Delhi High Court News: दिल्ली उच्च न्यायालय ने 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ (samvidhan hatya divas) घोषित करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (PIL) खारिज कर दी. देश में वर्ष 1975 में 25 जून को आपातकाल लागू किया गया था. याचिकाकर्ता ने कहा था कि यह निर्णय न केवल संविधान का उल्लंघन है, बल्कि ‘अपमानजनक’ भी है, क्योंकि इसमें ‘संविधान’, जो एक ‘जीवंत दस्तावेज’ है, उसके साथ ‘हत्या’ शब्द का प्रयोग यानी संविधान हत्या दिवस (Constitution Murder Day) किया गया है. इस शब्द के मायने सही नहीं हैं. इसलिए इसे फौरन खारिज कर देना चाहिए.


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अधिसूचना पर दिल्ली हाईकोर्ट की मुहर


कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि केंद्र की अधिसूचना संविधान का उल्लंघन नहीं करती, क्योंकि यह आपातकाल की घोषणा के मुद्दे को चुनौती देने के लिए नहीं, बल्कि सत्ता एवं कानून के दुरुपयोग और उसके बाद हुई ज्यादतियों के खिलाफ जारी की गई है. बेंच में जस्टिस तुषार राव गेडेला भी शामिल थे. पीठ ने कहा, ‘हत्या’ शब्द का इस्तेमाल इसी संदर्भ में किया गया है. यह संविधान का अपमान नहीं करता.’


इस टिप्पणी के साथ याचिका खारिज होने का मतलब साफ है कि याचिकाकर्ता को इस शब्द के सामान्य शब्द का विश्लेषण करके माहौल बनाने के बजाए इसके तकनीकि पहलू को समझना चाहिए.


'मां का निधन हो गया, कांग्रेस सरकार में पेरोल नहीं मिली थी', जब पुराना किस्सा याद कर भावुक हुए राजनाथ सिंह


कांग्रेस द्वारा देश पर थोपे गए आपातकाल का सबसे ज्यादा दंश करीब पूरे देश की जनता के साथ विपक्षी दलों के नेताओं ने भी बराबरी से सहा था. उस समय बीजेपी की स्थापना नहीं हुई थी. लेकिन आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से सहमति रखने वाले दल के नेताओं को भी धड़ल्ले से निशाना बनाया गया. इमरजेंसी की एक इमोशनल कहानी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी सुनाई थी. उन्होंने कहा था- 'जिन्होंने (कांग्रेस) 1975 में देश में इमरजेंसी लगाई, आज वे हम पर तानाशाही का आरोप लगा रहे हैं. मैं इमरजेंसी के दौरान जेल में था. मुझे आपातकाल का विरोध करने के चलते जेल में डाला गया था. तब मेरी माताजी बीमार थीं. उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया और उनका निधन हो गया. मुझे रिहाई नहीं मिली थी.'

आपको बताते चलें कि जब आपातकाल लगा था तब देशभर के लोगों के मानवाधिकार कुचल दिए गए थे. इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली तत्कालीन केंद्र सरकार ने मनमर्जी से फैसले लिए. विपक्ष को जेल में ठूंस दिया गया था. राजनाथ सिंह की माता का निधन हुआ था और उन्हें अंत्येष्टि में नहीं जाने दिया गया था. ये कैसा फैसला था? जब एक बेटे को उसकी मां के अंतिम दर्शन करने से रोका गया. ऐसे एक नहीं हजारों मामले थे जब देशवासी परेशान हुए. वहीं जिन लोगों की शादी 25 जून 1975 को होनी थी, उनकी बारात पहुंच गई थी और इमरजेंसी की खबर पता चलते ही लोगों की परेशानी बढ़ गई थी. इस तरह करोड़ों लोगों के लिए 25 जून 1975 को देश में लागू किया गया आपातकाल एक मानव निर्मित त्रासदी था. इमरजेंसी के दौर की पीड़ा भरी कहानियां बताने वाले लोग आज भी जीवित हैं. आपातकाल का दंश झेलने वाले लोगों के गहरे जख्म करीब 50 साल बाद भी हरे हैं.