नई दिल्ली: जेएनयू छात्र नजीब अहमद की गुमशुदगी मामले में सीबीआई ने आज दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि यह महज किसी व्यक्ति की ‘गुमशुदगी’ का मामला है क्योंकि अब तक ऐसे ‘कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं’ जिससे पता चले कि अपराध हुआ है. एक साल पहले यह मामला जांच के लिए सीबीआई को सौंपा गया था. 


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जांच एजेंसी ने पिछले साल 16 मई को मामला अपने हाथ में लिया था. उसने हाई कोर्ट को बताया कि मामले में किसी को गिरफ्तार करने या अहमद के लापता होने के मामले में संदिग्ध नौ छात्रों के खिलाफ अनिवार्य कार्रवाई को लेकर इस वक्त उसके पास ऐसे कोई सबूत नहीं है. 


जांच एजेंसी ने न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति आई एस मेहता की पीठ को बताया कि सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी ( सीएफएसएल ) चंडीगढ़ से संदिग्ध छात्रों के नौ में से छह मोबाइल फोन से जो डेटा मिले, उससे इनके (संदिग्ध छात्रों के) खिलाफ लगे आरोपों का दूर दूर तक किसी संबेध का कोई पता नहीं चलता. 


सीबीआई के वकील ने अदालत को बताया, ‘अभी हम इस स्थिति में नहीं हैं कि इस बात की पुष्टि कर सकें कि अपराध हुआ भी है या नहीं.’ जांच एजेंसी ने बताया कि सीएफएसएल चंडीगढ़ तीन मोबाइल फोन की जांच नहीं कर सका, क्योंकि दो फोन क्षतिग्रस्त हालत में हैं और तीसरे में पैटर्न लॉक लगा हुआ है , जिसे अनलॉक नहीं किया जा सका.  सीबीआई ने बताया कि इन तीनों फोन को हैदराबाद स्थित इसके सीएफएसएल में भेजा जाएगा , जहां उम्मीद है कि इनकी जांच हो सकेगी. 


अहमद की मां फातिमा नफीस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने बताया कि सीबीआई की स्थिति रिपोर्ट में मौजूद जानकारी उन्हें ( अहमद की मां को ) उपलब्ध करानी होगी और इससे उन्हें अलग नहीं रखा जा सकता है. उन्होंने सीबीआई को यह निर्देश देने का अनुरोध किया कि वह सुनवाई की हर तारीख पर उत्तर प्रदेश में अपने घर से दिल्ली आने के लिये फातिमा को 10,000 रुपये का भुगतान करे. 


नजीब अहमद 15 अक्तूबर 2015 से लापता है. 


(इनपुट - भाषा)