नई दिल्लीः दिल्ली में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करने का फैसला किया है. इसे बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन के प्रयासों के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है. इसी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर पेश है 'सीएसडीएस' के निदेशक संजय कुमार से पांच सवाल. 


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प्रश्न: कांग्रेस और आप के अलग लोकसभा चुनाव लड़ने का दिल्ली में क्या असर हो सकता है?
उत्तर: अगर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन नहीं होता है तो दिल्ली में भाजपा सभी सात सीटें जीत सकती है. यानी भाजपा सूपड़ा साफ कर देगी. लेकिन अगर ये दोनों पार्टियां गठबंधन करती हैं तो फिर तस्वीर उलट सकती है. दोनों के वोट मिलकर भाजपा से कहीं ज्यादा होंगे और ऐसे में वह शून्य पर भी सिमट सकती है.


प्रश्न: फिर आपके हिसाब से कांग्रेस अकेले लड़ने का जोखिम क्यों मोल ले रही है?
उत्तर: गठबंधन करने के लिए एक राजनीतिक खाका होना चाहिए जो शायद दिल्ली को लेकर कांग्रेस के पास नहीं है. कुछ राज्यों में कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व हावी हो जाता है तो कुछ जगहों पर राष्ट्रीय नेतृत्व हावी रहता है. दिल्ली के बारे में यह कहा जा रहा है कि यहां प्रदेश नेतृत्व हावी हुआ. प्रदेश नेतृत्व को लगता है कि उसे इसका दीर्घकालिक लाभ होगा.


प्रश्न: क्या अब भी दोनों के बीच तालमेल की गुंजाइश दिखती है? 
उत्तर: राजनीति में कुछ भी संभव है. दरअसल लड़ाई सीटों को लेकर और अपना जनाधार सुरक्षित रखने की है. कांग्रेस के एक धड़े को लगता है कि हमें दीर्घकालिक रणनीति पर चलना चाहिए. मेरा मानना है कि अगर आपका अस्तित्व बचा रहेगा तभी तो आप दीर्घकालिक या अल्पकालिक लाभ एवं हानि के बारे सोचेंगे.


प्रश्न: क्या कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होने से आम आदमी पार्टी के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो सकता है? 
उत्तर: सिर्फ आम आदमी पार्टी ही नहीं बल्कि सभी क्षेत्रीय पार्टियों के अस्तित्व के लिए खतरा है. अगर राजग पूर्ण बहुमत में आ गया तो फिर इन पार्टियों का वजूद खतरे में पड़ सकता है.


प्रश्न: क्या पुलवामा के बाद विपक्षी दलों को गठबंधन पर नए सिरे से विचार करना होगा? 
उत्तर: पुलवामा के पहले भी विपक्षी दलों के लिए जरूरी था कि वो भाजपा के खिलाफ एकजुट हों. अब कहीं न कहीं मूड भाजपा के पक्ष में दिख रहा है. अब तो उन्हें साथ आना ही पड़ेगा. अगर वो साथ नहीं लड़ते हैं तो फिर ये भाजपा को नहीं हरा सकते.


Input: Bhasha