महाशिवरात्रि को लेकर शिवालयों और अन्‍य जगहों पर तैयारियां शुरू हो गईं हैं। इस बार 17 फरवरी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाएगा। अगले दिन अमावस्या तिथि का क्षय है, क्योंकि पर्व फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को ही मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी रात्रि को भगवान शकर का रूद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव ताडव करते हुए पुरी सृष्टि को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते है, इसलिए इसे शिव रात्रि और काल रात्रि कहा गया है। इस दिन को शिव विवाह के रुप में भी मनाया जाता है। काल के भी काल महाकाल के व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत ब्राह्माण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र नर नारी, बालक वृद्ध सबको करना चाहिए। यह व्रत करके रात्रि में जो व्यक्ति शिव पूजन करता वह देवतुल्य हो जाता है और उसे शिवत्व की प्राप्ति होती है। ऐसा व्यक्ति अकाल मृत्यु को प्राप्त नही होता।


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इस दिन स्नान करके व व्रत रखने के बाद रात्रि में भगवान शिव की विधिवत आराधना करना कल्याणकारी माना जाता है। दूसरे दिन अर्थात अमावस के दिन मिष्ठानादि सहित ब्राहम्णों तथा शारीरिक रुप से असमर्थ लोगों को भोजन देने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए। यह व्रत महाकल्याणकारी होता है और अष्वमेध यज्ञ तुल्य फल प्राप्त होता है। इस दिन किए गए अनुष्ठानों, पूजा व व्रत का विषेश लाभ मिलता है। इस दिन चंद्रमा क्षीण होगा और सृष्टि को उर्जा प्रदान करने में अक्षम होगा। इसलिए अलौकिक शक्तियां प्राप्त करने का यह सर्वाधिक उपयुक्त समय होता है जब ऋद्धि- सिद्धि प्राप्‍त होती है। इस रात भगवान शिव का विवाह हुआ था।


जानिये कैस करें व्रत : इस दिन प्रात:काल उठकर स्नान करके बिल्वपत्रों और पुष्पों से सुंदर मंडप तैयार करें। उस पर कलशादि की स्थापना के साथ साथ गौरी शकर की स्वर्ण मूर्ति व नंदी की चादी की मूर्ति की स्थापना करें। यदि इन मूर्तियों का नियोजन न हो सके तो शुद्ध मिट्टी से शिव लिंग बना ले। फिर रोली, मौली, पान, सुपारी, चावल, दूध, दही, घी, शहद, कमल गटटे, धतूरा, विल्वपत्र, विजया, नारियल, प्रसाद, फल आदि शिवजी को अर्पित करके पूजा करनी चाहिए। बेल पत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। इसका चिकना भाग शिवलिंग से स्पर्श करना चाहिए। फूलों में कनेर, आक, धतूरा, गूलर आदि के फूल चढ़ाए जाते हैं।
सारी रात जागरण करना चाहिए तथा भगवान शिव की स्तुति करनी चाहिए। जागरण के दौरान भगवान शिव का चार बार रूद्राभिषेक करना चाहिए और चार बार आरती करनी चाहिए। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंज्य मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। दूसरे दिन सुबह जौ, तिल, खीर, बेलपत्रों से हवन करना चाहिए और ब्राह्माणों को भोजन कराना चाहिए। इस व्रत के करने से भगवान आशुतोष की कृपा से आप रोगमुक्त जीवन प्राप्त करेंगे। महादेव की कृपा से जीवन भर भौतिक व दैहिक सुख आपको प्राप्त होंगे। अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है और दुर्घटनाओं से रक्षा होती है। भूत-प्रेतादि से पीड़ा से छुटकारा मिलता है और ग्रहों से होने वाली परेशानिया दूर हो जाती है। धन-वैभव की प्राप्ति होती है रुके हुए कार्य चल पड़ते है। भगवान शिव ने जैसे कुबेर को धन का अध्यक्ष बनाकर अक्षय पात्र दिया उसी तरह यह महाशिवरात्रि का व्रत आप करके सभी भौतिक सुख भगवान आशुतोष आपको देंगे।


इस पावन दिन भगवान शिव और माता पार्वती को खुश करने के लिए कई विधियों से पूजा की जाती है। शिवपुराण के अनुसार, इन विधियों का पालन करें। शिवलिंग को पवित्र जल, दूध और मधु से स्‍नान करवाएं। भगवान को बेलपत्र अर्पित करें। इसके बाद धूप बत्‍ती करें। फिर दीपक को जलाएं। स्कंद पुराण में एक जगह वर्णित है कि चाहे सागर सूख जाए, हिमालय टूट जाए, पर्वत विचलित हो जाएं परंतु शिव व्रत कभी निश्फल नहीं जाता। एक समय भगवान राम भी इस व्रत को रख चुके हैं।



पूजा से जुड़े मंत्र :


-भगवान शिव पंचाक्षरी मंत्र के लिए बीज मंत्र


ॐ नमः शिवाय


-शिव वंदना


ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं, वन्दे जगत्कारणम् l
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनां पतिम् ll
वन्दे सूर्य शशांक वह्नि नयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम् l
वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं, वन्दे शिवंशंकरम् ll


- महामृत्‍युंजय मंत्र


ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा ∫ मृतात् ।।


- द्वाद्वश ज्‍योर्तिलिंग स्‍त्रोत


सौराष्ट्रे सोमनाथं च, श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां महाकालं ॐ कारममलेश्वरम् ॥
परल्यां वैधनाथ च, डाकिन्यां भीमशंकरम् ।
सेतुबन्धे तु रामेशं, नागेशं दारुकावने ॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं, त्र्यंबकं गौतमीतटे ।
हिमालये तु केदारं, धुश्मेशं च शिवालये ॥
ऐतानि ज्योतिर्लिंगानि, सायंप्रात: पठेन्नर ।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥