नई दिल्ली: निर्भया केस (nirbhaya case) के दोषियों की फांसी का मामला एक बार पिर सुर्खियों में है. यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि जब तक जेल प्रशासन के पास डेथ वॉरंट (Death warrant) नहीं आ जाता है तब तक जेल प्रशासन किसी दोषी को फांसी पर नहीं लटका सकता है..


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डेथ वॉरंट जारी होने के बाद फांसी पर लटकाने की प्रकिया शुरू होती है. डेथ वाॉरेंट पर 'Execution Of A Sentence Of Death' लिखा होता है. इसके बाद पहले खाली कालम में उस जेल का नंबर लिखा होता है जिस जेल में फांसी दी जानी है.



इसके बाद अगले कॉलम में फांसी पर चढ़ने वाले सभी दोषियों के नाम लिखे जाते है. अगले खाली कॉलम में केस का FIR नंबर लिखा जाता है. उसके बाद के कॉलम में किस दिन ब्लैक वारंट जारी हो रहा है वो तारीख पहले लिखी जाती है.


इसके बाद के कॉलम में फांसी देने वाले दिन यानी मौत के दिन की तारीख लिखी जाती है और किस जगह फांसी दी जाएगी यह लिखा जाता है. इसके बाद अगले खाली कॉलम में फांसी पर चढ़ने वाले दोषियों के नाम के साथ बकायदा यह साफ- साफ लिखा होता है की जिस- जिस को फांसी दी जा रही है उनके गले मे फांसी का फंदा जब तक लटकाया जाए जब तक की उनकी मौत न हो जाए और फांसी होने के बाद मौत से जुड़े सर्टिफिकेट और फांसी हो गई है ये लिखित में वापस कोर्ट को अवगत कराया जाए.


सबसे नीचे समय दिन और ब्लेक वारंट जारी करने वाले जज के साइन होते हैं.