजिक कार्यों ने मदर टेरेसा को पूरी दुनिया में पहचान दिलाई और उनके साथ नीली धारी वाली सफेद साड़ी भी पूरी दुनिया में मशहूर हो गई. मदर टेरेसा ने साल 1948 में वैटिकन की इजाजत से नीली धारी वाली साड़ी को क्रॉस पहनना शुरू किया था. 1948 में जब कोलकाता की सड़कों पर वो लोगों की मदद करने उतरीं, तभी से ये साड़ी उनकी पहचान बन गई. मदर टेरेसा की ये साड़ी अब मिशनरीज ऑफ चैरिटी की नन्स की पहचान बन चुकी है. तीन दशकों से भी ज्यादा समय से कोलकाता में स्थित मिशनरीज ऑफ चैरिटी के कुष्ठ रोग आश्रम के मरीज ये साड़ी बना रहे हैं, जिनका इस्तेमाल नन्स करती हैं.


भारत के आखिरी अंग्रेज अफसर का रिजाइन!


आजादी के वक्त देश में अगर सबसे ज्यादा चर्चित कोई था तो वो थे लार्ड माउंटबेटन. वही लॉर्ड माउंटबेटन जो देश के आखिरी अंग्रेज अफसर थे. फरवरी 1947 में लॉर्ड लुइस माउंटबेटन को ब्रिटिश भारत का आखिरी वॉयसरॉय नियुक्त किया गया था. माउंटबेटन ने 12 फरवरी, 1947 से 15 अगस्त, 1947 तक भारत के अंतिम वॉयसरॉय के रूप में काम किया और फिर 15 अगस्त, 1947 से 21 जून, 1948 तक आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल के रूप में काम किया. उनके कार्यकाल के दौरान ही भारत के दो टुकड़े हुए थे. तो ये था TIME MACHINE में 1948 का सफर. सिर्फ एक ही साल का था उस वक्त देश, बंटवारे का दर्द था, एक दूसरे से बिछड़ने का मातम था, लेकिन कहीं न कहीं आगे बढ़ने का जज्बा भी था.


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