नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने प्राइवेट स्कूलों की ट्यूशन फीस वसूली पर रोक लगाने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज कर दी है. हाईकोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि इस मसले पर पहले भी इसी कोर्ट में याचिका खारिज हो चुकी है. इसके बावजूद कोर्ट में जनहित याचिका क्यों दायर की गई. कोर्ट की नाराजगी देख वकील ने क्षमा मांगते हुए अपनी जनहित याचिका वापस ले ली. 


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जानकारी के मुताबिक नरेश कुमार नाम के याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए वकील एन प्रदीप शर्मा ने कहा कि कोरोना संक्रमण की वजह से स्कूल पिछले 5 महीने से लगातार बंद हैं. कोविड- 19 की वजह से लोगों के काम- धंधे छूट गए हैं और जैसे तैसे वे गुजारा कर रहे हैं.  इसके बावजूद प्राइवेट स्कूल मालिक लगातार अभिभावकों को मेसेज भेजकर ट्यूशन फीस देने का दबाव बना रहे हैं. कई स्कूलों ने तो चालाकी करते हुए टयूशन फीस में बाकी चार्ज भी जोड़ दिए हैं. 


याचिकाकर्ता ने सवाल उठाया कि स्कूल बंद होने की वजह से उन्हें बिजली- पानी, ट्रांसपोर्ट, सफाई का कोई खर्च नहीं है. फिर ये भारी भरकम फीस क्यों मांगी जा रही हैं. जिस ऑनलाइन क्लास के नाम पर इस फीस की मांग की जा रही है. वह बच्चों के लिए सुविधा कम और परेशानी का सबब ज्यादा बन गई है. कई कई घंटे तक ऑनलाइन क्लास चलने की वजह से बच्चों में आंख, सिर और गर्दन में दर्द की शिकायतें बढ़ रही हैं. 


याचिकाकर्ता ने कहा कि कुछ देर चलने वाली इन ऑनलाइन क्लास के लिए अभिभावकों से भारी भरकम फीस नहीं वसूली जा सकती. अभिभावकों को न तो इस फीस को देने के लिए बाध्य किया जा सकता है और न ही उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी है कि वे इन महंगी फीसों को चुका सकें. वकील ने मांग की कि दिल्ली सरकार को आदेश दिया जाए कि वह प्राइवेट स्कूलों को फीस न वसूलने का आदेश जारी करे. 


याचिकाकर्ता के वकील के तर्क सुनने के बाद चीफ जस्टिस डी एन पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान ने उनसे नाराजगी जताई. खंडपीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर यही अदालत पहले भी एक अर्जी खारिज कर चुकी है. फिर दूसरी याचिका क्यों डाली गई. कोर्ट की नाराजगी पर वकील एन प्रदीप शर्मा ने पहले याचिका खारिज खारिज होने की जानकारी से अनभिज्ञता जताई और उसके बाद पीआईएल वापस लेने की अनुमति मांगी. कोर्ट की मंजूरी के बाद वकील ने अर्जी वापस ले ली


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