नई दिल्‍ली: कर्नाटक के सत्‍ता संग्राम पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद शनिवार को चार बजे फ्लोर टेस्‍ट कराने का फैसला दिया है. बीजेपी सरकार को 104 विधायकों का समर्थन हासिल है जबकि विपक्षी जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन के पास 116 विधायकों का समर्थन है. दो निर्दलीय विधायक भी हैं. फ्लोर टेस्ट या बहुमत 3 तरह से साबित होता है. पहला ध्वनिमत, दूसरा संख्याबल और तीसरा हस्ताक्षर के जरिए मतदान दिखाया जाता है.


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3 तरह से साबित होता है बहुमत
1.ध्वनिमत.

2.हेड काउंट या संख्याबल : जब विधायक सदन में खड़े होकर अपना बहुमत दर्शाते हैं.
3.लॉबी डिवीजन : यह तरीका सबसे पुख्ता माना जाता है. इसमें विधानसभा सदस्य लॉबी में आते हैं और रजिस्टर में हस्ताक्षर करते हैं. -हां' के लिए अलग लॉबी और 'न' के लिए अलग लॉबी होती है.


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कर्नाटक विधानसभा की दलगत स्थिति
सदस्‍य - 224 (अभी 2 सीटों पर चुनाव बाकी है)
बीजेपी - 104
कांग्रेस - 78
जेडीएस - 38
अन्‍य - 02
बहुमत का आंकड़ा - 112


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क्‍या होता है विश्‍वास मत?
विश्‍वास मत विधानसभा या लोकसभा में लाया जाता है. इसे सत्‍ताधारी दल को बहुमत साबित करने के लिए किया जाता है. लोकसभा में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने दो बार सदन में विश्‍वास मत हासिल करने की कोशिश की थी. 1996 में हालांकि उन्‍होंने वोटिंग से पहले इस्‍तीफा दे दिया था जबकि 1998 में वह एक वोट से विश्‍वास मत नहीं हासिल कर पाए थे. उनकी सरकार गिर गई थी. उस दौरान वीपी सिंह, एचडी देवेगौड़ा और आईके गुजराल की सरकार भी विश्‍वास मत नहीं हासिल कर पाई थी.


कई राज्‍यों में आया था विश्‍वास मत प्रस्‍ताव
बिहार, गोवा और उत्‍तराखंड में राज्‍य सरकारों को हाल में विश्‍वास मत हासिल करने की नौबत आई थी. बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने आसानी से विश्‍वास मत जीता था. मणिपुर में 2017 में बीजेपी की एन बीरेन सिंह सरकार ने ध्‍वनिमत से यह प्रस्‍ताव जीता था. उत्‍तराखंड में भी 2016 में यह स्थिति बनी थी, जब हरीश रावत सरकार ने फ्लोर टेस्‍ट आसानी से पास किया था.